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लखनऊ में लोक वाद्य हुड़का और गढ़वाली नृत्य में दिखे पर्वतीय लोक संस्कृति के रंग

बुधवार को लखनऊ में मुनाल संस्था (Munal Sansthan in Lucknow) के कलाकारों ने गढ़वाली लोक संगीत और नृत्य के रंग पेश किए. यह प्रोग्राम अकादमी की वाल्मीकि रंगशाला गोमती नगर में हुआ.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 9, 2023, 10:22 AM IST

लखनऊ: बुधवार को भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् आईसीसीआर और उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की ओर से क्षितिज श्रंखला के तहत मुनाल संस्था के कलाकारों ने गढ़वाली लोक संगीत और नृत्य के रंग (Artists performed Garhwali folk music and dance) पेश किए. कार्यकम अकादमी के वाल्मीकि रंगशाला गोमती नगर में हुआ. क्षेत्रीय निदेशक अरविंद कुमार ने कलाप्रेमियों व कलाकारों का स्वागत कर आईसीसीआर की योजनाओं के बारे में बताया आभार जताया.

मुनाल संस्था की स्थापना वर्ष 1981 में की गई थी. इस संस्था का मुख्य उद्देश्य लुप्त हो रही पर्वतीय लोक संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन करके लोक संस्कृति को बचाए रखना है. मुनाल संस्था का नाम पहाड़ी पक्षी मुनाल से लिया गया है और वर्तमान में यह पक्षी उत्तराखंड का राज्य पक्षी माना जाता है. मुनाल संस्था राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर के मंचों और दूरदर्शन के माध्यम से लुप्त हो रही भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार करती आ रही है.

कलाकारों ने गढ़ वंदना- बोलांदा बढ़ी धैय लगाणू च केदारनाथ, बादी बदिण गीत - मधूली हिरा हिर तीले चारू बोल, खुदेव गीत - हयूँद का मैना स्थायी तुम बिन कनके रैना, थड्‌या चौफुला-दक सौ - गीत - ब्याली सैया रे के बारता रे तू और हास्य गीत नेपाल निजाणा मि गढ़‌वाल ही प्यारो हो... जैसे पारंपरिक पर्वतीय लोक गीत और नृत्य से हर किसी को प्रभावित किया. ऋचा जोशी और दीपक सिंह ने शानदार गायकी से रंग जमा दिया.

वहीं ख्याली सिंह, प्रेम सिंह विष्ट, गोविन्द बोरा, विक्रम विष्ट, लवली घिल्याल, सुश्री मीतू सिंह, अवंतिका, मानसी, दीपिका जोशी ने नृत्य किया. रविकुमार के ढोलक वादन और पारंपरिक लोकवादय हुडका का वादन रवि कुमार ने किया.

ये भी पढ़ें- जुए में दो लाख हारने पर दांव जीतने वाले के सामने पति ने पेश की पत्नी, बोला-खुश कर देगी तो रकम माफ हो जाएगी

लखनऊ: बुधवार को भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् आईसीसीआर और उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की ओर से क्षितिज श्रंखला के तहत मुनाल संस्था के कलाकारों ने गढ़वाली लोक संगीत और नृत्य के रंग (Artists performed Garhwali folk music and dance) पेश किए. कार्यकम अकादमी के वाल्मीकि रंगशाला गोमती नगर में हुआ. क्षेत्रीय निदेशक अरविंद कुमार ने कलाप्रेमियों व कलाकारों का स्वागत कर आईसीसीआर की योजनाओं के बारे में बताया आभार जताया.

मुनाल संस्था की स्थापना वर्ष 1981 में की गई थी. इस संस्था का मुख्य उद्देश्य लुप्त हो रही पर्वतीय लोक संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन करके लोक संस्कृति को बचाए रखना है. मुनाल संस्था का नाम पहाड़ी पक्षी मुनाल से लिया गया है और वर्तमान में यह पक्षी उत्तराखंड का राज्य पक्षी माना जाता है. मुनाल संस्था राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर के मंचों और दूरदर्शन के माध्यम से लुप्त हो रही भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार करती आ रही है.

कलाकारों ने गढ़ वंदना- बोलांदा बढ़ी धैय लगाणू च केदारनाथ, बादी बदिण गीत - मधूली हिरा हिर तीले चारू बोल, खुदेव गीत - हयूँद का मैना स्थायी तुम बिन कनके रैना, थड्‌या चौफुला-दक सौ - गीत - ब्याली सैया रे के बारता रे तू और हास्य गीत नेपाल निजाणा मि गढ़‌वाल ही प्यारो हो... जैसे पारंपरिक पर्वतीय लोक गीत और नृत्य से हर किसी को प्रभावित किया. ऋचा जोशी और दीपक सिंह ने शानदार गायकी से रंग जमा दिया.

वहीं ख्याली सिंह, प्रेम सिंह विष्ट, गोविन्द बोरा, विक्रम विष्ट, लवली घिल्याल, सुश्री मीतू सिंह, अवंतिका, मानसी, दीपिका जोशी ने नृत्य किया. रविकुमार के ढोलक वादन और पारंपरिक लोकवादय हुडका का वादन रवि कुमार ने किया.

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