लखनऊ: केजीएमयू (किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी) को विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त हुए फंड्स की विस्तृत जानकारी देने के लिए हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार को तीन सप्ताह का समय दिया है. न्यायालय के पूर्व के आदेश के अनुपालन में सरकार को यह भी बताना है कि केजीएमयू को कौन से वित्तीय संसाधन प्रदान किए गए और केजीएमयू की ओर से क्या अतिरिक्त मांग रही. न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश लोक न्यायार्थ संस्था की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर दिए.
वर्ष 2017 में दाखिल उक्त याचिका में केजीएमयू में पैथालॉजिकल टेस्ट के शुल्कों में सपा सरकार के दौरान की गई 33 से 50 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी का मुद्दा उठाया गया है. कहा गया है कि क्वीन मेरी और डेंटल विभाग में तो तमाम टेस्ट के शुल्क बाहर के बराबर हो चुके हैं. इन शुल्कों का बोझ गरीब मरीजों और उनके तीमारदारों पर पड़ रहा है. याचिका में जोर देकर कहा गया है कि इस संबंध में राज्यपाल ने भी केजीएमयू के कुलपति को पत्र लिखा था.
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दलील दी गई है कि अन्य सरकारी अस्पतालों में लगभग डेढ़ सौ टेस्ट निशुल्क हैं, लेकिन केजीएमयू में ऐसा नहीं है. याचिका पर पूर्व में सुनवाई करते हुए न्यायालय ने राज्य सरकार और केजीएमयू को फंड के संबंध में जानकारी हलफनामे के जरिए दो सप्ताह में देने के आदेश दिए थे. हालांकि, अब तक राज्य सरकार की ओर से जवाब दाखिल नहीं किया गया है. याचिका पर पूर्व की सुनवाई में केजीएमयू के अधिवक्ता ने दलील दी थी कि केजीएमयू को कई बार अपने फंड की स्वयं व्यवस्था करनी होती है. जिसके लिए ये शुल्क वसूले जाते हैं. याची के अधिवक्ता के अनुसार, सुनवाई के दौरान केजीएमयू द्वारा फंड की व्यवस्था के लिए 70 करोड़ का लोन लिए जाने की बात भी सामने आई है.