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दहेज की मांग से प्रताड़ित मुस्लिम महिलाओं ने बताई अपबीती - अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

उत्तर प्रदेश में दहेज की मांग को लेकर ससुराल में प्रताड़ित होने वाली महिलाओं को न्याय नहीं मिल रहा है. कहने के तो विश्व भर में आज महिला दिवस मनाया जा रहा है लेकिन महिलाएं आज भी अपराधों की शिकार हो रही हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आयोजित कार्यक्रम में पीड़ित महिलाओं ने अपनी अपबीती सुनाई.

मुस्लिम महिलाओं ने बताई अपबीती
मुस्लिम महिलाओं ने बताई अपबीती
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Published : Mar 8, 2021, 1:41 AM IST

लखनऊः शादी के बाद दहेज की मांग और लड़की की चाहत में ससुराल में प्रताड़ित होने वाली महिलाओं को थाना और कचहरी में भी समय से न्याय नहीं मिल पा रहा है. महिला दिवस की पूर्व संध्या पर रविवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आयोजित कार्यक्रम में पीड़ित महिलाओं ने अपनी अपबीती सुनाई.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आयोजित किया कार्यक्रम.

2010 में हुई थी सबिहा की शादी
प्रेस क्लब में आयोजित कार्यक्रम में आई सबिहा ने बताया कि उनकी शादी साल 2010 में कश्मीर के जावेद अहमद डार से हुई थी. उन्होंने बताया कि शादी को लेकर सजाए हसीन सपने चार महीनों में टूट गए. पति ने पैसों की मांग शुरू कर दी, जिस पर मायके वालों ने कुछ पैसे दिए भी लेकिन ससुराल की मांग नहीं रुकी. उनका कहना है कि वह जब गर्भवती हुई तो ससुराल वाले खुश होने के बजाय लड़की पैदा होने की आशंका से मायके भेज दिया.

2013 से अब तक नहीं मिला न्याय
सबिहा ने बताया कि साल 2012 में मेरा बेटा दुनिया में आया तो उम्मीद बनी कि सब सब ठीक होगा. सुलह के लिए मायके वाले कश्मीर गए तो वहां मारपीट की गई. 2013 में केस दायर किया लेकिन वहां भी अब तक न्याय नहीं मिला. इसी तरह कानपुर की फरजाना, लखनऊ की सोफिया शबनम सहित कई महिलाओं ने अपनी अपबीती बताई.

लखनऊः शादी के बाद दहेज की मांग और लड़की की चाहत में ससुराल में प्रताड़ित होने वाली महिलाओं को थाना और कचहरी में भी समय से न्याय नहीं मिल पा रहा है. महिला दिवस की पूर्व संध्या पर रविवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आयोजित कार्यक्रम में पीड़ित महिलाओं ने अपनी अपबीती सुनाई.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आयोजित किया कार्यक्रम.

2010 में हुई थी सबिहा की शादी
प्रेस क्लब में आयोजित कार्यक्रम में आई सबिहा ने बताया कि उनकी शादी साल 2010 में कश्मीर के जावेद अहमद डार से हुई थी. उन्होंने बताया कि शादी को लेकर सजाए हसीन सपने चार महीनों में टूट गए. पति ने पैसों की मांग शुरू कर दी, जिस पर मायके वालों ने कुछ पैसे दिए भी लेकिन ससुराल की मांग नहीं रुकी. उनका कहना है कि वह जब गर्भवती हुई तो ससुराल वाले खुश होने के बजाय लड़की पैदा होने की आशंका से मायके भेज दिया.

2013 से अब तक नहीं मिला न्याय
सबिहा ने बताया कि साल 2012 में मेरा बेटा दुनिया में आया तो उम्मीद बनी कि सब सब ठीक होगा. सुलह के लिए मायके वाले कश्मीर गए तो वहां मारपीट की गई. 2013 में केस दायर किया लेकिन वहां भी अब तक न्याय नहीं मिला. इसी तरह कानपुर की फरजाना, लखनऊ की सोफिया शबनम सहित कई महिलाओं ने अपनी अपबीती बताई.

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