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लोकसभा चुनाव में आसान नहीं होगा सपा कांग्रेस में सीटों का बंटवारा

लोकसभा चुनाव 2024 के सभी दलों ने अंदरखाने तैयारियां लगभग कर ली हैं. सपा और कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर अंदरखाने मंथन तेज है. सपा के साथ वाले अन्य सहयोगी दलों के बीच सीट बंटवारे की स्थिति क्या होगी इसका गुणा गणित सियासी जानकारों ने लगाना शुरू कर दिया है. आइए जानते हैं यूपी में क्या होगा सीट बंटवारे का स्वरूप.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 27, 2023, 9:43 AM IST

Updated : Sep 27, 2023, 2:53 PM IST

लखनऊ : कांग्रेस पार्टी तमाम भाजपा विरोधी दलों के साथ मिलकर आगामी लोकसभा चुनाव के लिए एक गठबंधन तैयार कर रही है, जिससे जिससे एनडीए गठबंधन को चुनौती दी जा सके. उत्तर प्रदेश में इस गठबंधन का समाजवादी पार्टी अहम हिस्सा है. प्रदेश में समाजवादी पार्टी न सिर्फ मुख्य विपक्षी दल है, बल्कि सूबे की एकमात्र पार्टी है जो भाजपा से मुकाबिल है. पिछले डेढ़ दशक से कांग्रेस पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का जनाधार उत्तर प्रदेश में लगातार गिरा है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन की बदौलत बसपा को 10 लोकसभा सीटों पर जीत जरूर हासिल हुई थी, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल कर सकी. वहीं कांग्रेस पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट और 2022 के विधानसभा चुनावों में महज दो सीटें हासिल हुई थीं. विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ समाजवादी पार्टी ही दम-खम के साथ खड़ी थी. स्वाभाविक है कि लोकसभा चुनाव के सीट बंटवारे में कांग्रेस गठबंधन उत्तर प्रदेश में सपा के रहमोकरम पर होगा.

लोकसभा चुनाव में आसान नहीं होगा सीटों का बंटवारा.
लोकसभा चुनाव में आसान नहीं होगा सीटों का बंटवारा.
कुछ दिन पहले पत्रकारों से बातचीत में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साफ कर दिया था कि वह प्रदेश में लोकसभा सीटों के बंटवारे पर किसी दल से सीटें मांग नहीं रहे हैं, बल्कि उन्हें सीटें दे रहे हैं. ऐसे में जब सीट बंटवारा होगा तो इसमें अखिलेश यादव की पसंद न पसंद और हानि-लाभ के समीकरण सबसे ऊपर होंगे. इसमें कोई दो राय नहीं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी बेहद कमजोर स्थिति में है. वर्ष 2019 में अमेठी की परंपरागत संसदीय सीट से राहुल गांधी को भी अपनी पराजय का सामना करना पड़ा था और वहां से भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी विजयी हुई थीं. अमेठी पर जीत भाजपा के लिए महज एक सीट पर जीत नहीं थी, बल्कि कांग्रेस के लिए एक संदेश भी थी कि उसका किला रह गया है और इसे दोबारा खड़ा करने के लिए बहुत जतन करने होंगे. खास बात यह है कि कांग्रेस नेतृत्व में प्रदेश में विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से पराजित होने के बावजूद पार्टी की स्थिति सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाए. बृजलाल खबरी को अध्यक्ष जरूर बनाया पर उन्हें अधिकार नहीं दिए गए. यही कारण है कि खाबरी एक साल में अपने संगठन तक का विस्तार नहीं कर पाए. अब प्रदेश कांग्रेस को अजय राय के रूप में नया अध्यक्ष मिल गया है. हालांकि इतने कम समय में वह कोई बड़ा बदलाव लाने में कामयाब हो सकेंगे यह कहना कठिन है.
लोकसभा चुनाव में आसान नहीं होगा सीटों का बंटवारा.
लोकसभा चुनाव में आसान नहीं होगा सीटों का बंटवारा.
बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन से अलग ही अपनी राह चुनी है. ऐसे में सपा कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ बहुजन समाज पार्टी की अपनी चुनौतियां होंगी. यदि पिछले चुनाव का आकलन करें तो बहुजन समाज पार्टी समाजवादी पार्टी के सामने तमाम सीटों पर ऐसे प्रत्याशी उतारती रही है जो सपा को नुकसान पहुंचाते हैं और भाजपा को फायदा. आगामी चुनाव में भी यह स्थिति कायम रहने की उम्मीद है. इसलिए भाजपा विरोधी गठबंधन के सामने चुनौतियों का अंबार कम नहीं है. इसके बावजूद कांग्रेस अपने लिए ढाई दर्जन लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी उतरना चाहती है. ऐसे में सपा के लिए इतनी सीटें दे पाना बहुत कठिन होगा. सपा के तमाम नेता पिछले पांच साल से तैयारी कर रहे हैं और अचानक उनका टिकट कटा तो भितरघात भी होगी. विधानसभा चुनाव में ऐसे अनुभव ले चुके अखिलेश यादव शायद ही दोबारा आत्मघाती कदम उठाएं. इसलिए वह कांग्रेस को परंपरागत सीटों को छोड़कर सिर्फ कमजोर सीटें ही दे सकते हैं. ऐसे में सपा, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन सीटों का बंटवारा कैसे करता है यह देखना बहुत रोचक होगा.

यह भी पढ़ें : UP विधानसभा चुनाव : सियासी पार्टियों में गठबंधन की होड़, छाेटी पार्टियाें की बढ़ी डिमांड

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लोकसभा चुनाव में आसान नहीं होगा सीटों का बंटवारा.
लोकसभा चुनाव में आसान नहीं होगा सीटों का बंटवारा.
कुछ दिन पहले पत्रकारों से बातचीत में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साफ कर दिया था कि वह प्रदेश में लोकसभा सीटों के बंटवारे पर किसी दल से सीटें मांग नहीं रहे हैं, बल्कि उन्हें सीटें दे रहे हैं. ऐसे में जब सीट बंटवारा होगा तो इसमें अखिलेश यादव की पसंद न पसंद और हानि-लाभ के समीकरण सबसे ऊपर होंगे. इसमें कोई दो राय नहीं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी बेहद कमजोर स्थिति में है. वर्ष 2019 में अमेठी की परंपरागत संसदीय सीट से राहुल गांधी को भी अपनी पराजय का सामना करना पड़ा था और वहां से भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी विजयी हुई थीं. अमेठी पर जीत भाजपा के लिए महज एक सीट पर जीत नहीं थी, बल्कि कांग्रेस के लिए एक संदेश भी थी कि उसका किला रह गया है और इसे दोबारा खड़ा करने के लिए बहुत जतन करने होंगे. खास बात यह है कि कांग्रेस नेतृत्व में प्रदेश में विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से पराजित होने के बावजूद पार्टी की स्थिति सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाए. बृजलाल खबरी को अध्यक्ष जरूर बनाया पर उन्हें अधिकार नहीं दिए गए. यही कारण है कि खाबरी एक साल में अपने संगठन तक का विस्तार नहीं कर पाए. अब प्रदेश कांग्रेस को अजय राय के रूप में नया अध्यक्ष मिल गया है. हालांकि इतने कम समय में वह कोई बड़ा बदलाव लाने में कामयाब हो सकेंगे यह कहना कठिन है.
लोकसभा चुनाव में आसान नहीं होगा सीटों का बंटवारा.
लोकसभा चुनाव में आसान नहीं होगा सीटों का बंटवारा.
बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन से अलग ही अपनी राह चुनी है. ऐसे में सपा कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ बहुजन समाज पार्टी की अपनी चुनौतियां होंगी. यदि पिछले चुनाव का आकलन करें तो बहुजन समाज पार्टी समाजवादी पार्टी के सामने तमाम सीटों पर ऐसे प्रत्याशी उतारती रही है जो सपा को नुकसान पहुंचाते हैं और भाजपा को फायदा. आगामी चुनाव में भी यह स्थिति कायम रहने की उम्मीद है. इसलिए भाजपा विरोधी गठबंधन के सामने चुनौतियों का अंबार कम नहीं है. इसके बावजूद कांग्रेस अपने लिए ढाई दर्जन लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी उतरना चाहती है. ऐसे में सपा के लिए इतनी सीटें दे पाना बहुत कठिन होगा. सपा के तमाम नेता पिछले पांच साल से तैयारी कर रहे हैं और अचानक उनका टिकट कटा तो भितरघात भी होगी. विधानसभा चुनाव में ऐसे अनुभव ले चुके अखिलेश यादव शायद ही दोबारा आत्मघाती कदम उठाएं. इसलिए वह कांग्रेस को परंपरागत सीटों को छोड़कर सिर्फ कमजोर सीटें ही दे सकते हैं. ऐसे में सपा, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन सीटों का बंटवारा कैसे करता है यह देखना बहुत रोचक होगा.

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Last Updated : Sep 27, 2023, 2:53 PM IST
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