लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने आईआईएम, लखनऊ के पूर्व निदेशक प्रोफेसर देवी सिंह की पेंशन को बहाल करने का आदेश आईआईएम को दिया है. साथ ही न्यायालय ने पेंशन के एरियर का भी भुगतान 6 प्रतिशत सलाना ब्याज के साथ करने को कहा है. यह आदेश न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की एकल सदस्यीय पीठ ने प्रोफेसर देवी सिंह की याचिका पर दिया.
जानें पूरा मामला
याची का कहना था कि उसने निदेशक के पद पर 28 जुलाई 2003 को नियुक्ति प्राप्त की थी. याची का कार्यकाल पांच वर्षों के लिए था. कार्यकाल की समाप्ति के पश्चात 22 सितम्बर 2008 को याची को बतौर प्रोफेसर आईआईएम, नोएडा में नियुक्त कर दिया गया. उस समय यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि निदेशक पद का कार्यकाल समाप्त होने के दिन से प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के दिन के बीच का समय याची के अर्जित अवकाश के तौर पर माना जाएगा. पुनः 5 मार्च 2009 को उसकी आईआईएम, लखनऊ के निदेशक पद पर नियुक्ति कर दी गई. 18 फरवरी 2014 को याची ने निदेशक पद का दूसरा कार्यकाल समाप्त होने के पूर्व चेयरमैन, बोर्ड ऑग गवर्नर्स, आईआईएम को प्रार्थना पत्र देते हुए पेंशन लाभ के साथ सेवानिवृति प्रदान किये जाने का अनुरोध किया.
याची को 15 सितम्बर 2014 को बतौर प्रोफेसर सेवानिवृत होने की अनुमति प्रदान कर दी गई. याची का कहना था कि इस प्रकार उसका सेवाकाल 11 साल 15 दिन का रहा. इसे देखते हुए 16 सितम्बर 2014 से उसे मासिक पेंशन का भुगतान किया जाने लगा, लेकिन इस दौरान 3 अक्टूबर 2017 को याची का पेंशन यह कहते हुए रोक दिया गया कि ऑडिटर जनरल याची को पेंशन प्रदान किये जाने की प्रक्रिया में कुछ अनियमितता पाई है, जिसके बाद मामला हाईकोर्ट में आया.
हाईकोर्ट ने याची के पेंशन पर नियम के तहत निर्णय लेने का आदेश आईआईएम को दिया, जिसके बाद 25 जून 2019 को बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने याची के सेवाकाल में 28 दिनों का विराम पाते हुए, पेंशन देने से इंकार कर दिया.
न्यायालय ने उक्त आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के आलोक में उक्त 28 दिनों को याची की क्वालिफाइंग सर्विस के तौर पर माना जाएगा.