लखनऊः हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने चार व्यक्तियों की हत्या के एक मामले में अभियुक्तों की फांसी की सजा को उम्र कैद में परिवर्तित कर दिया है. न्यायालय ने अपने इस अहम फैसले में कहा है कि चूंकि घटना में दो ऐसे अभियुक्त भी शामिल थे. जिनकी पहचान नहीं हो सकी. अभियोजन प्रत्येक अभियुक्त की भूमिका स्पष्ट नहीं कर सका है. लिहाजा इसे दुर्लभ से दुर्लभतम मामला नहीं कहा जा सकता. हालांकि न्यायालय ने इस मामले में दोषी करार दिये गये चार अभियुक्तों की दोषसिद्दि को बरकरार रखा है.
ये निर्णय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने कृष्ण मुरारी, राघव राम वर्मा, काशी राम वर्मा और राम मिलन वर्मा की ओर से दाखिल अलग-अलग अपीलों पर पारित किया है. इन अपीलों के साथ न्यायालय ने राज्य सरकार की अपील और मामले के वादी की पुनरीक्षण याचिका के साथ मिलकर जमीन विवाद में रामदेव, रामनरेश, सुखई और गिरीश की बांके और गंड़ासे से हत्या कर दी थी.
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अपर जिला और सत्र न्यायधीश फैजाबाद की अदालत ने अपीलार्थियों को दोषी करार देते हुए उनके कृत्य को दुर्लभ से दुलर्भतम मामला करार देते हुए, उन्हें मृत्यु दंड की सजा सुनाई. न्यायालय ने अपीलार्थियों की दोषसिद्दि को तो बरकरार रखा. लेकिन मामले को दुर्लभ से दुर्लभतम नहीं माना. न्यायालय ने कहा कि मृतकों को घातक चोट पहुंचाने के लिए कौन जिम्मेदार था. वर्तमान अपीलार्थीगण और वे दो या तीन नकाबपोश जिनकी पहचान नहीं हो सकी. यह अभियोजन सिद्ध नहीं कर सका है. इसके अलावा अभियोजन यह भी सिद्ध नहीं कर सका है कि अपीलार्थियों ने प्री-प्लांड तरीके से घटना को अंजाम दिया. न्यायालय ने कहा कि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि अपराध का उद्देश्य क्या था.
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