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HC ने एलयू के प्रोफेसर रविकांत की FIR खारिज करने की मांग को नकारा, कहाः बिना नोटिस दिये न की जाए कार्रवाई - हाई कोर्ट ने अस्वीकार कर दी

एलयू के प्रोफेसर रविकांत की एफआईआर खारिज करने की मांग हाई कोर्ट ने अस्वीकार कर दी. कोर्ट ने कहा कि बिना नोटिस दिये कोई कार्रवाई न हो.

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हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच
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Published : May 20, 2022, 9:02 PM IST

लखनऊः लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एफआईआर खारिज करने की उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया है. हालांकि न्यायालय ने ये भी आदेश दिया है कि याची के खिलाफ जिन आरोपों के तहत एफआईआर दर्ज हुई है. उसमें अधिकतम सजा सात साल से कम है.

लिहाजा सीआरपीसी के संबंधित प्रावधानों के तहत ही उसके खिलाफ कार्रवाई की जाये. न्यायालय ने जिन प्रावधानों का जिक्र किया है, उनमें अभियुक्त को पहले नोटिस भेजकर तलब करने की बात कही गई है.

ये आदेश न्यायमूर्ति अरविन्द कुमार मिश्रा प्रथम और मनीष माथुर की खंडपीठ ने प्रोफेसर रविकांत की याचिका को निस्तारित करते हुए पारित किया. याची ने अपने खिलाफ हसनगंज थाने में समुदायों के बीच नफरत उत्पन्न करना और सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ना शांति भंग करने के लिए भड़काने के उद्देश्य से जानबूझकर अपमानजनक बातें कहना और वर्गों के बीच शत्रुता उत्पन्न करना समेत 66 आईटी एक्ट के आरोपों के तहत 10 मई को एफआईआर दर्ज की गई है.

इसे भी पढ़ें- आज़म खान शिवपाल बनाएंगे नया मोर्चा ? अखिलेश को छोड़ भाजपा को देंगे चुनौती?

न्यायालय ने कहा कि एफआईआर को देखने से याची के खिलाफ संज्ञेय अपराध बनता है. लिहाजा एफआईआर को खारिज नहीं किया जा सकता है. न्यायालय ने इस आधार पर एफआईआर खारिज करने की मांग को अस्वीकार कर दिया. हालांकि न्यायालय ने याची को ये राहत जरूर दी है कि उसके खिलाफ जो भी आरोप लगाये गए हैं. उनमें अधिकतम सजा सात साल से कम है. लिहाजा सीआरपीसी की धारा 41 (1) बी और 41-ए को ध्यान रखते हुए ही पुलिस कार्रवाई करे. न्यायालय ने ये भी स्पष्ट किया है कि अगर उक्त प्रावधानों का पालन नहीं किया जाता तो मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत करने का रास्ता खुला है.

लखनऊः लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एफआईआर खारिज करने की उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया है. हालांकि न्यायालय ने ये भी आदेश दिया है कि याची के खिलाफ जिन आरोपों के तहत एफआईआर दर्ज हुई है. उसमें अधिकतम सजा सात साल से कम है.

लिहाजा सीआरपीसी के संबंधित प्रावधानों के तहत ही उसके खिलाफ कार्रवाई की जाये. न्यायालय ने जिन प्रावधानों का जिक्र किया है, उनमें अभियुक्त को पहले नोटिस भेजकर तलब करने की बात कही गई है.

ये आदेश न्यायमूर्ति अरविन्द कुमार मिश्रा प्रथम और मनीष माथुर की खंडपीठ ने प्रोफेसर रविकांत की याचिका को निस्तारित करते हुए पारित किया. याची ने अपने खिलाफ हसनगंज थाने में समुदायों के बीच नफरत उत्पन्न करना और सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ना शांति भंग करने के लिए भड़काने के उद्देश्य से जानबूझकर अपमानजनक बातें कहना और वर्गों के बीच शत्रुता उत्पन्न करना समेत 66 आईटी एक्ट के आरोपों के तहत 10 मई को एफआईआर दर्ज की गई है.

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न्यायालय ने कहा कि एफआईआर को देखने से याची के खिलाफ संज्ञेय अपराध बनता है. लिहाजा एफआईआर को खारिज नहीं किया जा सकता है. न्यायालय ने इस आधार पर एफआईआर खारिज करने की मांग को अस्वीकार कर दिया. हालांकि न्यायालय ने याची को ये राहत जरूर दी है कि उसके खिलाफ जो भी आरोप लगाये गए हैं. उनमें अधिकतम सजा सात साल से कम है. लिहाजा सीआरपीसी की धारा 41 (1) बी और 41-ए को ध्यान रखते हुए ही पुलिस कार्रवाई करे. न्यायालय ने ये भी स्पष्ट किया है कि अगर उक्त प्रावधानों का पालन नहीं किया जाता तो मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत करने का रास्ता खुला है.

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