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लखनऊ: बदलते मौसम में बढ़ रहे अस्थमा रोगी, विशेषज्ञों से जानें बचाव के तरीके

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Published : Jan 8, 2020, 2:56 PM IST

मौसम के बदलते ही अस्थमा के रोगियों की संख्या में भी इजाफा होने लगता है. ऐसे में ईटीवी भारत ने कुछ विशेषज्ञों से बात की और इस जाना कि कैसे इस रोग से बचाव किया जा सकता है.

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अस्थमा से बचाव के जानें तरीके.

लखनऊ: मौसम में बदलाव के साथ ही सांस संबंधी रोगियों की परेशानियां भी बढ़ने लगती हैं. इनमें अस्थमा जैसी बीमारी सर्दियों में काफी अधिक परेशान करती है. ऐसे में ईटीवी भारत ने कुछ विशेषज्ञों से बातचीत की और जानने की कोशिश की कि बच्चों और बड़ों में अस्थमा के लिए इनहेलर्स कितने फायदेमंद हो सकते हैं और सर्दी के मौसम में अस्थमा रोगियों को क्या बचाव करने की जरूरत है.

अस्थमा की परिभाषा जानने की कोशिश की जाए तो सांस के रोगों के एक्सपर्ट डॉक्टर ए. के. सिंह कहते हैं कि अस्थमा कोई बीमारी नहीं है, यह एक शारीरिक अवस्था है. इस अवस्था को हम पूरी तरह नियंत्रण में ला सकते हैं और एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं.

50 में एक बच्चा होता है अस्थमा से पीड़ित
बच्चों में अस्थमा की बढ़ती दरों के बारे में राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान की पीडियाट्रिक्स विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर शीतांशु कहती हैं कि हमारी हर रोज की ओपीडी में एक नया बच्चा अस्थमा का रोगी होता है. ऐसे में हम कह सकते हैं कि 50 में एक बच्चा हर रोज नया पेशेंट डायग्नोज किया जाता है.

बढ़ रहे अस्थमा के मरीज.

ये है अस्थमा का कारण
अगर कारणों की बात की जाए तो डॉक्टर शीतांशु कहती हैं कि बच्चों में अस्थमा होने का एक बहुत बड़ा कारण स्मोक एक्सपोसर होता है. आजकल छोटे-छोटे बच्चों में अस्थमा की बीमारियां अधिक देखने को मिल रही है और यह दर लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि मैटरनल स्मोक एक्स्पोजर इसका कारण हो सकता है. यदि गर्भावस्था में मां धूम्रपान करती हैं या फिर पिता धूम्रपान करते हैं तो इसका सीधा असर नवजात पर हो सकता है. इसके अलावा आजकल इन्फेक्शन कम होता जा रहा है और एलर्जी बढ़ रही है इस वजह से भी अस्थमा के रोगी बढ़ते जा रहे हैं.

यह भी पढ़ें- दिवाली के पटाखों ने जिंदगी में घोला जहर, अस्पताल में बढ़ी मरीजों की संख्या

इस रोग को लेकर फैली हैं कई भ्रांतियां
अस्थमा के रोग में दवाइयों के बदले इनहेलर्स के प्रचलन को बढ़ाने के बारे में डॉ. श्रीवास्तव कहती हैं कि इन्हेलर्स को लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई है. इन भ्रांतियों में सबसे बड़ी बात यह सामने आती है कि लोग डरे होते हैं. उन्हें लगता है कि इससे इन्हेलर्स की आदत पड़ जाएगी और बच्चा ताउम्र अस्थमा का रोगी रहेगा, लेकिन यह भ्रांति साफ तौर पर गलत है.

इन्हेलर्स है सही विकल्प
इसके अलावा यह बात जानना भी बेहद जरूरी है कि इन्हेलर्स में दवाइयों से काफी कम मात्रा में ड्रग्स शामिल होती हैं. दवाइयों में लगभग 20% ज्यादा ड्रग्स शामिल होती है और वह शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जाती हैं, जिससे साइड इफेक्ट्स होने का भी खतरा होता है.

अस्थमा के बारे में जागरूकता की है जरूरत
भ्रांतियों के बारे में डॉक्टर ए. के. सिंह यह भी कहते हैं कि लोगों की यह भी सोच होती है कि यदि एक बार अस्थमा हो गया तो उनकी मौत अस्थमा से ही होगी जबकि यह गलत है. अस्थमा की वजह से कभी भी किसी व्यक्ति की मौत नहीं होती. जरूरत सिर्फ इस बात की है कि लोग इस बीमारी के प्रति जागरूक हो सके और समझे कि अस्थमा से डरने की जरूरत नहीं है.

विशेषज्ञों की मानें तो सांस संबंधी रोगों में अस्थमा जैसी बीमारियों के लिए इनहेलर्स किसी अन्य दवाइयों के अपेक्षा काफी कम नुकसानदेह होते हैं. साथ ही इनहेलर्स दवाएंयों की अपेक्षा अधिक फायदा पहुंचाते हैं. बच्चों के मामलों में फैली भ्रांतियों पर ध्यान न देकर अस्थमा के लिए यदि इनहेलर्स का इस्तेमाल किया जाए तो उससे बच्चों के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है.

लखनऊ: मौसम में बदलाव के साथ ही सांस संबंधी रोगियों की परेशानियां भी बढ़ने लगती हैं. इनमें अस्थमा जैसी बीमारी सर्दियों में काफी अधिक परेशान करती है. ऐसे में ईटीवी भारत ने कुछ विशेषज्ञों से बातचीत की और जानने की कोशिश की कि बच्चों और बड़ों में अस्थमा के लिए इनहेलर्स कितने फायदेमंद हो सकते हैं और सर्दी के मौसम में अस्थमा रोगियों को क्या बचाव करने की जरूरत है.

अस्थमा की परिभाषा जानने की कोशिश की जाए तो सांस के रोगों के एक्सपर्ट डॉक्टर ए. के. सिंह कहते हैं कि अस्थमा कोई बीमारी नहीं है, यह एक शारीरिक अवस्था है. इस अवस्था को हम पूरी तरह नियंत्रण में ला सकते हैं और एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं.

50 में एक बच्चा होता है अस्थमा से पीड़ित
बच्चों में अस्थमा की बढ़ती दरों के बारे में राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान की पीडियाट्रिक्स विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर शीतांशु कहती हैं कि हमारी हर रोज की ओपीडी में एक नया बच्चा अस्थमा का रोगी होता है. ऐसे में हम कह सकते हैं कि 50 में एक बच्चा हर रोज नया पेशेंट डायग्नोज किया जाता है.

बढ़ रहे अस्थमा के मरीज.

ये है अस्थमा का कारण
अगर कारणों की बात की जाए तो डॉक्टर शीतांशु कहती हैं कि बच्चों में अस्थमा होने का एक बहुत बड़ा कारण स्मोक एक्सपोसर होता है. आजकल छोटे-छोटे बच्चों में अस्थमा की बीमारियां अधिक देखने को मिल रही है और यह दर लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि मैटरनल स्मोक एक्स्पोजर इसका कारण हो सकता है. यदि गर्भावस्था में मां धूम्रपान करती हैं या फिर पिता धूम्रपान करते हैं तो इसका सीधा असर नवजात पर हो सकता है. इसके अलावा आजकल इन्फेक्शन कम होता जा रहा है और एलर्जी बढ़ रही है इस वजह से भी अस्थमा के रोगी बढ़ते जा रहे हैं.

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इस रोग को लेकर फैली हैं कई भ्रांतियां
अस्थमा के रोग में दवाइयों के बदले इनहेलर्स के प्रचलन को बढ़ाने के बारे में डॉ. श्रीवास्तव कहती हैं कि इन्हेलर्स को लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई है. इन भ्रांतियों में सबसे बड़ी बात यह सामने आती है कि लोग डरे होते हैं. उन्हें लगता है कि इससे इन्हेलर्स की आदत पड़ जाएगी और बच्चा ताउम्र अस्थमा का रोगी रहेगा, लेकिन यह भ्रांति साफ तौर पर गलत है.

इन्हेलर्स है सही विकल्प
इसके अलावा यह बात जानना भी बेहद जरूरी है कि इन्हेलर्स में दवाइयों से काफी कम मात्रा में ड्रग्स शामिल होती हैं. दवाइयों में लगभग 20% ज्यादा ड्रग्स शामिल होती है और वह शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जाती हैं, जिससे साइड इफेक्ट्स होने का भी खतरा होता है.

अस्थमा के बारे में जागरूकता की है जरूरत
भ्रांतियों के बारे में डॉक्टर ए. के. सिंह यह भी कहते हैं कि लोगों की यह भी सोच होती है कि यदि एक बार अस्थमा हो गया तो उनकी मौत अस्थमा से ही होगी जबकि यह गलत है. अस्थमा की वजह से कभी भी किसी व्यक्ति की मौत नहीं होती. जरूरत सिर्फ इस बात की है कि लोग इस बीमारी के प्रति जागरूक हो सके और समझे कि अस्थमा से डरने की जरूरत नहीं है.

विशेषज्ञों की मानें तो सांस संबंधी रोगों में अस्थमा जैसी बीमारियों के लिए इनहेलर्स किसी अन्य दवाइयों के अपेक्षा काफी कम नुकसानदेह होते हैं. साथ ही इनहेलर्स दवाएंयों की अपेक्षा अधिक फायदा पहुंचाते हैं. बच्चों के मामलों में फैली भ्रांतियों पर ध्यान न देकर अस्थमा के लिए यदि इनहेलर्स का इस्तेमाल किया जाए तो उससे बच्चों के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है.

Intro:लखनऊ। मौसम के बदलने के साथ ही सांस संबंधी रोगों की परेशानियां भी बढ़ने लगती हैं। इनमें अस्थमा जैसी बीमारी सर्दियों में काफी अधिक परेशान करती है। ऐसे में ईटीवी भारत ने कुछ विशेषज्ञों से बातचीत की और जानने की कोशिश की कि बच्चों और बड़ों में अस्थमा के लिए इनहेलर्स कितने फायदेमंद हो सकते हैं और सर्दी के मौसम में अस्थमा रोगियों को क्या बचाव करने की जरूरत है।


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अस्थमा की परिभाषा जानने की कोशिश की जाए तो सांस के रोगों के एक्सपर्ट डॉक्टर ए के सिंह कहते हैं अस्थमा कोई बीमारी नहीं है यह एक शारीरिक अवस्था है। इस अवस्था को हम पूरी तरह नियंत्रण में ला सकते हैं और एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

बच्चों में अस्थमा की बढ़ती दरों के बारे में डॉक्टर राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान की पीडियाट्रिक्स विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर शीतांशु कहती हैं कि हमारी हर रोज की ओपीडी में एक नया बच्चा अस्थमा का रोगी होता है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि 50 में एक बच्चा हर रोज नया पेशेंट डायग्नोज किया जाता है।

अगर कारणों की बात की जाए तो डॉक्टर शीतांशु कहते हैं कि बच्चों में अस्थमा होने का एक बहुत बड़ा कारण स्मोक एक्सपोसर होता है। आजकल छोटे-छोटे बच्चों में अस्थमा की बीमारियां अधिक देखने को मिल रही है और यह दर लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि मैटरनल स्मोक एक्स्पोज़र इसका कारण हो सकता है। यदि गर्भावस्था में मां धूम्रपान करती हैं या फिर पिता धूम्रपान करते हैं तो इसका सीधा असर नवजात पर हो सकता है। इसके अलावा आजकल इन्फेक्शन कम होता जा रहा है और एलर्जी बढ़ रही है इस वजह से भी अस्थमा के रोगी बढ़ते जा रहे हैं।

अस्थमा के रोग में दवाइयों के बदले इनहेलर्स के प्रचलन को बढ़ाने के बारे में डॉ श्रीवास्तव कहती हैं कि इन्हेलर्स को लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई है। इन भ्रांतियों में सबसे बड़ी भारतीय सामने आती है कि लोग डरे होते हैं। लोगों को लगता है कि इन्हें इन्हेलर्स की आदत पड़ जाएगी और बच्चा ताउम्र अस्थमा का रोगी रहेगा पर यह भ्रांति साफ तौर पर गलत है। इसके अलावा यह बात जानना भी बेहद जरूरी है कि इन्हेलर्स में दवाइयों से काफी कम मात्रा में ड्रग्स शामिल होती हैं। दवाइयों में लगभग 20% ज्यादा ड्रग्स शामिल होती है और वह शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जाती हैं जिससे साइड इफेक्ट्स होने का भी खतरा होता है।

भ्रांतियों के बारे में डॉक्टर ए के सिंह यह भी कहते हैं कि लोगों की यह भी सोच होती है कि यदि एक बार अस्थमा हो गया तो उनकी मौत अस्थमा से ही होगी जबकि यह गलत है अस्थमा की वजह से कभी भी किसी व्यक्ति की मौत नहीं होती। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि लोग इस बीमारी के प्रति जागरूक हो सके और समझे कि आसमा से डरने की जरूरत नहीं है।


Conclusion:विशेषज्ञों की मानें तो सांस संबंधी रोगों में अस्थमा जैसी बीमारियों के लिए इनहेलर्स किसी अन्य दवाइयों के अपेक्षा काफी कम नुकसानदेह होते हैं और अधिक फायदा पहुंचाते हैं। बच्चों के मामलों में फैली भ्रांतियों पर ध्यान न देकर अस्थमा के लिए यदि इनहेलर्स का इस्तेमाल किया जाए तो उससे बच्चों के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है।


बाइट- डॉक्टर शीतांशु श्रीवास्तव, पीडियाट्रिक एक्सपर्ट, डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान
बाइट- डॉक्टर ए के सिंह, रेस्पिरेटरी एक्सपर्ट

रामांशी मिश्रा
9598003584
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