हैदराबाद: भले ही अबकी यूपी में तमाम सियासी पार्टियां नजर आ रही हों, लेकिन यहां मुख्य तौर पर मुकाबला सत्तारूढ़ भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच ही दिख रही है. वहीं, अबकी भाजपा और सपा दोनों ही पार्टियों ने गठबंधन के लिए छोटी पार्टियों को चुना है. क्योंकि कई बार क्षेत्र व जिलेवार छोटी पार्टियां वोट कटवा की भूमिका में होती हैं और इनका जातिगत वोट फीक्स होता है. यही कारण है कि आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सत्तारूढ़ भाजपा और समाजवादी पार्टी ने जातिगत सियासी पार्टियों से गठबंधन को तरजीह दी है. दरअसल, सूबे की 403 में से 169 विधानसभा सीटों पर निषाद मतदाता निर्णायक की भूमिका में हैं. इनमें निषाद समुदाय की मल्लाह, केवट, बिन्द, मांझी, धीवर, कहार, गोड़िया, रायकवार आदि शामिल हैं.
वहीं, निषाद वोटों पर प्रभावी नियंत्रण बनाने को सूबे की सत्ताधारी भाजपा ने निषाद पार्टी (Nishad Party) से गठबंधन (BJP-Nishad Party Alliance) कर चुनावी नैया पार करने की तैयारी की है. जबकि अन्य पार्टियां भी प्रलोभन देकर निषादों के एकमुश्त पड़ने वाले वोट में सेंधमारी की कोशिश कर रहे हैं.
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यूपी में निषादों का सियासी प्रभाव
यूपी की 403 में 169 विधानसभा सीटों पर निषाद जाति के मतदाता निर्णायक की भूमिका में हैं. इनमें निषाद समुदाय की मल्लाह, केवट, बिन्द, मांझी, धीवर, कहार, गोड़िया, रायकवार आदि शामिल हैं. वहीं, निषाद समाज की मंशा है कि सूबे की योगी सरकार मझवार, तुरैहा, गोड़, बेलदार आदि को पुनः परिभाषित कर पूर्ववर्ती सरकारों की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को स्वीकार कर निषाद जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दे. बता दें कि यूपी की कुल आबादी में निषाद जाति की जनसंख्या करीब 12.91 फीसद के आसपास है. इधर, निषाद जाति के बड़े नेता लौटन राम निषाद (Nishads Leader Lautan Ram Nishad) का दावा है कि यूपी में 12.91 फीसद के आसपास निषाद जातियों की आबादी है. बावजूद इसके सियासी पार्टियां इनके साथ दोहरा बर्ताव करती हैं.
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इतना ही नहीं केंद्र व सूबे की योगी सरकार में निषाद समाज को राज्यमंत्री तक ही सीमित रखा गया है. लौटन राम निषाद की मानें तो भाजपा एक-दो नहीं दर्जनों मंत्री या एमएलसी बना दे, बिना आरक्षण के निषाद समाज भाजपा के झांसे में अबकी नहीं आएंगे. साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि निषाद समुदाय की मल्लाह, केवट, बिन्द, मांझी, धीवर, कहार, गोड़िया, रायकवार आदि जातियों को अनुसूचित जाति के आरक्षण का राजपत्र व शासनादेश जारी करने की सूरत में ही समाज के मतदाता भाजपा को समर्थन देंगे.
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इन जिलों में है निषाद जाति का प्रभाव
उत्तर प्रदेश में अगर जिलेवार निषाद जाति के प्रभाव की बात करें तो गोरखपुर, गाजीपुर, जौनपुर, फतेहपुर, कानपुर, सिद्धार्थनगर, अयोध्या, अंबेडकर नगर, चंदौली, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, बलिया, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही, प्रयागराज, बांदा, आगरा, औरैया, फिरोजाबाद, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली, बाराबंकी, बहराइच, पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर, बदायूं, बरेली, उन्नाव, इटावा, मैनपुरी, फर्रूखाबाद और बस्ती की दो विधानसभा सीटों पर निषाद समाज का 40 हजार से अधिक वोट है. वहीं, 71 विधानसभा क्षेत्रों में 70 हजार से अधिक निषाद मतदाता है.
वहीं, निषाद समाज के मतदाता गोरखपुर उपचुनाव में अपनी ताकत दिखा चुके हैं. संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद उपचुनाव में भाजपा को पटखनी दे चुके हैं. ऐसे में अपनी सियासी कमजोरी को मजबूती में तब्दील करने को भाजपा ने निषाद पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया है. लखनऊ में भाजपा के साथ हुई रैली के दौरान निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने भी अपनी आरक्षण वाली बात कही थी. उन्होंने कहा कि यदि भाजपा को प्रदेश में फिर से सरकार बनानी है तो युवाओं का ख्याल रखना होगा. युवाओं ने हमसे कहा है कि आरक्षण नहीं तो वोट नहीं देंगे. लेकिन हमने उन्हें मना किया है. बसपा और सपा भी अपनी तरक आकर्षित करती रही हैं.
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मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने ही फूलन देवी को मिर्जापुर से टिकट देकर उन्हें सांसद बनाने का काम किया था. वहीं, कल्याण सिंह सरकार में नदियों का पट्टा देने का काम किया गया था. इसका लाभ कई चुनावों में उन्हें मिलता रहा. इसके बाद अखिलेश यादव ने भी अपने मंत्रिमडल में निषाद समुदाय को प्रतिनिधित्व दिया था. हालांकि, इस बार के चुनाव में बिहार के निषादों की एक पार्टी विकासशील इंसान पार्टी भी मैदान में ताल ठोके हुए हैं. पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी भाजपा के साथ गठबंधन न होने से नाराज हैं और उन्होंने चेतावनी भी दी है.
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