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बाराबंकी मस्जिद मामलाः सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका पर फिलहाल कोई अंतरिम राहत नहीं

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Published : Jun 22, 2021, 10:36 PM IST

बाराबंकी मस्जिद के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अंतरिम राहत नहीं दी है. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल याचिका में मस्जिद वाले स्थान पर नमाज पढ़ने में दखल न दिए जाने की मांग की गई है.

लखनऊ हाईकोर्ट.
लखनऊ हाईकोर्ट.

लखनऊः बाराबंकी के रामसनेही घाट तहसील परिसर में स्थित रही मस्जिद के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फिलहाल कोई अंतरिम राहत नहीं दी है. हालांकि न्यायालय ने तत्कालीन एसडीएम दिव्यांशु पटेल और मस्जिद कमेटी को नोटिस जारी करने का आदेश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई को होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने सुन्नी सेंट्रल बोर्ड तथा हसमत अली और अन्य की याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया.

न्यायालय ने याचिकाओं पर 15 जून को सुनवाई के पश्चात अपना आदेश सुरक्षित कर लिया था. जिसे मंगलवार को जारी किया है. उल्लेखनीय है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका में अंतरिम राहत के तौर पर मस्जिद वाले स्थान पर अजान और पांच वक्त नमाज पढ़ने में दखल न दिए जाने की मांग की गई है. दूसरी याचिका में मस्जिद वाले स्थान पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देने की मांग की गई है.

इसे भी पढ़ें- बाराबंकी मस्जिद मामला : नमाज में दखल न देने की मांग पर आदेश सुरक्षित

याचिकाओं में रामसनेही घाट के तत्कालीन एसडीएम पर मनमाने तरीके से कार्रवाई करते हुए मस्जिद को 17 मई को ध्वस्त करने का आरोप लगाया गया है. याचिका में एसडीएम को दंडित करने का आदेश राज्य सरकार को देने की भी मांग की गई है.

न्यायालय ने मंगलवार को जारी अपने आदेश में उल्लेखित किया है कि वक्फ बोर्ड के वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर से कोर्ट द्वारा पूछा गया कि जहां मस्जिद कथित तौर पर स्थित थी. उस जमीन की प्रकृति क्या थी और उसका स्वामी कौन था. इस पर अधिवक्ता ने वर्ष 1960 के चकबंदी दस्तावेज दिखाए, जिनमें जमीन की प्रकृति आबादी और मस्जिद दोनों ही दर्ज हैं.

इस पर न्यायालय ने अधिवक्ता से पूछा कि आबादी की जमीन पर मस्जिद का निर्माण कैसे हो गया. अधिवक्ता ने जवाब दिया कि यह सौ वर्षों पूर्व हुआ था. हालांकि न्यायालय के पूछने पर वह अपने इस दावे के समर्थन में कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं दे सके.

लखनऊः बाराबंकी के रामसनेही घाट तहसील परिसर में स्थित रही मस्जिद के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फिलहाल कोई अंतरिम राहत नहीं दी है. हालांकि न्यायालय ने तत्कालीन एसडीएम दिव्यांशु पटेल और मस्जिद कमेटी को नोटिस जारी करने का आदेश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई को होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने सुन्नी सेंट्रल बोर्ड तथा हसमत अली और अन्य की याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया.

न्यायालय ने याचिकाओं पर 15 जून को सुनवाई के पश्चात अपना आदेश सुरक्षित कर लिया था. जिसे मंगलवार को जारी किया है. उल्लेखनीय है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका में अंतरिम राहत के तौर पर मस्जिद वाले स्थान पर अजान और पांच वक्त नमाज पढ़ने में दखल न दिए जाने की मांग की गई है. दूसरी याचिका में मस्जिद वाले स्थान पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देने की मांग की गई है.

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याचिकाओं में रामसनेही घाट के तत्कालीन एसडीएम पर मनमाने तरीके से कार्रवाई करते हुए मस्जिद को 17 मई को ध्वस्त करने का आरोप लगाया गया है. याचिका में एसडीएम को दंडित करने का आदेश राज्य सरकार को देने की भी मांग की गई है.

न्यायालय ने मंगलवार को जारी अपने आदेश में उल्लेखित किया है कि वक्फ बोर्ड के वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर से कोर्ट द्वारा पूछा गया कि जहां मस्जिद कथित तौर पर स्थित थी. उस जमीन की प्रकृति क्या थी और उसका स्वामी कौन था. इस पर अधिवक्ता ने वर्ष 1960 के चकबंदी दस्तावेज दिखाए, जिनमें जमीन की प्रकृति आबादी और मस्जिद दोनों ही दर्ज हैं.

इस पर न्यायालय ने अधिवक्ता से पूछा कि आबादी की जमीन पर मस्जिद का निर्माण कैसे हो गया. अधिवक्ता ने जवाब दिया कि यह सौ वर्षों पूर्व हुआ था. हालांकि न्यायालय के पूछने पर वह अपने इस दावे के समर्थन में कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं दे सके.

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