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डिफेंस एक्सपो 2020ः शहीदों के बलिदान की कहानी कहती है ये 'वाटिका'

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Published : Feb 9, 2020, 4:37 PM IST

यूपी की राजधानी लखनऊ में बड़ी धूमधाम से शौर्य दिवस मनाया जा रहा है. इस दौरान हम उन शहीदों की बात करेंगे, जिन्होंने देश सेवा के लिए अपना बलिदान दे दिया.

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डिफेंस एक्सपो 2020 में याद किया गया शहीदों का बलिदान.

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में बड़ी धूमधाम से शौर्य दिवस मनाया जा रहा है. सेना के इस शौर्य की एक निशानी राजधानी में भी मौजूद है. इसे 'कारगिल वाटिका' के नाम से जाना जाता है. हम आज देश के उन शहीदों के बात कर रहे हैं, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए.

डिफेंस एक्सपो 2020 में याद किया गया शहीदों का बलिदान.

शहीद लांस नायक केवलानंद की जाबांजी
15 कुमाऊं में तैनात शहीद लांस नायक केवलानंद द्विवेदी की पत्नी कमला की तबियत बहुत ज्यादा खराब थी. वे 26 मार्च 1999 को पत्नी को देखने घर आए थे. इस दौरान उन्हें पता चला कि युद्ध छिड़ गया है. वह 30 मई को वापस करगिल रवाना हो गए. इस दौरान उन्होंने आखिरी बार पत्नी को फोन किया और कहा कि कल मैं दुश्मनों को नेस्तनाबूद करके वापस आउंगा. ईश्वर से प्रार्थना करना कि हमें विजय मिले. 6 जून को लड़ाई के दौरान केवलानंद द्विवेदी को दुश्मन की गोली लग गई और उन्होंने दुश्मनों का सामना करते अपने प्राण त्याग दिए.

देश के लिए गंवाई जान
कैप्टन आदित्य मिश्र लखनऊ के कैथड्रेल ऑल चिल्ड्रन एकेडमी के बाद आगे की शिक्षा के लिए पिता के साथ जम्मू-कश्मीर चले गए. इस दौरान उन्होंने 8 जून 1996 को सेना की सिग्नल कोर में सेकंड लेफ्टिनेंट के पद को ग्रहण किया. सितंबर 1998 में कैप्टन आदित्य की तैनाती लद्दाख में हुई. 19 जून 1999 को कैप्टन आदित्य मिश्र बाटालिक सेक्टर पहुंचे. यहां उन्होंने दुश्मनों के कब्जे से 17 हजार फीट ऊंचे प्वाइंट को छुड़ाने के लिए उन्होंने दुश्मन पर हमला बोला और पोस्ट पर भारतीय सेना का कब्जा किया, लेकिन पोस्ट पर संचार लाइन बिछाने वापस गए कैप्टन आदित्य पर दुश्मनों ने हमला बोल दिया, जिसमें कैप्टन आदित्य शहीद हो गए.

कैप्टन मनोज पांडे ने दुश्मनों को किया परास्त
परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडे को 6 जून 1997 को 11 गोरखा राइफल में कमीशन प्राप्त हुआ था. उनकी पहली तैनाती जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में हुई. 4 मई 1999 को कारगिल की लड़ाई लड़ने गए कैप्टन मनोज पांडे को खालूबार पोस्ट आजाद करने की जिम्मेदारी दी गई. इस दौरान बंकरों को नष्ट करते आगे बढ़े कैप्टन मनोज पांडे के सामने दुश्मनों का गोला आकर गिरा. इसमें वे बुरी तरह से घायल हो गए और उन्होंने बंकरों को आजाद कराते अपने प्राण दे दिए.

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में बड़ी धूमधाम से शौर्य दिवस मनाया जा रहा है. सेना के इस शौर्य की एक निशानी राजधानी में भी मौजूद है. इसे 'कारगिल वाटिका' के नाम से जाना जाता है. हम आज देश के उन शहीदों के बात कर रहे हैं, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए.

डिफेंस एक्सपो 2020 में याद किया गया शहीदों का बलिदान.

शहीद लांस नायक केवलानंद की जाबांजी
15 कुमाऊं में तैनात शहीद लांस नायक केवलानंद द्विवेदी की पत्नी कमला की तबियत बहुत ज्यादा खराब थी. वे 26 मार्च 1999 को पत्नी को देखने घर आए थे. इस दौरान उन्हें पता चला कि युद्ध छिड़ गया है. वह 30 मई को वापस करगिल रवाना हो गए. इस दौरान उन्होंने आखिरी बार पत्नी को फोन किया और कहा कि कल मैं दुश्मनों को नेस्तनाबूद करके वापस आउंगा. ईश्वर से प्रार्थना करना कि हमें विजय मिले. 6 जून को लड़ाई के दौरान केवलानंद द्विवेदी को दुश्मन की गोली लग गई और उन्होंने दुश्मनों का सामना करते अपने प्राण त्याग दिए.

देश के लिए गंवाई जान
कैप्टन आदित्य मिश्र लखनऊ के कैथड्रेल ऑल चिल्ड्रन एकेडमी के बाद आगे की शिक्षा के लिए पिता के साथ जम्मू-कश्मीर चले गए. इस दौरान उन्होंने 8 जून 1996 को सेना की सिग्नल कोर में सेकंड लेफ्टिनेंट के पद को ग्रहण किया. सितंबर 1998 में कैप्टन आदित्य की तैनाती लद्दाख में हुई. 19 जून 1999 को कैप्टन आदित्य मिश्र बाटालिक सेक्टर पहुंचे. यहां उन्होंने दुश्मनों के कब्जे से 17 हजार फीट ऊंचे प्वाइंट को छुड़ाने के लिए उन्होंने दुश्मन पर हमला बोला और पोस्ट पर भारतीय सेना का कब्जा किया, लेकिन पोस्ट पर संचार लाइन बिछाने वापस गए कैप्टन आदित्य पर दुश्मनों ने हमला बोल दिया, जिसमें कैप्टन आदित्य शहीद हो गए.

कैप्टन मनोज पांडे ने दुश्मनों को किया परास्त
परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडे को 6 जून 1997 को 11 गोरखा राइफल में कमीशन प्राप्त हुआ था. उनकी पहली तैनाती जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में हुई. 4 मई 1999 को कारगिल की लड़ाई लड़ने गए कैप्टन मनोज पांडे को खालूबार पोस्ट आजाद करने की जिम्मेदारी दी गई. इस दौरान बंकरों को नष्ट करते आगे बढ़े कैप्टन मनोज पांडे के सामने दुश्मनों का गोला आकर गिरा. इसमें वे बुरी तरह से घायल हो गए और उन्होंने बंकरों को आजाद कराते अपने प्राण दे दिए.

Intro:स्पेशल स्टोरी है।

लखनऊ। इस समय पूरा लखनऊ में शौर्य का उत्सव चल रहा है। पूरा शहर उत्सवी रंग में नहाया हुआ है। चाहे वह चौक-चौराहा हो चाहे वह कोई गली-मोहल्ला हर तरफ सेना के ही चर्चे हो रहे हैं।

जी हां राजधानी लखनऊ पहली बार डिफेंस एक्सपो 2020 के 11वें संस्करण की मेजबानी कर रहा है। आज इसका अंतिम दिन है। पूरे लखनऊवासियों में इसकी धूम मची हुई है।


Body:राजधानी में एक निशानी

आज हम अपनी सेना के जिस शौर्य को सराह रहे हैं। उसकी एक निशानी लखनऊ में मौजूद है। उसको कारगिल शहीद वाटिका के नाम से जाना जाता है। जो कई सालों से लखनऊ की शान बढ़ा रहा है।

बीमार पत्नी को छोड़कर हो गए शहीद

15 कुमाऊं में तैनात शहीद लांसनायक केवलानंद द्विवेदी की पत्नी कमला की बहुत ज्यादा तबियत खराब थी। वह 26 मार्च 1999 को उनको देखने के लिए घर आए थे। इसी समय उनको पता चला कि युद्ध छिड़ गया है। वह 30 मई को वापस करगिल रवाना हो गए। आखिरी बार उन्होंने 30 जून को अपनी पत्नी को फोन किया और कहा कि कल मैं दुश्मनों को नेस्तनाबूद करके आऊंगा तब बात करूंगा। ईश्वर से प्रार्थना करना कि हमें विजय मिले। 6 जून को केवल आनंद द्विवेदी की टुकड़ी और दुश्मनों के बीच जमकर घमासान हुआ। ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों की गोलियों का सामना करते हुए केवलानंद दिवेदी आगे बढ़ रहे थे। तभी एक गोली उनके सीने में आकर लगी। वह गिर गए लेकिन आखिरी समय तक वह दुश्मनों पर गोलियां बरसाते रहें और काफी देर तक मोर्चा लेने के बाद उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

देश के लिए गंवाई जान

कैप्टन आदित्य मिश्र लखनऊ के कैथड्रेल ऑल चिल्ड्रन एकेडमी के बाद आगे की शिक्षा के लिए पिता के साथ जम्मू-कश्मीर चले गए। 8 जून 1996 को सेना की सिग्नल कोर में सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर कमीशन लिया। सितंबर 1998 में कैप्टन आदित्य की तैनाती लद्दाख में हुई। यहां से वह 19 जून 1999 को बटालिक सेक्टर पहुंचे। यहां दुश्मनों के कब्जे से 17 हज़ार फीट ऊंची पॉइंट 5203 पोस्ट को छुड़ाने के लिए उनकी लद्दाख स्काउट दुश्मनों पर हमला बोल दिया। पोस्ट पर भारतीय सेना का कब्जा हो गया और कैप्टन आदित्य अपने टुकड़ी के साथ नीचे आ गए। कैप्टन आदित्य संचार लाइन बिछाने दोबारा पोस्ट पर गए तो दुश्मनों ने उन पर हमला बोल दिया। इस हमले में कैप्टन आदित्य घायल हो गए लेकिन उन्होंने संचालन बिछाते-बिछाते दुश्मन की सेना पर हमला बोला और अपने प्राण छोड़ दिए।

कैप्टन मनोज पांडे ने दुश्मनों को किया परास्त

शहर के एक बात परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडे को 6 जून 1997 को 11 गोरखा राइफल में कमीशन प्राप्त हुआ। उनकी पहली तैनाती ही जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में हुई। इसके बाद वह सियाचिन की चौकी पर देश की रक्षा के लिए पहुंचे। 4 मई 1999 को उनकी पलटन को पुणे की जगह करगिल कूच करने के आदेश दिए गए। कैप्टन पांडे को 2 और 3 जुलाई को खालूबार पोस्ट आजाद कराने का जिम्मा मिला। कैप्टन मनोज बंकरो को नष्ट करने के लिए बाई ओर से और दुश्मनों के चारों बंकरों की ओर कूच कर गए। वह आगे बढ़ रहे थे कि दुश्मनों का गोला उनके सामने आकर गिरा। वह बुरी तरह घायल हो गए। उन्होंने सभी बंकरों को आजाद कराते हुए अपने प्राण छोड़ दिये।





Conclusion:डिफेंस एक्सपो2020 के बहाने हम आपको गौरव गाथाएं कहती करगिल सहित वाटिका का दीदार कराएंगे। इसी बहाने एक बार फिर से उन शहीदों को याद करते हैं जिन्होंने कारगिल युद्ध 1999 में देश के खातिर अपने प्राणों की आहुति दी थी।

अनुराग मिश्र

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