लखनऊ: उत्तर प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी के 98 संगठनात्मक जिलों में केवल चार ही महिला अध्यक्ष बनाई गई हैं. यह हाल तब है, जब भारतीय जनता पार्टी विधायिका में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का बिल लेकर आई है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के जिलों के संगठन में महिलाओं की इतनी कम संख्या सवालिया निशान लगा रही है. काफी बड़ा और सशक्त भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में 98 में से 10% जिलों का भी प्रभार महिलाओं को नहीं दिया गया है. दूसरी और भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि पहले तो यह संख्या चार तक भी नहीं होती थी, अब कम से कम हमारे मोर्चे की चार नेताओं को जिला अध्यक्ष बनने योग्य तो समझा ही गया है.
हाल ही में भारतीय जनता पार्टी ने अपने 98 संगठनात्मक जिलों में नए जिला अध्यक्ष घोषित किए. करीब एक साल पूर्व उत्तर प्रदेश में मनोनीत किए गए प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह की जोड़ी ने लंबे मंथन के बाद जिला अध्यक्ष चुने. जिला अध्यक्षों को मनोनीत करने के दौरान खास बात यह रही कि संसद में महिला आरक्षण पर चर्चा भी उन्हीं दिनों चल रही थी. सरकार विधायिका में 33% आरक्षण ला रही थी. इस बीच में जब जिला अध्यक्ष चुने गए तो उनमें 70 फ़ीसदी के करीब बदलाव किया गया. 98 में से 64 जिलों में अध्यक्ष बदल दिए गए.
पांच प्रतिशत भी महिलाओं को जगह नहीं मिली
बात अगर महिलाओं के अध्यक्ष बनने को लेकर की जाए तो संख्या नाम मात्र की रही. पूरे 5% महिलाओं को भी जगह नहीं दी गई. शिल्पी गुप्ता (शाहजहांपुर शहर), उर्विज़ा दीक्षित (जालौन), मऊ से नूपुर अग्रवाल औऱ प्रयागराज ट्रांस गंगा जिले से कविता पटेल को जिला अध्यक्ष बनाया गया. इंचार्ज के अतिरिक्त बचे हुए 94 जिलों में से एक भी महिला अध्यक्ष नहीं चुनी गई. इससे भारतीय जनता पार्टी के महिला मोर्चा संगठन पर बड़ा सवाल है कि उनकी क्षमता पर नेतृत्व ने पूरी तरह से संदेह किया और कोई अहम जिम्मेदारी जिलों में नहीं दी. भारतीय जनता पार्टी में आमतौर से महिलाओं को महिला मोर्चा तक ही सीमित कर दिया गया है.
चार भी पहली बार बनाई गईं : गीता शाक्य
इस बारे में भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश महिला मोर्चा अध्यक्ष गीता शाक्य ने बताया कि निश्चित तौर पर महिलाओं की क्षमता के आधार पर पार्टी ने चार जिलों में हमारे नेताओं को जिला अध्यक्ष बनाया है. यह भी पहली बार हुआ है और कोई छोटी बात नहीं है. 33% आरक्षण की बात हो तो वह विधायिका के लिए है, जहां लोकसभा, विधानसभा, विधान परिषद और राज्यसभा में आरक्षण होगा. संगठन की व्यवस्था एक अलग विषय है, जिसमें नेताओं की क्षमता के आधार पर उनको ज़िम्मेदारी दी जाती है.
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