लखनऊ : नगर निगम के अहाना अपार्टमेंट निर्माण की योजना अधर में लटक चुकी है. 200 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं और करीब ₹48 करोड़ का ब्याज भी देना है. इसके बावजूद काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है. इससे नगर निगम पूरी तरह से घाटे में जा रहा है. अब परियोजना में जिन लोगों ने फ्लैट का पंजीकरण कराया था वह लोग भी परेशान हैं. रेरा में दी गई समय सीमा समाप्त होने के बावजूद निर्माण कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है. इससे अफसरों की लापरवाही सामने आ रही है.
दरअसल नगर निगम ने दिसम्बर 2020 में 200 करोड़ रुपये के मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में बांड लिए थे. जिससे अहाना प्रोजेक्ट पूरा करना था. करीब 48 करोड़ रुपये अब तक ब्याज के रूप में भी खर्च किया जा चुका है, लेकिन यह काम अधर में लटका हुआ है. अहाना प्रोजेक्ट की यूपी रेरा में पंजीकरण की समय सीमा समाप्त हो चुकी है. नगर निगम ने रियल एस्टेट विनियम एवं विकास अधिनियम (रेरा) में 30 दिसंबर 2022 तक योजना को समाप्त करने की समय सीमा निर्धारित की थी, लेकिन इसका काम अभी तक पूरी तरह से अधूरा है. बहरहाल इस प्रोजेक्ट पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. संकट की स्थिति को देखते हुए प्रोजेक्ट में लोगों के पंजीकरण आदि को देखते हुए नगर निगम प्रशासन ने अब रेरा से (पंजीयन संख्या यूपीरेरापीआरजे135400) को 31 दिसंबर 2024 तक विस्तारित किए जाने का आवेदन किया है. जिस पर रेरा की तरफ से आपत्ति जताते हुए दस्तावेज आदि मांगे गए हैं.
रेरा और नगर निगम सूत्रों का कहना है कि सबसे बड़ी लापरवाही नगर निगम की तरफ से इस प्रोजेक्ट को लेकर की गई है. इस अहाना प्रोजेक्ट का मानचित्र बिना वैधता के दिया गया है. साथ ही त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट भी अपलोड नहीं की गई है. एनुएल ऑडिट रिपोर्ट भी शामिल नहीं की गई है. जिससे रेरा के स्तर पर समय सीमा बढ़ाने में भी संकट दिख रहा है. यूपी रेरा ने प्रोजेक्ट की लेटलतीफी का कारण भी पूछा है. यह भी जानकारी मांगी है कि प्रोजेक्ट को कब तक पूरा कर लिया जाएगा. इसकी रिपोर्ट एफिडेविट के साथ देनी है. आवंटियों को आवंटित फ्लैटों की रशीद व वित्तीय मामलों से जुड़े दस्तावेज सहित रिपोर्ट मांगी है.
नगर निगम ने दिसम्बर 2020 में म्यूनिसिपल बांड एग्रीमेंट किया था. उससे मिली करीब 200 करोड़ की रकम से तैयार हो रही यह आवासीय परियोजना नगर निगम के लिए सबसे बड़े घाटे की योजना साबित हो रही है. बांड का पैसा समाप्त हो चुका है. अब आवंटियों से मिली धनराशि से बचे हुए कार्यों को कराने का प्रयास नगर निगम की ओर से किया जा रहा है. नगर निगम के अभियंत्रण विभाग की ओर से प्रोजेक्ट की स्टीमेट धनराशि 291.25 करोड़ (जो कि बांड जारी करते समय विभिन्न संस्थाओं में बीएसई (बांबे स्टाक एक्सचेंज) सेबी, रेरा व अन्य में दाखिल किया गया है) के तुलना में 341.17 करोड़ लागत (भूमि को छोड़कर) दिखाया गया है, जो पूर्व प्रोजेक्ट स्टीमेट से वर्तमान में पेश शेड्यूल ऑफ पेमेंटस के बीच के अंतर की धनराशि करीब 49.92 करोड़ है. इस बढ़ी हुई रकम 49.92 करोड़ रु को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं कि नगर निगम आखिर कैसे इसे व्यवस्थित करेगा.
नगर निगम के इस प्रोजेक्ट का काम देखने वाले मुख्य अभियंता महेश वर्मा का कहना है कि पंजीकरण समाप्त होने के बाद आगे की प्रक्रिया पूरी की जा रही है. इस प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरी करने के बाद निर्माण कार्य को तेजी से आगे बढ़ाया जाएगा. जिससे और भी पंजीकरण कराते हुए इस सुविधा का लाभ लोगों को दिया जा सकेगा. कांग्रेस पार्षद मुकेश सिंह चौहान ने कहा कि प्रोजेक्ट नगर निगम के लिए लाभ के बजाय वित्तीय भार पैदा कर रहा है. समय सीमा समाप्त होने के बावजूद अभी तक प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ है. भाजपा सरकार कोई काम ठीक से नहीं कर सकती है. जनता की कमाई का पैसा खर्च कर रही है और उसमें लापरवाही भी कर रही है. बॉन्ड से प्राप्त धनराशि के क्रम में 17 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष ब्याज के रूप में अब तक कुल 42.50 दिए जा चुके हैं. योजना के कार्यों में देरी से लागत में भी बढ़ोतरी हो रही है.