लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने निर्धारित शर्तों के साथ अब कोरोना के माइल्ड (कम) लक्षण वाले मरीजों को होम आइसोलेशन की अनुमति दे दी है. बीते कुछ दिनों में राज्य में बड़ी संख्या में कोरोना वायरस के मरीज सामने आ रहे हैं. इस वजह से अस्पतालों में भी व्यवस्थाएं चरमरा रही है. इस लिहाज से डॉक्टरों का कहना है कि माइल्ड लक्षण के साथ आ रहे मरीजों को होम आइसोलेशन का फैसला गंभीर मरीजों के लिए वरदान साबित हो सकता है. इस बारे में ईटीवी भारत ने डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के पैथोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुब्रत चंद्रा से खास बातचीत की.
क्रिटिकल मरीजों को मिलेगा फायदा
डॉ. सुब्रत चंद्र कहते हैं कि होम आइसोलेशन का फैसला कई मायनों में मरीजों के हक में है. मरीज जो एसिंप्टोमेटिक हैं, ऐसे मरीजों को आइसोलेशन में कई फायदे हो सकते हैं. इसके साथ ही जो गंभीर मरीज हैं, जिन्हें अस्पताल में लाने की जरूरत है, उन्हें फायदा मिलेगा.
डॉ. चंद्रा के अनुसार, माइल्ड लक्षणों वाले मरीजों में या बिना लक्षणों वाले मरीजों को अस्पताल आने की आवश्यकता नहीं होती. अस्पतालों में 80% तक ऐसे ही मरीज भर्ती हैं, जो अपने घर पर रहने से ही ठीक हो सकते हैं. होम आइसोलेशन के दौरान वह आसपास अधिक साफ-सफाई रख सकते हैं.
डॉक्टर चंद्रा कहते हैं कि आइसोलेशन के दौरान मरीज अपने कमरे में ही रहें. यदि ज्यादा कमरे न हो तो किसी एक कमरे में पार्टीशन लगा लें और खिड़की के पास वाले कमरे में रहें. साफ सफाई का पूरा ध्यान रखें. ऐसे मरीज यदि घर में शिफ्ट हो जाएंगे, तो क्रिटिकली इन मरीजों को अस्पताल में आसानी से भर्ती किया जा सकता है. क्रिटिकली मरीजों में रेस्पिरेटरी संबंधी मरीज, आईजी सिम्टम्स संबंधी मरीज, रीनल या क्रॉनिक बीमारियों से संबंधित मरीज आदि शामिल होते हैं. ऐसी अवस्था में जिन्हें इस वक्त बेहतर सुविधाएं उपलब्ध होनी जरूरी है. वह कोरोना के लिए बनाए गए level-2 और level-3 अस्पतालों में भर्ती हो सकते हैं.
उन्होंने बताया कि मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है और आगे आने वाले दिनों में भी बढ़ेगी. ऐसे में उन मरीजों को जगह अधिक मिल सकेगी, जो गंभीर हैं. इसके अलावा ऐसे मरीज जो एसिंप्टोमेटिक हैं और घरों में रह रहे हैं, यदि उनकी तबीयत बिगड़ती है और अस्पताल आने की जरूरत पड़ती है तो उन्हें अस्पताल लाया जा सकता है.
डॉ. सुब्रत बताते हैं कि एक अस्पताल में यदि 100 मरीज भर्ती हैं, तो उनमें से 80% मरीज एसिंप्टोमेटिक या फिर माइल्ड लक्षणों के साथ भर्ती होते हैं. केवल 10% मरीज ऐसे होते हैं जिनमें गंभीर लक्षण होते हैं या जिनकी अवस्था अस्पताल लाए जाने जैसी होती है. 0-5% तक के मरीज ऐसे होते हैं, जिन्हें वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है. बचे हुए 5% तक के मरीज किसी भी तरह के आ सकते हैं, यानी यह पेशेंट ज्यादा तबीयत खराब होने पर हॉस्पिटलाइजेशन के लिए आ सकते हैं या फिर उन्हें वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है या फिर ऐसा न होने पर वह माइल्ड लक्षणों के साथ भर्ती हो रहे होते हैं.
होम क्वारंटाइन में संक्रमण फैलने का खतरा है कम
डॉ. सुब्रत कहते हैं कि अगर संक्रमित होम क्वारंटाइन रहेगा, तो उससे संक्रमण फैलने का खतरा कम रहेगा. इसके विपरीत यदि वह अस्पताल के वार्ड में रहता है तो उसके बगल में रह रहे व्यक्ति संपर्क में आ सकते हैं. हर व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता अलग-अलग होती है, तो ऐसे में हमें होम आइसोलेशन से लॉन्ग टर्म में फायदा मिलेगा और इन्फेक्शन कम होने की संभावनाएं भी अधिक रहेंगी.