लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने आपराधिक मामलों के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा में वृद्धि की मांग के लिए पीड़ित द्वारा अपील नहीं दाखिल की जा सकती. न्यायालय ने कहा कि पीड़ित द्वारा सजा में वृद्धि की मांग की अपील पोषणीय नहीं है. यह निर्णय न्यायमूर्ति मोहम्मद फैज आलम खान की एकल पीठ ने शिरीन की ओर से दाखिल अपील को खारिज करते हुए पारित किया.
अपीलार्थी का कहना था कि उसके द्वारा दर्ज कराए गए आईपीसी की धारा 323, 498-ए, 506 व धारा 3/4 दहेज निषेध अधिनियम के मामले में ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को दोषी करार दिया. लेकिन कम सजा देते हुए उन्हें अपराधी परिवीक्षा अधिनियम का लाभ दे दिया. परिवीक्षा अधिनियम का लाभ देने की वजह से दोषियों को सजा काटने के लिए जेल नहीं जाना पड़ा, बल्कि उन्हें रिहा कर दिया गया. अपीलार्थी ने दोषियों को सुनाई गई सजा में वृद्धि की मांग की.
पढ़ेंः सुप्रीम कोर्ट ने आजम खान केस में यूपी सरकार से मांगा जवाब, अब 22 जुलाई को होगी सुनवाई
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि सीआरपीसी की धारा 372 के तहत पीड़ित की अपील सिर्फ तीन ही परिस्थितियों में पोषणीय होती है. पहला यदि अभियुक्त को दोषमुक्त कर दिया गया हो, दूसरा यदि अपेक्षाकृत छोटे अपराध में अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जाता है तथा तीसरा यदि ट्रायल कोर्ट द्वारा अपर्याप्त मुआवजा का आदेश दिया जाता है. न्यायालय ने कहा कि उक्त तीन परिस्थितियों के अतिरिक्त कोई भी मांग ट्रायल कोर्ट के आदेश के विरुद्ध पीड़ित द्वारा नहीं की जा सकती है. न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि सजा में वृद्धि की अपील राज्य सरकार द्वारा सीआरपीसी की धारा 377 के तहत की जा सकती है.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप