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ड्रोन कैसे करता है काम, ड्रोन मैन से जानिए - milind raj explain how drone works

ड्रोन के बारे में आपने खूब सुना होगा, लेकिन इसका इस्तेमाल कहां-कहां होता है. इसके बारे में शायद ही किसी को पात होगा. ईटीवी भारत ने लखनऊ में ड्रोन मैन के नाम से मशहूर मिलिंद राज से बातचीत की.

ड्रोन के बारे में जानकारी देते मिलिंद राज
ड्रोन के बारे में जानकारी देते मिलिंद राज
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Published : Jul 13, 2021, 10:28 AM IST

Updated : Jul 13, 2021, 1:42 PM IST

लखनऊ: हाल ही में जम्मू एयरबेस पर हुआ ड्रोन हमला चर्चा का विषय बना हुआ है. टेक्नोलॉजी और साइंस का अगर सही दिशा में इस्तेमाल किया जाए तो बेहतर परिणाम साबित होता है, लेकिन वहीं इसका इस्तेमाल अगर गलत दिशा में किया जाए तो यह काफी ज्यादा खतरनाक भी होता है. आपने अक्सर ड्रोन के बारे में सुना और देखा होगा. लेकिन इसकी क्या खासियत है, यह हवा में कैसे उड़ता है, इसका वजन कितना होता है और यह कितनी ऊंचाई पर उड़ सकता है इसके बारे में जानकारी दी राजधानी के ड्रोन मैन यानि मिलिंद राज ने.

ड्रोन मैन मिलिंद राज को पूर्व राष्ट्रपति व साइंटिस्ट डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने सन् 2014 में 'ड्रोन मैन ऑफ इंडिया' का टाइटल दिया था. कोरोना काल के दौरान मिलिंद ने ऐसा ड्रोन बनाया था जो बिना इंसानी मदद के इलाके में सैनिटाइजेशन का काम कर सकता है. मिलिंद बताते हैं कि ड्रोन एक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट है. जिसे आसमान में एक रिमोट की सहायता से उड़ा सकते हैं. एक सामान्य ड्रोन में चार विंग यानि पंखे लगे होते हैं. दो क्लॉक वाइज और दो एंटी क्लॉक वाइज घूमते हैं इसलिए इसे क्वाडकॉप्टर के नाम से भी जाना जाता है. ड्रोन को एक कंप्यूटर या रिमोट की मदद से इसकी स्पीड, दिशा कण्ट्रोल कर सकते हैं. आजकल के ड्रोन में कैमरा लगा होता है जिसकी मदद से काफी आसानी से फोटो या विडियो रिकॉर्डिंग कर सकते हैं. रिमोट के जरिए ड्रोन को कंट्रोल किया जाता है. 400 किलोमीटर की दूरी तक रिमोट के जरिए किसी भी ड्रोन को ऑपरेट कर सकते हैं. एक खास बात यह है कि ड्रोन को किस दिशा से उड़ाया गया है यह पता नहीं चल पाता है.

ड्रोन के बारे में जानकारी देते मिलिंद राज

बीते 27 जून को भारतीय वायु सेना के जम्मू एयरबेस पर ड्रोन से किए गए हमले में कार्बन फाइबर का इस्तेमाल किया गया था. मिलिंद बताते हैं कि कार्बन फाइबर का प्रयोग ड्रोन का वजन घटाने के लिए किया जाता है जिससे ड्रोन लंबी उड़ान भर सके. कार्बन फाइबर 5-10 माइक्रोमीटर का व्यास रखने वाले रेशे होते हैं जिनका अधिकांश भाग कार्बन परमाणुओं का बना हुआ हो. इन रेशों का निर्माण कार्बन परमाणुओं को इस तरह के क्रिस्टलों में जोड़कर के होता है. कार्बन फाइबर अपनी उच्च सख्ती, उच्च तनाव पुष्टि, कम भार, उच्च रासायनिक दृढ़ता यानी अन्य रसायनों से विकृत न होना, उच्च तापमान सहनशीलता और कम तापीय प्रसार (गरम होने पर फैलना) के लिए जाने जाते हैं. इसलिए वे वांतरिक्ष (एरोस्पेस), सिविल अभियांत्रिकी, सैनिक कार्यों और रेस-इत्यादि में प्रयोग गाड़ियों व साइकलों में प्रयोग होते हैं. इनकी एक कमी यह है कि कांच फाइबर और प्लास्टिक फाइबर की तुलना में इन्हें बनाना अधिक महंगा होता है. इसलिए इन्हें अक्सर अन्य प्रकार के फाइबर के साथ मिलाकर बनाया जाता है.

कई प्रकार के होते हैं ड्रोन

मिलिंद बताते हैं कि ड्रोन कई प्रकार के होते हैं और हर ड्रोन की अलग खासियत होती है. कुछ ड्रोन ऐसे होते हैं जिन्हें एजुकेशन में इस्तेमाल किया जाता है, शादी समारोह, पार्टी में इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कैमरे के जरिए विडियोग्राफी की जाती है. मानवरहित विमान, मानवरहित युद्धक विमान, कृषि ड्रोन - कृषि कार्यों (जैसे कीटनाशक का छिड़काव करने के लिए), आपूर्तिकारी ड्रोन, सूक्ष्म वायुयान , लघु मानवरहित वायुयान बहुरोटर, यात्री ड्रोन और चतुर कॉप्टर ड्रोन होते हैं.

इसे भी पढ़ें-लखनऊ के होनहार ने बनाया एंटी कोरोना ड्रोन, 8 वर्ग किमी को कर सकता है सैनिटाइज



ड्रोन उड़ाने से पहले लेनी होती है अनुमति
मलिंद ने बताया कि ड्रोन जिनका वजन 250 ग्राम से 2 किलो के बीच होता है और कैमरा ऑपरेट करते हैं उन्हें उड़ाने के लिए कम से कम पुलिस की परमीशन की जरूरत होती है. जिनका वजन 2 किलो से ज्यादा होता है या फिर जो 200 फिट से ज्यादा ऊंचाई पर उड़ सकते हैं उन्हें लाइसेंस, फ्लाइट प्लान के साथ-साथ पुलिस परमीशन और कई मामलों में DGCA( डायरेक्टर जनरल सिविल एविएशन) की परमीशन भी लगती है. 25 किलो से ऊपर वाले ड्रोन तो बिना DGCA की अनुमति के उड़ाए ही नहीं जा सकते.

2017 में आई ड्रोन टेक्नोलॉजी
भारत में दिसंबर 2017 में ही ड्रोन के प्रयोग को लेकर नई नियमावली आ गई थी. अब यह काफी आगे बढ़ चुका है. भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल है जिसने ड्रोन के संचालन के लिए विस्तृत नियम बनाये हैं. नैनो ड्रोन पर हालांकि बहुत कड़े नियम नहीं हैं, लेकिन माइक्रो, स्मॉल, मीडियम और लार्ज कैटेगरी के ड्रोन को कई नियमों का पालन करना होता है.

लखनऊ: हाल ही में जम्मू एयरबेस पर हुआ ड्रोन हमला चर्चा का विषय बना हुआ है. टेक्नोलॉजी और साइंस का अगर सही दिशा में इस्तेमाल किया जाए तो बेहतर परिणाम साबित होता है, लेकिन वहीं इसका इस्तेमाल अगर गलत दिशा में किया जाए तो यह काफी ज्यादा खतरनाक भी होता है. आपने अक्सर ड्रोन के बारे में सुना और देखा होगा. लेकिन इसकी क्या खासियत है, यह हवा में कैसे उड़ता है, इसका वजन कितना होता है और यह कितनी ऊंचाई पर उड़ सकता है इसके बारे में जानकारी दी राजधानी के ड्रोन मैन यानि मिलिंद राज ने.

ड्रोन मैन मिलिंद राज को पूर्व राष्ट्रपति व साइंटिस्ट डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने सन् 2014 में 'ड्रोन मैन ऑफ इंडिया' का टाइटल दिया था. कोरोना काल के दौरान मिलिंद ने ऐसा ड्रोन बनाया था जो बिना इंसानी मदद के इलाके में सैनिटाइजेशन का काम कर सकता है. मिलिंद बताते हैं कि ड्रोन एक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट है. जिसे आसमान में एक रिमोट की सहायता से उड़ा सकते हैं. एक सामान्य ड्रोन में चार विंग यानि पंखे लगे होते हैं. दो क्लॉक वाइज और दो एंटी क्लॉक वाइज घूमते हैं इसलिए इसे क्वाडकॉप्टर के नाम से भी जाना जाता है. ड्रोन को एक कंप्यूटर या रिमोट की मदद से इसकी स्पीड, दिशा कण्ट्रोल कर सकते हैं. आजकल के ड्रोन में कैमरा लगा होता है जिसकी मदद से काफी आसानी से फोटो या विडियो रिकॉर्डिंग कर सकते हैं. रिमोट के जरिए ड्रोन को कंट्रोल किया जाता है. 400 किलोमीटर की दूरी तक रिमोट के जरिए किसी भी ड्रोन को ऑपरेट कर सकते हैं. एक खास बात यह है कि ड्रोन को किस दिशा से उड़ाया गया है यह पता नहीं चल पाता है.

ड्रोन के बारे में जानकारी देते मिलिंद राज

बीते 27 जून को भारतीय वायु सेना के जम्मू एयरबेस पर ड्रोन से किए गए हमले में कार्बन फाइबर का इस्तेमाल किया गया था. मिलिंद बताते हैं कि कार्बन फाइबर का प्रयोग ड्रोन का वजन घटाने के लिए किया जाता है जिससे ड्रोन लंबी उड़ान भर सके. कार्बन फाइबर 5-10 माइक्रोमीटर का व्यास रखने वाले रेशे होते हैं जिनका अधिकांश भाग कार्बन परमाणुओं का बना हुआ हो. इन रेशों का निर्माण कार्बन परमाणुओं को इस तरह के क्रिस्टलों में जोड़कर के होता है. कार्बन फाइबर अपनी उच्च सख्ती, उच्च तनाव पुष्टि, कम भार, उच्च रासायनिक दृढ़ता यानी अन्य रसायनों से विकृत न होना, उच्च तापमान सहनशीलता और कम तापीय प्रसार (गरम होने पर फैलना) के लिए जाने जाते हैं. इसलिए वे वांतरिक्ष (एरोस्पेस), सिविल अभियांत्रिकी, सैनिक कार्यों और रेस-इत्यादि में प्रयोग गाड़ियों व साइकलों में प्रयोग होते हैं. इनकी एक कमी यह है कि कांच फाइबर और प्लास्टिक फाइबर की तुलना में इन्हें बनाना अधिक महंगा होता है. इसलिए इन्हें अक्सर अन्य प्रकार के फाइबर के साथ मिलाकर बनाया जाता है.

कई प्रकार के होते हैं ड्रोन

मिलिंद बताते हैं कि ड्रोन कई प्रकार के होते हैं और हर ड्रोन की अलग खासियत होती है. कुछ ड्रोन ऐसे होते हैं जिन्हें एजुकेशन में इस्तेमाल किया जाता है, शादी समारोह, पार्टी में इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कैमरे के जरिए विडियोग्राफी की जाती है. मानवरहित विमान, मानवरहित युद्धक विमान, कृषि ड्रोन - कृषि कार्यों (जैसे कीटनाशक का छिड़काव करने के लिए), आपूर्तिकारी ड्रोन, सूक्ष्म वायुयान , लघु मानवरहित वायुयान बहुरोटर, यात्री ड्रोन और चतुर कॉप्टर ड्रोन होते हैं.

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ड्रोन उड़ाने से पहले लेनी होती है अनुमति
मलिंद ने बताया कि ड्रोन जिनका वजन 250 ग्राम से 2 किलो के बीच होता है और कैमरा ऑपरेट करते हैं उन्हें उड़ाने के लिए कम से कम पुलिस की परमीशन की जरूरत होती है. जिनका वजन 2 किलो से ज्यादा होता है या फिर जो 200 फिट से ज्यादा ऊंचाई पर उड़ सकते हैं उन्हें लाइसेंस, फ्लाइट प्लान के साथ-साथ पुलिस परमीशन और कई मामलों में DGCA( डायरेक्टर जनरल सिविल एविएशन) की परमीशन भी लगती है. 25 किलो से ऊपर वाले ड्रोन तो बिना DGCA की अनुमति के उड़ाए ही नहीं जा सकते.

2017 में आई ड्रोन टेक्नोलॉजी
भारत में दिसंबर 2017 में ही ड्रोन के प्रयोग को लेकर नई नियमावली आ गई थी. अब यह काफी आगे बढ़ चुका है. भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल है जिसने ड्रोन के संचालन के लिए विस्तृत नियम बनाये हैं. नैनो ड्रोन पर हालांकि बहुत कड़े नियम नहीं हैं, लेकिन माइक्रो, स्मॉल, मीडियम और लार्ज कैटेगरी के ड्रोन को कई नियमों का पालन करना होता है.

Last Updated : Jul 13, 2021, 1:42 PM IST
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