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राज्य विश्वविद्यालयों के लिए समान पाठ्यक्रम पर शिक्षकों ने की आपत्ति, समाप्त किए जाने की मांग

उत्तर प्रदेश में विश्वविद्यालयों में एक समान सिलेबस लागू करने की सरकार की व्यवस्था का शिक्षकों ने विरोध करना शुरू कर दिया है. शिक्षकों का कहना है कि इस व्यवस्था को लागू करने से विश्वविद्यालयों की ऑटोनॉमी को खतरा होगा. अब तक विश्विद्यालय अपने विभागों, बोर्ड ऑफ स्टडीज के माध्यम से पाठ्यक्रम निर्धारित करते थे. नई प्रक्रिया उनकी स्वायतता पर भी अनाधिकृत हस्तक्षेप है.

समान पाठ्यक्रम पर शिक्षकों ने की आपत्ति
समान पाठ्यक्रम पर शिक्षकों ने की आपत्ति
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Published : May 23, 2021, 5:51 AM IST

लखनऊ: सरकार की तरफ से उत्तर प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में एक समान सिलेबस लागू करने का मन बना लिया गया है. उच्च शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालयों को यह सिलेबस भेज कर इसे लागू करने को कहा है. उच्च शिक्षा विभाग का कहना है कि इससे पाठ्यक्रम में एकरूपता आएगी. वहीं विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने इसको लेकर आपत्ति जाहिर की है. उनकी ओर से इस प्रस्ताव को स्थगित किए जाने की मांग की गई है.


लखनऊ विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक प्रोफेसर विभूति राय का कहना है कि इस समान पाठ्यक्रम में काफी खामियां हैं. श्री जय नारायण पीजी कॉलेज के वरिष्ठ शिक्षक डॉक्टर विनोद चंद्रा का कहना है कि इस व्यवस्था को लागू करने से विश्वविद्यालयों की ऑटोनॉमी को खतरा होगा. लखनऊ विश्वविद्यालय संयुक्त महाविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ मनोज पांडे ने जल्द से जल्द इस व्यवस्था को समाप्त किए जाने की मांग की है.

यह हैं शिक्षकों की आपत्तियां

  • नई शिक्षा नीति में न्यूनतम समान पाठ्यक्रम की कोई अवधारणा नहीं है. राज्य सरकार द्वारा 70% बदलाव न्यूनतम की श्रेणी में नहीं आता है.
  • 70% पाठ्यक्रम राज्य सरकार द्वारा और 30% पाठ्यक्रम का निर्धारण विश्वविद्यालयों द्वारा किये जाने से विश्वविद्यालयों की आकादमिक स्वायत्तता समाप्त हो जायेगी. नई शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयो को आकादमिक स्वायत्तता दिये जाने पर बल दिया गया है.
  • अकादमिक स्वायत्तता के समाप्त होने पर विश्वविद्यालय शोध केंद्र न होकर सिर्फ डिग्री देने की एक संस्था हो जायेंगे. नई शिक्षा नीति मे अधिक से अधिक शोध किये जाने पर बल दिया गया है, एवं इसके लिए महाविद्यालयों में भी शोध को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालयों को निर्देशित किया गया है.
  • एक क्षेत्र की अकादमिक आवश्यकता एवं आधारभूत संरंचना दूसरे से बहुत भिन्न हो सकती है.
  • अब तक विश्विद्यालय अपने विभागों, बोर्ड ऑफ स्टडीज के माध्यम से पाठ्यक्रम निर्धारित करते थे. नई प्रक्रिया उनकी स्वायतता पर भी अनाधिकृत हस्तक्षेप है.
  • एक समान पाठ्यक्रम लागू किये जाने पर विश्वविद्यालयों से नवाचार एव नवोन्मेष की परिकल्पना समाप्त हो जाएगी.
  • उत्तर प्रदेश राज्य के अंतर्गत कई केंद्रीय विश्वविद्यालय भी अवस्थित हैं तथा उनमें भी नई शिक्षा नीति लागू होने जा रही है, लेकिन अपने प्रदेश में अवस्थित होने के बावजूद एक समान पाठ्यक्रम लागू नहीं किया जा रहा है. देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एक समान पाठ्यक्रम लागू करने का कोई आदेश मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा नहीं दिया गया है.
  • समान पाठ्यक्रम लागू किये जाने से शैक्षणिक प्रतिस्पर्धा समाप्त हो जायेगी तथा उत्तर प्रदेश राज्य के उच्च शिक्षा के शैक्षणिक संस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालयों, अन्य राज्य के विश्वविद्यालयों तथा विदेशी विश्वविद्यालयों से वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में पीछे रह जायेंगे.

लखनऊ: सरकार की तरफ से उत्तर प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में एक समान सिलेबस लागू करने का मन बना लिया गया है. उच्च शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालयों को यह सिलेबस भेज कर इसे लागू करने को कहा है. उच्च शिक्षा विभाग का कहना है कि इससे पाठ्यक्रम में एकरूपता आएगी. वहीं विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने इसको लेकर आपत्ति जाहिर की है. उनकी ओर से इस प्रस्ताव को स्थगित किए जाने की मांग की गई है.


लखनऊ विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक प्रोफेसर विभूति राय का कहना है कि इस समान पाठ्यक्रम में काफी खामियां हैं. श्री जय नारायण पीजी कॉलेज के वरिष्ठ शिक्षक डॉक्टर विनोद चंद्रा का कहना है कि इस व्यवस्था को लागू करने से विश्वविद्यालयों की ऑटोनॉमी को खतरा होगा. लखनऊ विश्वविद्यालय संयुक्त महाविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ मनोज पांडे ने जल्द से जल्द इस व्यवस्था को समाप्त किए जाने की मांग की है.

यह हैं शिक्षकों की आपत्तियां

  • नई शिक्षा नीति में न्यूनतम समान पाठ्यक्रम की कोई अवधारणा नहीं है. राज्य सरकार द्वारा 70% बदलाव न्यूनतम की श्रेणी में नहीं आता है.
  • 70% पाठ्यक्रम राज्य सरकार द्वारा और 30% पाठ्यक्रम का निर्धारण विश्वविद्यालयों द्वारा किये जाने से विश्वविद्यालयों की आकादमिक स्वायत्तता समाप्त हो जायेगी. नई शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयो को आकादमिक स्वायत्तता दिये जाने पर बल दिया गया है.
  • अकादमिक स्वायत्तता के समाप्त होने पर विश्वविद्यालय शोध केंद्र न होकर सिर्फ डिग्री देने की एक संस्था हो जायेंगे. नई शिक्षा नीति मे अधिक से अधिक शोध किये जाने पर बल दिया गया है, एवं इसके लिए महाविद्यालयों में भी शोध को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालयों को निर्देशित किया गया है.
  • एक क्षेत्र की अकादमिक आवश्यकता एवं आधारभूत संरंचना दूसरे से बहुत भिन्न हो सकती है.
  • अब तक विश्विद्यालय अपने विभागों, बोर्ड ऑफ स्टडीज के माध्यम से पाठ्यक्रम निर्धारित करते थे. नई प्रक्रिया उनकी स्वायतता पर भी अनाधिकृत हस्तक्षेप है.
  • एक समान पाठ्यक्रम लागू किये जाने पर विश्वविद्यालयों से नवाचार एव नवोन्मेष की परिकल्पना समाप्त हो जाएगी.
  • उत्तर प्रदेश राज्य के अंतर्गत कई केंद्रीय विश्वविद्यालय भी अवस्थित हैं तथा उनमें भी नई शिक्षा नीति लागू होने जा रही है, लेकिन अपने प्रदेश में अवस्थित होने के बावजूद एक समान पाठ्यक्रम लागू नहीं किया जा रहा है. देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एक समान पाठ्यक्रम लागू करने का कोई आदेश मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा नहीं दिया गया है.
  • समान पाठ्यक्रम लागू किये जाने से शैक्षणिक प्रतिस्पर्धा समाप्त हो जायेगी तथा उत्तर प्रदेश राज्य के उच्च शिक्षा के शैक्षणिक संस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालयों, अन्य राज्य के विश्वविद्यालयों तथा विदेशी विश्वविद्यालयों से वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में पीछे रह जायेंगे.
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