लखनऊ: एक महत्वपूर्ण फैसले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा है कि खुद को किशोर अपचारी घोषित करने के लिए अभियुक्त कभी भी अदालत में दावा कर सकता है. इसी के साथ न्यायालय ने दहेज हत्या के 22 साल पुराने मामले में ननद को अनुमति दे दी है कि वह सम्बंधित अदालत में खुद को किशोर अपचारी घोषित करने के लिए प्रार्थना पत्र दाखिल कर सकती है.
यह आदेश जस्टिस श्री प्रकाष सिंह की एकल पीठ ने याची ननद की अर्जी पर पारित किया है. ननद का कहना था कि वर्ष 2000 में उसकी भाभी की मौत हो गई थी, जिस पर भाभी के पिता ने उसके घर वालों के खिलाफ दहेज हत्या का केस लिखा दिया था. मुकदमे में याची को भी अभियुक्त बनाया गया था, जबकि वह घटना के समय मात्र 13 साल की थी.
याचिका दाखिल कर ननद का कहना था कि घटना के बाद उसकी शादी हो गई और वह अपनी ससुराल में रहने लगी. इधर केस में उसके खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सीतापुर ने गैर जमानतीय वारंट जारी कर दिया, जब उसे पता चला तो उसने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की केार्ट में अर्जी देकर खुद को किशोर अपचारी घोषित कर उसका केस किशोर न्याय बोर्ड भेजने की मांग की. मुख्य न्यायिक मजिस्टे्रट ने उसकी अर्जी 7 दिसम्बर 2022 को यह कहते हुए खारिज कर दी कि उसने यह दावा काफी देर से किया है.
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के उक्त आदेश को याची ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर हाईकोर्ट ने हाल ही में अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 7 के तहत साफ है कि अभियुक्त खुद को किशोर अपचारी घोषित करने की दलील मुकदमे के किसी भी स्तर पर उठा सकता है, फिर चाहे वह विचारण से पहले का स्तर हो, बाद का हो या फिर सजा होने के बाद अपील के स्तर पर हो. कोर्ट ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को खारिज करते हुए याची ननद को अपनी अर्जी फिर से उस कोर्ट में दाखिल करने को कहा है जिस पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को अगले 45 दिन में फैसला करना होगा.