लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow Bench of High Court) ने एलडीए के अधिकारियों की कार्यशैली पर निराशा व्यक्त करते हुए, टिप्पणी की है कि एलडीए के अधिकारी और वहां का प्रशासन ( LDA officer and administration) अपना दायित्व निभाने के प्रति पूरी तरह से लापरवाह हो चुका है. न्यायालय ने यह भी नसीहत दी कि अब यह बहुत जरूरी है कि एलडीए के अधिकारी आत्मावलोकन करें और ऐसे असाधारण उपाय करें को उनके कार्य में करे और प्राधिकरण अपना वैधानिक दायित्व ठीक से निभा सके.
यह टिप्पणियां न्यायमूर्ति राजन रॉय व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने कृपा शंकर सिंह की एक याचिका पर पारित किया. याचिका में कहा गया था कि याची के पक्ष में 25 सितम्बर 1996 को कानपुर रोड योजना स्थित एलडीए कॉलोनी में एक प्लॉट के सम्बंध में प्राधिकरण के साथ हायर पर्चेज अग्रीमन्ट हुआ था. लेकिन प्राधिकरण उसे उक्त प्लॉट बैनामा नहीं कर रहा है. न्यायालय ने याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि मामले से जुड़े विवादित प्रश्नों को रिट याचिका में ते नहीं किया जा सकता, याची के पास सिविल कोर्ट में सिविल वाद दायर करने का विकल्प है.
हालांकि न्यायालय ने पाया कि मामले की सुनवाई के दौरान एलडीए की ओर से शपथ पत्र दाखिल कर कहा गया था कि उसके पास रिकॉर्ड नहीं है लेकिन याची द्वारा दाखिल की गए दस्तावेज फर्जी हैं, इस पर न्यायालय ने प्रश्न किया कि फिर एलडीए ने याची द्वारा जमा की गई धनराशि को अडजस्ट क्यों किया यह एलडीए नहीं बताया पाया. न्यायालय ने आगे कहा कि एलडीए का खुद का रिकॉर्ड रहस्यमयी है, याची का नाम एलडीए की डिफाल्ट लिस्ट में कैसे आया. न्यायालय ने कहा कि एलडीए के अधिकारियों के आचरण की सराहना नहीं की जा सकती.
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