लखनऊ : केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय एक नया कानून बनाने जा रहा है. जिसमें वितरण हानियों यानी कि बिजली चोरी का खामियाजा जनता पर डाला जाएगा. केंद्र सरकार की तरफ से प्रस्तावित कानून पर देश के सभी उपभोक्ताओं व संबंधित पक्षों से 11 मई तक आपत्तियां मांगी गई हैं. इसके बाद केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय इलेक्ट्रिसिटी रूल 2023 की कुछ धाराओं में संशोधन करना चाहता है. वास्तव में इस कानून के जरिए बिजली कर्मचारियों और अधिकारियों की गड़बड़ियों व लापरवाहियों से हुए नुकसान की भरपाई अपरोक्ष रूप से उपभोक्ताओं से करने का रास्ता निकाला जा रहा है.
जारी विज्ञप्ति के मुताबिक केंद्र सरकार का मानना है कि केंद्र सरकार व राज्य सरकार के बीच वितरण हानियों पर जो भी ट्रैजेक्टरी सेट की जाएगी उसे राज्य के विद्युत नियामक आयोग को मानना पड़ेगा. केंद्र सरकार की तरफ से प्रस्तावित कानून में यह बात भी लिखी गई है कि वितरण हानियों से जो भी नुकसान होगा उसकी आधी भरपाई प्रदेश के उपभोक्ताओं से की जाएगी और आधी भरपाई बिजली निगम करेंगे. उसका भार बिजली दर में उपभोक्ताओं पर पास किया जाएगा. इसका सीधा सा मतलब ये होगा कि भारत सरकार जो आरडीएसए स्कीम ला रही है और उस पर राज्य सरकार ने अपनी सहमति दी है उसमें जो भी वितरण हानियां अलग-अलग साल में प्रस्तावित हैं उस पर ही बिजली दर तय की जाए.
उपभोक्ता परिषद ने इस प्रस्तावित नए कानून को देश का काला कानून करार दिया है. कहा है कि इसका प्रभाव सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के उपभोक्ताओं पर पड़ेगा. उत्तर प्रदेश देश का ऐसा राज्य है जहां वितरण हानियों यानी कि बिजली चोरी का खामियाजा पिछले चार सालों से प्रदेश के उपभोक्ताओं की बिजली दरों में नहीं पास होता. कभी सरकार ने कहा कि ट्रैजेक्टरी की वितरण हानियां मानी जाएं और अब आरडीएसएस में प्रस्तावित वितरण हानियां मानने की बात की जा रही है. ये पूरी तरह उद्योगपतियों को बड़ा लाभ देने की साजिश की जा रही है. चोर दरवाजे से स्मार्ट प्रीपेड मीटर को बढ़ावा देने के लिए यह सब किया जा रहा है. उपभोक्ता परिषद के माध्यम से केंद्रीय कानून के खिलाफ ऊर्जा मंत्रालय को आपत्तियां भेजी जाएंगी.
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि वर्ष 2021-22 में जहां उत्तर प्रदेश में 11.08 प्रतिशत वितरण हानियों पर बिजली दर तय की गई थी. वहीं वर्ष 2022- 23 में 10.67 प्रतिशत वितरण हानियों पर बिजली दर तय की गई. वर्तमान 2023- 24 में आरडीएसएस में जो वितरण हानियां प्रस्तावित की गई हैं वह लगभग 14.90 प्रतिशत हैं. ऐसे में इस पर अगर भविष्य में भी बिजली दर तय की जाए तो सीधा सीधा 8 से 10 प्रतिशत बिजली दरों में बढ़ोतरी होगी, जो पूरी तरह गलत है. ऐसे में केंद्र सरकार का प्रस्तावित कानून उत्तर प्रदेश के उपभोक्ताओं के लिए काला कानून है. इसका हर स्तर पर विरोध किया जाएगा.
अवधेश वर्मा ने कहा कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय में बैठे हुए केंद्रीय ऊर्जा सचिव जब उत्तर प्रदेश में पाॅवर काॅरपोरेशन के चेयरमैन के पद पर थे तब भी ये प्रयास किया था, लेकिन विद्युत नियामक आयोग ने उनके इस प्रयास को नाकाम साबित कर दिया था. अब केंद्र में बैठकर मनमाने तरीके से कानून बनाने में लगे हैं. केंद्रीय ऊर्जा सचिव को यह नहीं भूलना चाहिए कि इससे देश और प्रदेश के उपभोक्ताओं पर बड़ा भार पड़ेगा. आए दिन केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय कभी विदेशी कोयला खरीदने के लिए दबाव बनाता है. कभी महंगा स्मार्ट प्रीपेड मीटर खरीदने के लिए. केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के खिलाफ एक उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए कि पिछले दो साल में उपभोक्ता विरोधी कानून ही क्यों बनाए जा रहे हैं?
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