लखनऊ: आगामी विधानसभा चुनाव (vidhansabha election) को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी माइक्रो मैनेजमेंट करने में जुट गई है. मोदी-शाह के भाजपा युग में पार्टी 'बूथ जीतो चुनाव जीतो' के फार्मूले पर काम करती आ रही है. मौजूदा समय में भाजपा का ग्राउंड पर मौजूद कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने पर जोर है. इसके लिए संगठन के नेताओं को कार्यकर्ताओं से संवाद करने के लिए लगाया जाएगा और बचे हुए समय में सरकार की योजनाओं से जोड़ा जाएगा. उन्हें यह महसूस कराया जाएगा कि पार्टी उनकी है. संगठन और चुनाव भी उनका है. उम्मीदवार कोई भी हो बूथ पर चुनाव उन्हें लड़ना है. इसी रणनीति के तहत पार्टी ने काम करना शुरू कर दिया है.
प्रदेश के डेढ़ लाख बूथों पर भाजपा का ताना-बाना
उत्तर प्रदेश में 403 विधानसभा सीटें हैं. पिछली बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन ने 325 सीटें जीती थी. 312 सीटें अकेले भाजपा के खाते में रही हैं. पिछले चुनाव में भी भाजपा ने 'बूथ जीतो चुनाव जीतो' का नारा दिया था. पार्टी एक बार फिर उसी रणनीति पर काम करने में जुट गई है. राज्य में एक लाख 63 हजार बूथ हैं. करीब डेढ़ लाख बूथों पर भाजपा की बूथ कमेटियां गठित की जा चुकी हैं. सभी बूथ अध्यक्षों के साथ पार्टी का नित्य संवाद चल रहा है. पार्टी आगामी चुनाव को लेकर उनका मन टटोल रही है. बूथ अध्यक्षों को पार्टी ताकतवर बनाने पर जोर दे रही है. इसी रणनीति के तहत पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष समेत अन्य कद्दावर नेता कई बूथ अध्यक्षों के घर गए हैं.
बूथों से आई रिपोर्ट में विधायकों की खुल रही पोल
पार्टी बूथ अध्यक्षों के संपर्क में है. उनसे क्षेत्र की स्थिति के बारे में पूरी रिपोर्ट ली जा रही है. उनके क्षेत्र में विधायकों द्वारा कराए गए कार्य, सरकार की योजनाओं का लोगों को मिला लाभ समेत संगठन की गतिविधियों को लेकर फीडबैक लिया जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक बड़ी संख्या में विधायकों की रिपोर्ट खराब बताई जा रही है. उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है. कार्यकर्ता उनसे नाराज हैं. इन विधायकों में ज्यादातर वह लोग हैं, जो दूसरे दल से आकर भाजपा का टिकट लेकर चुनाव जीत गए. उनके बारे में रिपोर्ट है कि वह वापस अपने दल में भागने की कवायद में हैं.
बूथ अध्यक्षों की रिपोर्ट पर विधायकों का कट सकता है टिकट
बूथों से आई रिपोर्ट के मुताबिक, दूसरी बात यह है कि ऐसे विधायकों ने इन साढ़े चार वर्षों के दौरान अपने पूर्व के राजनीतिक दलों से जुड़े कार्यकर्ताओं को ज्यादा लाभ पहुंचाया है. उनकी ज्यादा मदद की. उनके साथ ज्यादा खड़े हुए दिखाई दिए. भाजपा के कार्यकर्ताओं से उन्होंने दूरी बनाकर रखी. उनकी वजह से क्षेत्र के कार्यकर्ता नाराज चल रहे हैं. रूठे कार्यकर्ताओं को मनाने और दोबारा उस सीट पर जीत हासिल करने के लिए भाजपा उन विधायकों का टिकट काट सकती है. यानी कि बूथ अध्यक्षों की रिपोर्ट पर विधायकों का टिकट कट सकता है. इससे पहले पार्टी अपने कार्यकर्ताओं में भरोसा पैदा करने के लिए सांगठनिक स्तर पर गतिविधियां बढ़ाने जा रही है.
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वरिष्ठ नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक को मनाने पर होगा जोर
पार्टी नेतृत्व को क्या पता है कि अगर कार्यकर्ता घर बैठ गया तो आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान हो सकता है. लिहाजा उन्हें मनाने की कवायद शुरू की जा रही है. यूपी भाजपा के एक पदाधिकारी कहते हैं कि यह कोई हमारे लिए नई बात नहीं है. इससे पहले वाले चुनाव में भी हम लोगों ने अपने वरिष्ठ नेताओं, पूर्व पदाधिकारियों की एक सूची तैयार की थी. उन लोगों के छोटे-छोटे सम्मेलन किए गए थे. प्रदेश अध्यक्ष समेत अन्य पदाधिकारी ऐसे नेताओं के घर जाकर उनसे मुलाकात की थी. बूथ अध्यक्षों का सम्मेलन किया गया था. उस सम्मेलन को राष्ट्रीय अध्यक्ष ने संबोधित किया था.
इस बार भी चुनाव से पहले यह सारी चीजें पार्टी करने जा रही है. भाजपा का संगठन एक परिवार के रूप में काम करता है. इस पर राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी का कहना है की जिस दल की सरकार होती है, उसमें कार्यकर्ताओं की नाराजगी स्वाभाविक है. भाजपा कार्यकर्ताओं की अपेक्षाओं पर सरकार खरा नहीं उतरी. इसलिए उनमें नाराजगी होगी. उसे दूर करने के लिए भाजपा हर सम्भव कोशिश करेगी. भाजपा कार्यकर्ता, कैडर, बूथ और संगठन को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ती है. वह दिखने लगा है. चुनाव करीब आने के साथ ही यह सारी गतिविधियां और भी तेज दिखाई देंगी.