लखनऊ : विधानसभा चुनाव में फेक करेंसी फैलाने वाले गिरोह का मकड़जाल फैला हुआ है. इसी बीच तालकटोरा पुलिस और डीसीपी वेस्ट की सर्विलांस टीम ने जाली नोट बनाने वाले गिरोह का पर्दाफाश किया. इस घटना में पुलिस ने इस गिरोह के मास्टरमाइंड सलमान उर्फ आफताब सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया.
इन आरोपियों के पास से 81,550 रुपये के जाली नोट बरामद किए गए हैं. इन नोटों में 500, 200, 100, 50 और 20 के नोट है. आरोपी हाई क्वालिटी कलर प्रिंटर, बॉन्ड पेपर, कटर और अन्य उपकरण का इस्तेमाल करते थे, जो इनके पास से बरामद किए गए हैं. इस गिरोह के सदस्य असली नोट को स्कैन कर नकली नोट बनाते थे. ये लोग लखनऊ में रिफा कॉलोनी हसियामऊ इलाके में एक किराए के मकान में रहते थे. इस गिरोह के सदस्य गिरोह वेंडरों के जरिए शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में फेक करेंसी खपाने का काम करते थे. 60 हजार फेक करेंसी के बदले 10,000 रुपये की असली रकम इनकी ओर से दी जाती थी.
डीसीपी पश्चिमी सोमेन वर्मा ने बताया कि विगत कुछ दिनों से जाली मुद्राएं बनाने एवं बाजार में इसे सर्कुलेट किए जाने की सूचना प्राप्त हो रही थी. इस सूचना के बाद एडीसीपी पश्चिमी के नेतृत्व में तालकटोरा एवं सर्विलांस टीम का गठन किया गया. ग्राउंड एवं इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस ने इस रैकेट के मास्टरमाइंड सलमान उर्फ आफताब को चिन्हित किया था, क्योंकि यह लोग अपना काम बहुत गोपनीय ढंग से करते थे.
11 जनवरी को टीम को सूचना प्राप्त हुई कि जाली नोटों का धंधा करने वाला यह गिरोह आलम नगर फ्लाई ओवर (Alam Nagar Flyover) के पास जाली नोटों की सप्लाई करने आ रहा है. इस सूचना के बाद टीम के सदस्य सक्रिय हो गये और उन्हें सामाग्रियों के साथ गिरफ्तार कर लिया.
सलमान ने पूछताछ में बताया कि उसके साथ पकड़े गए सभी सदस्य उसी के गिरोह के हैं. ये लोग रिफा कॉलोनी हसियामऊ (Rifa Colony Hasiyamau) में किराए पर कमरा लेकर रहते थे. वहीं पर चोरी-छिपे असली नोट को स्कैन कर नकली नोट तैयार करते हैं. असली भारतीय मुद्रा में नोट के कागज की मोटाई से लगभग मिलते-जुलते 85GSM का पेपर बाजार से खरीद कर लाते थे, ताकि जब यह नोट आम आदमी को मिले तो उसे नोटों की मोटाई को लेकर कोई भी भ्रम पैदा ना हो.
इस गिरोह के सदस्य असली नोट को बहुत ही सावधानी से स्कैन करते थे. स्कैन करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि आगे और पीछे हूबहू वहीं आकृति आए जैसा वास्तविक में होता है. इसके लिए एक विशेष प्रकार का L शेप का प्रयोग करते थे, जिसे इस गिरोह के सदस्य जमील ने मुजफ्फरनगर से लाकर दिया था. यह गिरोह 85GSM वाले A4 शीट पर प्रिंट कर सावधानीपूर्वक कटर से काटकर निकाल लेते थे, फिर उन्हें असली की तरह दिखाने के लिए अलग-अलग नंबर की जाली नोट स्कैन कर उनकी कॉपी तैयार कर ली जाती थी. बाद में उन नोटों के आकार को काटकर बाजार में चलाने के लिए पार्टी अथवा वेंडर को देते थे.
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वर्मा ने बताया कि यह गिरोह अपने वेंडर्स को 10,000 रुपये का असली नोट के बदले 60,000 रुपए के नकली नोट देते थे. नोट छापने का काम सलमान और मुबस्सीर का था. इसकी कटिंग का काम अरबाज करता था. सुरक्षा धागा के स्थान पर ग्रीन ग्लिटर टेप, ग्लिटर ग्लू लगाने का काम कदीर और यूसुफ का था. ये लोग बड़ी सफाई से इस काम को अंजाम देते थे. नोट छापने वाली प्रिंटर को खरीदने का पैसा राहुल ने दिया था.
नोट छापने वाला कागज खरीदने के लिए पैसा भी उपलब्ध राहुल ही कराता था. सावेज और जमील का काम वेंडर्स अथवा पार्टी से मिलवाने का था. सावेज की कैंटीन जो एग्जान स्कूल के पीछे बंगाली पीसीओ के पास स्थित है वहां होता था. जब पार्टी सेट हो जाती थी, तो ये लोग स्थान बदल-बदल कर वेंडर को नकली नोटों की डिलीवरी देने जाते थे. इस काम में सभी बराबर के हिस्सेदार होते थे. इस काम से जो पैसा प्राप्त होता था, उसे यह लोग आपस में बांट लेते थे. इस गिरोह को नकली नोट छापने की ट्रेनिंग जमील देता था.
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