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लखनऊ: कुलियों पर लॉकडाउन की मार, उधारी पर कट रही जिंदगी

कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन से सब परेशान हैं. राजधानी के उत्तर रेलवे के चारबाग रेलवे स्टेशन और पूर्वोत्तर रेलवे के लखनऊ जंक्शन रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले 300 से ज्यादा कुलियों की हालत भी खराब है. इस लॉकडाउन में वह उधार लेकर जीने पर मजबूर हैं. उनका कहना है कि उन्हें न तो रेलवे से कोई मदद मिली है और न ही सरकार ने उन पर कोई ध्यान दिया है.

कुलियों पर भारी पड़ रही लॉकडाउन की मार
कुलियों पर भारी पड़ रही लॉकडाउन की मार
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Published : Apr 12, 2020, 5:10 PM IST

लखनऊ: कोरोना महामारी के चलते देशभर में लॉकडाउन है. इसके कारण ट्रेनों के पहिए थम गए हैं, इसीलिए कुलियों के कदम भी थम गए हैं. घर की दहलीज भी लांघने की मनाही है. ऐसे में उनके लिए यह लॉकडाउन मुसीबत बनकर आया है. दूसरों का बोझ ढोने वाले कुलियों की जिंदगी आजकल खुद बोझ बन गयी है. उधार लेकर किसी तरह कुली अपना परिवार पाल रहे हैं. सरकार से भी अभी उन्हें कोई मदद नहीं मिली है. ऐसे में उन्हें ब्याज पर पैसे लेने पड़ रहे हैं.

कुलियों पर भारी पड़ रही लॉकडाउन की मार

ईटीवी भारत की टीम महामारी के इस कठिन दौर में जिंदगी की मार झेल रहे कुलियों का दर्द जानने उनके बीच पहुंची. ईटीवी भारत को कुलियों ने बताया कि वे अपना परिवार चलाने में असमर्थ हैं. जिंदगी पहाड़ के मानिंद लगने लगी है.

'राजधानी में 300 से ज्यादा कुलियों के सामने संकट'
लखनऊ के चारबाग इलाके की मलिन बस्ती सुदामापुरी में बड़ी संख्या में कुली रहते हैं. वैसे तो जिंदगी से हर रोज उनका संघर्ष जारी रहता है, लेकिन आजकल उनकी जिंदगी पूरी तरह से थम गई है. लॉकडाउन में ट्रेनों का संचालन भी बंद कर दिया गया है. इस कारण उत्तर रेलवे के चारबाग रेलवे स्टेशन और पूर्वोत्तर रेलवे के लखनऊ जंक्शन रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले 300 से ज्यादा कुलियों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है.

'ईटीवी भारत ने की कुलियों से बातचीत'

यहां रहने वाले कुलियों से ईटीवी भारत ने बात की. रामकेश पिछले 11 वर्षों से रेलवे स्टेशन पर यात्रियों का सामान ढोते हैं. उनका कहना है कि घर में पत्नी हैं, चार बच्चे हैं और घर भी किराए का है. कुछ कमाई हो जाती थी तो किसी तरह गुजर-बसर भी हो रही थी, लेकिन अब दिन-गिनकर परिवार समय काट रहा है. उनका कहना है कि सरकार को हमारे बारे में भी कुछ सोचना चाहिए. हमारा भी परिवार है.

वहीं रघु का कहना है कि उनको 11 साल कुली का काम करते हुए हो गए हैं. घर में तमाम समस्याएं होती हैं. किसी की दवाई है तो बच्चों की भी समस्याएं रहती हैं. सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है. रेलवे से भी कोई मदद नहीं मिली है.

'कर्ज लेने को मजबूर कुली'

ईटीवी भारत से बात करते हुए कुली यूनियन के अध्यक्ष सुरेश यादव ने बताया कि मजबूरी में हमें क्षेत्रीय या गांव में जो साहूकार हैं. उनसे ब्याज पर पैसा लेना पड़ रहा है. वह पैसा 10 रुपए सैकड़ा के हिसाब से ब्याज पर दे रहे हैं. हम अपनी भूख बर्दाश्त कर सकते हैं, लेकिन घर में बच्चे रो रहे हों, तो बहुत परेशानी होती है. रेलवे अगर हमें बंधुआ मजदूर बनाकर रखे हुए है तो हमारी जीविकोपार्जन के लिए उसका उत्तरदायित्व बनता है. रेलवे को यह काम करना चाहिए. देश के 19,765 कुलियों के बारे में सरकार को सोचना जरूर चाहिए.

नगर आयुक्त ने मांगी जानकारी
उत्तर रेलवे के चारबाग रेलवे स्टेशन पर 241 और पूर्वोत्तर रेलवे के लखनऊ जंक्शन रेलवे स्टेशन पर 67 कुली काम करते हैं. नगर आयुक्त की ओर से डीआरएम कार्यालय से कुलियों की संख्या की जानकारी मांगी गई है. जिससे उन्हें श्रमिकों की तरह पैसा दिया जा सके. हालांकि यह पैसा कब मिलेगा, ये कहना मुश्किल है.

लखनऊ: कोरोना महामारी के चलते देशभर में लॉकडाउन है. इसके कारण ट्रेनों के पहिए थम गए हैं, इसीलिए कुलियों के कदम भी थम गए हैं. घर की दहलीज भी लांघने की मनाही है. ऐसे में उनके लिए यह लॉकडाउन मुसीबत बनकर आया है. दूसरों का बोझ ढोने वाले कुलियों की जिंदगी आजकल खुद बोझ बन गयी है. उधार लेकर किसी तरह कुली अपना परिवार पाल रहे हैं. सरकार से भी अभी उन्हें कोई मदद नहीं मिली है. ऐसे में उन्हें ब्याज पर पैसे लेने पड़ रहे हैं.

कुलियों पर भारी पड़ रही लॉकडाउन की मार

ईटीवी भारत की टीम महामारी के इस कठिन दौर में जिंदगी की मार झेल रहे कुलियों का दर्द जानने उनके बीच पहुंची. ईटीवी भारत को कुलियों ने बताया कि वे अपना परिवार चलाने में असमर्थ हैं. जिंदगी पहाड़ के मानिंद लगने लगी है.

'राजधानी में 300 से ज्यादा कुलियों के सामने संकट'
लखनऊ के चारबाग इलाके की मलिन बस्ती सुदामापुरी में बड़ी संख्या में कुली रहते हैं. वैसे तो जिंदगी से हर रोज उनका संघर्ष जारी रहता है, लेकिन आजकल उनकी जिंदगी पूरी तरह से थम गई है. लॉकडाउन में ट्रेनों का संचालन भी बंद कर दिया गया है. इस कारण उत्तर रेलवे के चारबाग रेलवे स्टेशन और पूर्वोत्तर रेलवे के लखनऊ जंक्शन रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले 300 से ज्यादा कुलियों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है.

'ईटीवी भारत ने की कुलियों से बातचीत'

यहां रहने वाले कुलियों से ईटीवी भारत ने बात की. रामकेश पिछले 11 वर्षों से रेलवे स्टेशन पर यात्रियों का सामान ढोते हैं. उनका कहना है कि घर में पत्नी हैं, चार बच्चे हैं और घर भी किराए का है. कुछ कमाई हो जाती थी तो किसी तरह गुजर-बसर भी हो रही थी, लेकिन अब दिन-गिनकर परिवार समय काट रहा है. उनका कहना है कि सरकार को हमारे बारे में भी कुछ सोचना चाहिए. हमारा भी परिवार है.

वहीं रघु का कहना है कि उनको 11 साल कुली का काम करते हुए हो गए हैं. घर में तमाम समस्याएं होती हैं. किसी की दवाई है तो बच्चों की भी समस्याएं रहती हैं. सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है. रेलवे से भी कोई मदद नहीं मिली है.

'कर्ज लेने को मजबूर कुली'

ईटीवी भारत से बात करते हुए कुली यूनियन के अध्यक्ष सुरेश यादव ने बताया कि मजबूरी में हमें क्षेत्रीय या गांव में जो साहूकार हैं. उनसे ब्याज पर पैसा लेना पड़ रहा है. वह पैसा 10 रुपए सैकड़ा के हिसाब से ब्याज पर दे रहे हैं. हम अपनी भूख बर्दाश्त कर सकते हैं, लेकिन घर में बच्चे रो रहे हों, तो बहुत परेशानी होती है. रेलवे अगर हमें बंधुआ मजदूर बनाकर रखे हुए है तो हमारी जीविकोपार्जन के लिए उसका उत्तरदायित्व बनता है. रेलवे को यह काम करना चाहिए. देश के 19,765 कुलियों के बारे में सरकार को सोचना जरूर चाहिए.

नगर आयुक्त ने मांगी जानकारी
उत्तर रेलवे के चारबाग रेलवे स्टेशन पर 241 और पूर्वोत्तर रेलवे के लखनऊ जंक्शन रेलवे स्टेशन पर 67 कुली काम करते हैं. नगर आयुक्त की ओर से डीआरएम कार्यालय से कुलियों की संख्या की जानकारी मांगी गई है. जिससे उन्हें श्रमिकों की तरह पैसा दिया जा सके. हालांकि यह पैसा कब मिलेगा, ये कहना मुश्किल है.

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