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एंबुलेंस मामले में मुख्तार अंसारी की जमानत याचिका खारिज

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Published : Jul 22, 2022, 9:33 PM IST

लखनऊ की हाईकोर्ट बेंच ने एम्बुलेंस मामले में मुख्तार अंसारी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है.

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लखनऊ की हाईकोर्ट बेंच

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए एम्बुलेंस खरीदने और आपराधिक कृत्यों में उसके इस्तेमाल के मामले में माफिया मुख्तार अंसारी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है. साथ ही न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यह भारतीय लोकतंत्र की त्रासदी और उस पर लगा एक दाग है कि मुख्तार अंसारी जैसे अपराधी यहां विधि निर्माता हैं. न्यायालय ने कहा कि लोगों के दिल और दिमाग में अभियुक्त का भय है, कोई भी उसे और उसके आदमियों को और उसकी राजनीति को चुनौती देने की हिम्मत नहीं करता. लिहाजा अभियोजन की इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि अभियुक्त जमानत पर बाहर आकर साक्ष्यों और गवाहों को प्रभावित कर सकता है.

यह आदेश जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने मुख्तार अंसारी की जमानत याचिका पर दिया. याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता वीके शाही ने दलील दी कि 21 दिसम्बर 2013 को डॉ. अल्का राय के नाम से बाराबंकी के परिवहन विभाग में एक एम्बुलेंस का फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पंजीकरण कराया गया.

यह भी पढ़ें- एलडीए ने चलाया अभियान, 186 सुलभ आवास कराये गये कब्जा मुक्त

मामले का पता चलने पर जब विवेचना हुई तो डॉ. अल्का राय स्वयं स्वीकार किया कि मुख्तार अंसारी के आदमी उनके पास कुछ दस्तावेज लेकर आए थे, जिस पर उन्होंने भय और दबाव में दस्तखत कर दिए. यहीं नहीं विवेचना शुरू होने के बाद महिला डॉक्टर पर यह दबाव भी डाला गया कि वह कहें कि मुख्तार की पत्नी अफ्सा अंसारी 4-5 दिन के लिए एम्बुलेंस को किराए पर पंजाब ले गई थी.

वहीं, कोर्ट ने पाया कि मामले में एम्बुलेंस का उपयोग अत्याधुनिक अवैध हथियारों से लैस मुख्तार के आदमियों को लाने-ले जाने के लिए भी किए जाने का आरोप है. कोर्ट ने अपने आदेश में मुख्तार अंसारी के खिलाफ दर्ज 56 आपराधिक मुकदमों का भी जिक्र किया है.

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लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए एम्बुलेंस खरीदने और आपराधिक कृत्यों में उसके इस्तेमाल के मामले में माफिया मुख्तार अंसारी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है. साथ ही न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यह भारतीय लोकतंत्र की त्रासदी और उस पर लगा एक दाग है कि मुख्तार अंसारी जैसे अपराधी यहां विधि निर्माता हैं. न्यायालय ने कहा कि लोगों के दिल और दिमाग में अभियुक्त का भय है, कोई भी उसे और उसके आदमियों को और उसकी राजनीति को चुनौती देने की हिम्मत नहीं करता. लिहाजा अभियोजन की इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि अभियुक्त जमानत पर बाहर आकर साक्ष्यों और गवाहों को प्रभावित कर सकता है.

यह आदेश जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने मुख्तार अंसारी की जमानत याचिका पर दिया. याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता वीके शाही ने दलील दी कि 21 दिसम्बर 2013 को डॉ. अल्का राय के नाम से बाराबंकी के परिवहन विभाग में एक एम्बुलेंस का फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पंजीकरण कराया गया.

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मामले का पता चलने पर जब विवेचना हुई तो डॉ. अल्का राय स्वयं स्वीकार किया कि मुख्तार अंसारी के आदमी उनके पास कुछ दस्तावेज लेकर आए थे, जिस पर उन्होंने भय और दबाव में दस्तखत कर दिए. यहीं नहीं विवेचना शुरू होने के बाद महिला डॉक्टर पर यह दबाव भी डाला गया कि वह कहें कि मुख्तार की पत्नी अफ्सा अंसारी 4-5 दिन के लिए एम्बुलेंस को किराए पर पंजाब ले गई थी.

वहीं, कोर्ट ने पाया कि मामले में एम्बुलेंस का उपयोग अत्याधुनिक अवैध हथियारों से लैस मुख्तार के आदमियों को लाने-ले जाने के लिए भी किए जाने का आरोप है. कोर्ट ने अपने आदेश में मुख्तार अंसारी के खिलाफ दर्ज 56 आपराधिक मुकदमों का भी जिक्र किया है.

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