लखनऊ: 22 अगस्त से घरों और मंदिरों में विराजे गणपति का मंगलवार को विसर्जन किया गया. हर साल नदियों और तालाबों में गणेश प्रतिमा का विसर्जन होता था. लेकिन इस साल मूर्ति विसर्जन को लेकर सरकार ने गाइडलाइन जारी की थी, जिसके तहत लोगों ने अपने घरों में ही मूर्ति विसर्जन किया.
हर वर्ष मूर्ति विसर्जन पर घाटों पर लोगों का जन सैलाब उमड़ता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. इस बार राजधानी लखनऊ में शहर के सभी घाटों पर बैरिकेडिंग की गई थी और सभी घाटों पर पुलिस के जवान मौजूद थे. कोरोना संक्रमण के कारण इस बार गंगा सहित प्रदेश की अन्य नदियों में मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी गई थी.
जानकारों के अनुसार नदियों में मूर्ति विसर्जन से जल प्रदूषण बढ़ता है, जो नदियों और तालाबों में रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए घातक साबित होता है. अप्रत्यक्ष रूप से लोगों के जीवन पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है. ईटीवी भारत ने भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान के निदेशक प्रोफेसर आलोक धवन से इस मुद्दे पर विस्तृत बातचीत की.
ईटीवी भारत से बातचीत में प्रोफेसर आलोक धवन ने बताया कि छोटे-छोटे तालाबों और नदियों में गणेश प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है. बात अगर तालाबों की करें तो प्रतिमा के विसर्जन से पानी में अम्लता बढ़ जाती है, जिसका प्रभाव जीव-जंतुओं पर पड़ता है और वह मरने लगते हैं.
उन्होंने बताया कि प्रतिमा को बनाने में प्लास्टर ऑफ पेरिस का प्रयोग किया जाता है. अगर पानी में लगातार प्रतिमा का विसर्जन होगा, तो इससे पानी छिछला हो जाएगा. तालाब में पानी रोकने की क्षमता कम हो जाएगी.
प्रोफेसर धवन के मुताबिक, मूर्तियों को आकर्षक बनाने के लिए तरह-तरह के पेंट का भी प्रयोग किया जाता है. इसकी वजह से तालाबों में जैव विविधता पर प्रभाव पड़ता है. पानी में उगने वाले पेड़-पौधों को ऑक्सीजन अच्छी तरीके से नहीं मिल पाता. इसके साथ-साथ पानी से दुर्गंध आने लगती है.
भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान के निदेशक ने कहा कि अप्रत्यक्ष रूप से मानव जीवन पर भी इसका प्रभाव पड़ता है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग तालाब और नदियों के किनारे फसल और सब्जियां उगाते हैं. मूर्तियों को नदियों और तालाबों में विसर्जन करने से कई सारे हानिकारक पदार्थ फसलों में मिल जाते हैं. इससे कई प्रकार की बीमारियां भी फैलती हैं.