लखनऊ: किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ और प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेज के इंटर्न्स अपने स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग सरकार से बार-बार कर रहे हैं. इस कड़ी में सोमवार की शाम दोबारा मेडिकल इंटर्न्स ने कैंडल मार्च निकाल कर सरकार से स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग की.
मेडिकल इंश्योरेंस पहले भी कैंडल मार्च निकालकर शांतिपूर्ण विरोध कर चुके हैं, लेकिन इसका कोई फल नहीं मिला है. लगभग 4 महीनों से कोविड-19 में ड्यूटी करने के बाद से अपनी सुरक्षा के हित में इंटर्न्स मांग कर रहे हैं. पिछले 10 वर्षों से स्टाइपेंड न बढ़ने का हवाला देकर इंटर्न्स प्रशासन को पत्र लिखकर या उनसे मिलकर अपनी बात रखने की कोशिश कर रहे हैं.
27 जुलाई को शांतिपूर्ण कैंडल मार्च निकालने के बारे में इंटर्न्स का कहना था कि हम पिछले तीन-चार महीनों से लगातार अपनी बात सरकार और प्रशासन को पहुंचा रहे हैं. इस सिलसिले में हम डीजीएमई चिकित्सा शिक्षा चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना और अन्य मंत्रियों से भी मिले हैं. लेकिन कहीं से भी कोई आश्वासन नहीं मिला है. इसकी वजह से हम यह कदम उठा रहे हैं. यदि हमारी मांगे नहीं पूरी होती है, तो हम आगे चलकर कार्य बहिष्कार करेंगे.
उत्तर प्रदेश के चिकित्सा संस्थानों में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद इंटर्नशिप कर रहे छात्र-छात्राओं को हर महीने 7500 रुपए स्टाइपेंड मिलती है. इंटर्न्स के अनुसार, यह स्टाइपेंड अन्य राज्यों और केंद्रीय संस्थानों में मिलने वाले मानदेय से काफी कम है. असल में यही मानदेय 31500 कर्नाटक में, 30000 रुपये पश्चिम बंगाल में और भारत के केंद्रीय संस्थानों में 23500 प्रति माह दी जाती है. उत्तर प्रदेश के इंटर्न डॉक्टरों के स्टाइपेंड में पिछले 10 वर्षों से कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है. इंटर्न्स की मानें तो पिछले कई वर्षों से वह प्रयास कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन इस पर ध्यान नहीं दे रहा है. कोरोना काल में भी सभी इंटर्न डॉक्टर्स संक्रमण की परवाह किए बिना अपनी सेवाएं दे रहे हैं. उसके साथ ही अपना मानदेय बढ़ाने की मांग भी कर रहे हैं.
लखनऊ: स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग को लेकर मेडिकल इंटर्न्स ने निकाला कैंडल मार्च
उत्तर प्रदेश के केजीएमयू में मेडिकल इंटर्न्स ने स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग को लेकर कैंडल मार्च निकाला. उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों से कोई स्टाइपेंड नहीं बढ़ाया गया है.
लखनऊ: किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ और प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेज के इंटर्न्स अपने स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग सरकार से बार-बार कर रहे हैं. इस कड़ी में सोमवार की शाम दोबारा मेडिकल इंटर्न्स ने कैंडल मार्च निकाल कर सरकार से स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग की.
मेडिकल इंश्योरेंस पहले भी कैंडल मार्च निकालकर शांतिपूर्ण विरोध कर चुके हैं, लेकिन इसका कोई फल नहीं मिला है. लगभग 4 महीनों से कोविड-19 में ड्यूटी करने के बाद से अपनी सुरक्षा के हित में इंटर्न्स मांग कर रहे हैं. पिछले 10 वर्षों से स्टाइपेंड न बढ़ने का हवाला देकर इंटर्न्स प्रशासन को पत्र लिखकर या उनसे मिलकर अपनी बात रखने की कोशिश कर रहे हैं.
27 जुलाई को शांतिपूर्ण कैंडल मार्च निकालने के बारे में इंटर्न्स का कहना था कि हम पिछले तीन-चार महीनों से लगातार अपनी बात सरकार और प्रशासन को पहुंचा रहे हैं. इस सिलसिले में हम डीजीएमई चिकित्सा शिक्षा चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना और अन्य मंत्रियों से भी मिले हैं. लेकिन कहीं से भी कोई आश्वासन नहीं मिला है. इसकी वजह से हम यह कदम उठा रहे हैं. यदि हमारी मांगे नहीं पूरी होती है, तो हम आगे चलकर कार्य बहिष्कार करेंगे.
उत्तर प्रदेश के चिकित्सा संस्थानों में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद इंटर्नशिप कर रहे छात्र-छात्राओं को हर महीने 7500 रुपए स्टाइपेंड मिलती है. इंटर्न्स के अनुसार, यह स्टाइपेंड अन्य राज्यों और केंद्रीय संस्थानों में मिलने वाले मानदेय से काफी कम है. असल में यही मानदेय 31500 कर्नाटक में, 30000 रुपये पश्चिम बंगाल में और भारत के केंद्रीय संस्थानों में 23500 प्रति माह दी जाती है. उत्तर प्रदेश के इंटर्न डॉक्टरों के स्टाइपेंड में पिछले 10 वर्षों से कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है. इंटर्न्स की मानें तो पिछले कई वर्षों से वह प्रयास कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन इस पर ध्यान नहीं दे रहा है. कोरोना काल में भी सभी इंटर्न डॉक्टर्स संक्रमण की परवाह किए बिना अपनी सेवाएं दे रहे हैं. उसके साथ ही अपना मानदेय बढ़ाने की मांग भी कर रहे हैं.