लखनऊ: 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप की वारदात ने पूरे देश को सड़कों पर ला दिया था. दबाव में आई केंद्र सरकार ने महिला अपराधों को रोकने के लिए 2013 में निर्भया फंड बनाया. सरकार का उद्देश्य था कि महिला अपराधों में कमी लाई जाए. उत्तर प्रदेश को भी फंड मिला, कई योजनाएं चलाई गईं, कई जिलों में वन स्टॉप सेंटर खोलने के साथ-साथ कई और योजनाएं चलीं, लेकिन प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में कमी नहीं आई. आंकड़े बताते हैं कि इस फंड का उत्तर प्रदेश में 66.72 फीसदी इस्तेमाल हुआ. बावजूद इसके यूपी में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध बढ़ते रहे.
दिल्ली में निर्भया कांड के बाद महिला अपराधों के खिलाफ आम जनमानस में जिस तरह से उबाल दिखा था, उसके बाद सरकार ने उस समय सख्त कदम उठाए, लेकिन इसके बावजूद लगातार बढ़ रहे महिला अपराध के आंकड़े सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश में 2012 की वारदात के बाद महिला पर होने वाले अपराध के आंकड़ों में 120 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई. ये आंकड़े सवाल खड़े करते हैं निर्भया फंड की योजना पर, सरकारों की मंशा पर और जिम्मेदार अधिकारियों पर.
लापरवाही पर आक्रोशित महिलाएं
उत्तर प्रदेश में महिला सुरक्षा जटिल मुद्दा है. ईटीवी भारत ने महिला सुरक्षा और उनके लिये बनाए गए फंड को लेकर महिलाओं से बात की. बातचीत के बाद सामने आया कि प्रदेश में बढ़ रहे महिला अपराधों के बाद भी महिलाओं को अपने लिए गठित इस फंड की भी जानकारी नहीं है.
'फंड का नहीं हो रहा इस्तेमाल'
यूपी सरकार महिला आयोग के जरिए महिला अपराध की निगरानी करने की बात कहती है, लेकिन आयोग के आगे भी कई समस्याएं हैं. ईटीवी भारत की पड़ताल में आयोग की अध्यक्ष विमला बॉथम ने भी निर्भया फंड पर अपनी प्रतिक्रिया दी.
महिला सुरक्षा को लेकर उठाए जा रहे कदम
एडीजी नीरा रावत ने निर्भया फंड द्वारा महिलाओं की सुरक्षा को लेकर उठाए जा रहे कदमों के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इस फंड में लखनऊ को सेफ सिटी परियोजना के तहत पहली किस्त में 62.98 करोड़ रुपये दिए गए हैं.
फंड का नहीं हुआ सही तरह से उपयोग
महिला सुरक्षा को लेकर महिला एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने कहा प्रदेश में भले ही सरकार महिला सुरक्षा को लेकर तमाम दावे करती है, लेकिन प्रदेश में महिला सुरक्षा को लेकर वह उपाय और कदम नहीं उठाए गए, जिसके लिए निर्भया फंड बनाया गया था. आलम यह है कि इस फंड का प्रयोग तक नहीं किया गया.
क्या है निर्भया फंड
वर्ष 2012 में दिल्ली में हुए गैंगरेप की घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने वर्ष 2013 में निर्भया फंड की स्थापना की. निर्भया फंड द्वारा महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन महिलाओं को सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए सेफ सिटी परियोजना के तहत काम कर रहा है. निर्भया फंड के तहत इस परियोजना में 194.44 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है. यह धनराशि तीन किस्तों में सेफ सिटी परियोजना के लिए आवंटित की जानी है. इस परियोजना के लिए अभी तक 62.98 करोड़ रुपये की पहली किस्त आवंटित की गई है. वहीं पहली किस्त से 53.81 करोड़ रुपये ही अब तक खर्च हो पाए हैं.
निर्भया फंड के तहत इन कार्यों पर खर्च करना होता है पैसा
विशेष रूप से सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना.
महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाई गई परियोजनाओं पर खर्च किया जाता है.
महिलाओं की सुरक्षा के लिए इमरजेंसी रिस्पांस सपोर्ट सिस्टम (आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली) की व्यवस्था करनी होती है.
निर्भया फंड से पीड़ित को मुआवजा देने की व्यवस्था की जाती है.
निर्भया फंड का प्रयोग महिला और बाल साइबर अपराध पर लगाम लगाने के लिए किया जाता है.
निर्भया फंड के तहत वन स्टॉप सेंटर स्कीम संचालित की जाती है.
निर्भया फंड से महिला पुलिस वालंटियर को नियुक्त किया जाता है.
निर्भया फंड भी नहीं आया काम
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012 के बाद से लगातार उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. अपवाद के तौर पर वर्ष 2015 में वर्ष 2014 की तुलना में 2,940 महिला अपराध के मामले कम दर्ज किए गए.
वर्ष 2012 में 23,569 महिला अपराध के मामले दर्ज किए गए, जो पूरे देश का 9.65% था. वर्ष 2012 में महिला अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर था और पहले स्थान पर आंध्रप्रदेश था, जहां पर 28,171 महिला अपराध के मामले दर्ज किए गए थे.
वर्ष 2013 में उत्तर प्रदेश में महिला अपराध के मामलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई. उत्तर प्रदेश 10.51% की हिस्सेदारी के साथ देश का सबसे ज्यादा महिला अपराध वाला प्रदेश बन गया था. इस साल उत्तर प्रदेश में कुल 32,546 महिला अपराध के मामले दर्ज किए गए थे.
वर्ष 2014 में भी महिला अपराध के मामलों में बढ़ोतरी हुई. देश में महिला अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश 11.4% हिस्सेदारी के साथ पहले स्थान पर था. वर्ष 2014 में उत्तर प्रदेश में 38,467 महिला अपराध के मामले दर्ज किए गए थे.
वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2015 में महिला अपराध के मामले में गिरावट दर्ज की गई थी. वर्ष 2015 में 35,527 महिला अपराध के मामले दर्ज किए गए थे, जिसकी देश में हिस्सेदारी 10.3% थी.
वर्ष 2016 में महिला अपराध में बढ़ोतरी दर्ज की गई थी. महिला अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश की 14.5% हिस्सेदारी थी. वर्ष 2016 में कुल 49,262 महिला अपराध के मामले दर्ज किए गए थे.
वर्ष 2017 में भी महिला अपराध के मामलों में इजाफा हुआ और उत्तर प्रदेश में 56,011 महिला अपराध के मामले दर्ज किए गए. जो पूरे देश के महिला अपराधों का 15.6% थे.
वर्ष 2018 में भी महिला अपराध के मामलों में इजाफा हुआ, वर्ष 2018 में 59,445 महिला अपराध के मामले दर्ज किए गए. वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश में महिला अपराध के मामले पूरे देश के महिला अपराधों का 15.7% थे.
वर्ष 2019 में भी महिला अपराध के मामले में इजाफा हुआ. वर्ष 2019 में 59,853 महिला अपराध के मामले दर्ज किए गए. वर्ष 2019 में उत्तर प्रदेश में महिला अपराध के मामले पूरे देश के महिला अपराधों का 14.7% थे.
प्रदेश में लगातार महिलाओं और बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं हो रही हैं. बीते दिनों हाथरस में 19 वर्षीय बेटी के साथ हत्या और दुष्कर्म के मामले ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया. इसी दौरान बलरामपुर में भी एक बेटी के साथ दुष्कर्म की वारदात हुई. इन दो घटनाओं से पहले लखीमपुर में 20 दिन के अंदर तीन दुष्कर्म की घटनाओं ने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया. महिलाओं के खिलाफ हो रही यह घटनाएं तमाम सवाल खड़े करती हैं, जैसे महिला सुरक्षा को लेकर इतनी बड़ी धनराशि आवंटित की जा रही है. उसके बावजूद भी महिला अपराधों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है. सरकार ऐसे कौन से कदम उठाए, जिससे इन अपराधों पर अंकुश लग पाए. सवाल बहुत हैं पर सरकारों से जवाब मिलते नहीं दिखते.