लखनऊ : लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए जाली मार्कशीट का प्रयोग करने के आरोपों से घिरे विधायक पर धोखाधड़ी का केस चल रहा था. एमएलए कोर्ट के विशेष अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अंबरीश कुमार श्रीवास्तव ने अभियोजन द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत न कर पाने पर उन्हें बाइज्ज बरी कर दिया है.
विधायक धीरेंद्र बहादुर सिंह पर लखनऊ विश्वविद्यालय में जाली मार्कशीट का प्रयोग करने का आरोप था. इस मामले में विधायक पिछले 22 सालों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे. अब जाकर विधायक धीरेंद्र को राहत की सांस मिली है. अभियोजन की ओर से इस मामले में धीरेंद्र बहादुर सिंह के विरुद्ध कोई भी गवाह गवाही के लिए अदालत में हाजिर नहीं हुआ. इसी वजह से अदालत ने अभियोजन साक्ष्य समाप्त कर अभियुक्त की ओर से पेश की गई दलीलों को सुनकर अपना फैसला सुनाया.
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विधायक की ओर से उनके अधिवक्ता प्रांशु अग्रवाल का तर्क था कि उन्हें इस मामले में फर्जी फंसाया गया है. उन्होंने वर्ष 1991 में तत्कालीन कुलपति हरि कृष्ण अवस्थी के विरुद्ध प्रदर्शन कर उन्हें बर्खास्त करने की मांग की थी. लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति ने आपसी रंजिश के चलते फर्जी निष्कासन करने के लिए उन पर मुकदमा दर्ज कराया था.
लखनऊ विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलसचिव अमर नाथ सेठ ने 7 फरवरी 1992 को हसन गंज में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. रिपोर्ट में आरोपी धीरेंद्र बहादुर ने 8 जनवरी 1992 को एमए मध्यकालीन भारतीय इतिहास में प्रवेश के लिए अर्जी दी थी. इसके लिए हाइस्कूल से लेकर स्नातक और कानपुर विश्वविद्यालय से ब्रिजकोर्स का मार्कशीट लगाया था. बता दें कि ब्रिजकोर्स की मार्कशीट जाली थी. ब्रिजकोर्स में जो विषय दर्शाया गया था. वह कोर्स कानपुर विश्वविद्यालय में था ही नहीं, जबकि उस विषय मे धीरेंद्र को 70 प्रतिशत अंक प्राप्त होना दिखाया गया. वहीं, धीरेंद्र के मार्कशीट में जो रोलनबर दर्शाया गया वह किसी छात्रा को आवंटित था.
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