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स्मारक घोटाला : पत्थर सप्लायर को हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली राहत, याचिका खारिज - कांशीराम स्मारक स्थल

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बसपा शासन काल के दौरान हुए स्मारक घोटाला मामले में पत्थर सप्लायर की एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. याची को मेमोरियल और पार्क के निर्माण के लिए गुलाबी पत्थर के सप्लाई का ठेका दिया गया था.

स्मारक घोटाला
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Published : Jul 5, 2021, 9:27 PM IST

लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बसपा शासन काल के दौरान हुए स्मारक घोटाला मामले में पत्थर सप्लायर अंकुर अग्रवाल की एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. न्यायालय ने कहा कि यह 14 करोड़ रुपये से अधिक के गबन का मामला है और विवेचना के लिए पर्यापत आधार हैं.

यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस विकास कुंवर श्रीवास्तव की बेंच ने अंकुर अग्रवाल की याचिका पर दिया. याची को मेमोरियल और पार्क के निर्माण के लिए गुलाबी पत्थर के सप्लाई का ठेका दिया गया था. उसकी ओर से दलील दी गई कि वर्ष 2007 से 2011 के बीच पत्थरों की सप्लाई की गई, लेकिन प्रदेश में नई सरकार आने के बाद इन निर्माणों के सम्बंध में जांच लोकायुक्त को भेज दी गई. लोकायुक्त की रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 2014 में गोमती नगर थाने में आईपीसी की धारा 409 और 120बी तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) और 13(2) के तहत एफआईआर दर्ज की गई.

इसे भी पढ़ें- यूपी स्मारक घोटाला : विजिलेंस ने तैयार किए 50 सवाल, इन अफसरों को देना होगा जवाब

याची की ओर से दलील दी गई कि याची पर खराब गुणवत्ता के अथवा अधिक की मत के पत्थर सपलाई का आरोप नहीं है. याची को राजनीतिक कारणों से टारगेट किया जा रहा है. याचिका का राज्य सरकार के अधिवक्ता ने विरोध किया. उनकी दलील थी कि मामले में सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की संस्तुति तक दी जा चुकी है, ऐसे में वर्तमान याचिका पर कोई राहत नहीं दी जानी चाहिए. न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात अपने आदेश में कहा कि यह सरकारी खजाने से 14 सौ 10 करोड़ 50 लाख 63 हजार दो सौ रुपये के गबन का मामला है। यह नहीं कहा जा सकता कि याची के विरुद्ध प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है.

कब हुआ स्मारक घोटाला

बसपा सुप्रीमो मायावती ने साल 2007 से 2012 तक के अपने कार्यकाल में लखनऊ-नोएडा में आम्बेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा का आम्बेडकर पार्क, रमाबाई आम्बेडकर मैदान और स्मृति उपवन समेत पत्थरों के कई स्मारक तैयार कराए थे. इन स्मारकों पर सरकारी खजाने से 41 अरब 48 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. आरोप था कि इन स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर घोटाला कर सरकारी पैसे का दुरूपयोग किया गया है. सत्ता परिवर्तन के बाद इस मामले की जांच यूपी के तत्कालीन उपायुक्त एनके मेहरोत्रा को सौंपी गई थी. लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार का घोटाला होने की बात कही थी.

लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बसपा शासन काल के दौरान हुए स्मारक घोटाला मामले में पत्थर सप्लायर अंकुर अग्रवाल की एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. न्यायालय ने कहा कि यह 14 करोड़ रुपये से अधिक के गबन का मामला है और विवेचना के लिए पर्यापत आधार हैं.

यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस विकास कुंवर श्रीवास्तव की बेंच ने अंकुर अग्रवाल की याचिका पर दिया. याची को मेमोरियल और पार्क के निर्माण के लिए गुलाबी पत्थर के सप्लाई का ठेका दिया गया था. उसकी ओर से दलील दी गई कि वर्ष 2007 से 2011 के बीच पत्थरों की सप्लाई की गई, लेकिन प्रदेश में नई सरकार आने के बाद इन निर्माणों के सम्बंध में जांच लोकायुक्त को भेज दी गई. लोकायुक्त की रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 2014 में गोमती नगर थाने में आईपीसी की धारा 409 और 120बी तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) और 13(2) के तहत एफआईआर दर्ज की गई.

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याची की ओर से दलील दी गई कि याची पर खराब गुणवत्ता के अथवा अधिक की मत के पत्थर सपलाई का आरोप नहीं है. याची को राजनीतिक कारणों से टारगेट किया जा रहा है. याचिका का राज्य सरकार के अधिवक्ता ने विरोध किया. उनकी दलील थी कि मामले में सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की संस्तुति तक दी जा चुकी है, ऐसे में वर्तमान याचिका पर कोई राहत नहीं दी जानी चाहिए. न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात अपने आदेश में कहा कि यह सरकारी खजाने से 14 सौ 10 करोड़ 50 लाख 63 हजार दो सौ रुपये के गबन का मामला है। यह नहीं कहा जा सकता कि याची के विरुद्ध प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है.

कब हुआ स्मारक घोटाला

बसपा सुप्रीमो मायावती ने साल 2007 से 2012 तक के अपने कार्यकाल में लखनऊ-नोएडा में आम्बेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा का आम्बेडकर पार्क, रमाबाई आम्बेडकर मैदान और स्मृति उपवन समेत पत्थरों के कई स्मारक तैयार कराए थे. इन स्मारकों पर सरकारी खजाने से 41 अरब 48 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. आरोप था कि इन स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर घोटाला कर सरकारी पैसे का दुरूपयोग किया गया है. सत्ता परिवर्तन के बाद इस मामले की जांच यूपी के तत्कालीन उपायुक्त एनके मेहरोत्रा को सौंपी गई थी. लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार का घोटाला होने की बात कही थी.

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