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संपत्तियों की जियो टैगिंग कराने से बच रहा एलडीए

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एलडीए के बाबुओं और अधिकारियों ने कई भवनों और भूखंडों की फाइलें दबा रखी हैं. शासन के निर्देश के बाद भी संपत्तियों की जियो टैगिंग नहीं की जा रही है. इसको लेकर आवास विभाग ने नाराजगी जाहिर की है.

लखनऊ विकास प्राधिकरण
लखनऊ विकास प्राधिकरण
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Published : Nov 26, 2020, 1:35 PM IST

लखनऊ: एलडीए की संपत्तियों की जियो टैगिंग होती तो संपत्तियों की बिक्री में होने वाला फर्जीवाड़ा नहीं होता. प्राधिकरण के बाबुओं और अधिकारियों ने जिन भवनों और भूखंडों की फाइलें दबा रखी हैं, वह भी सामने आ जातीं. लेकिन शासन के निर्देश के बाद भी प्राधिकरण ने अपनी संपत्तियों की जियो टैगिंग नहीं कराई है. इस आदेश के एक साल बाद भी व्यवस्था न लागू होने पर आवास विभाग ने नाराजगी व्यक्त की है. एलडीए के अपर सचिव अनिल भटनागर को फटकार लगाई है. अब सचिव पवन गंगवार ने एक बार फिर काम शुरू कराने को कहा है.

प्रदेश के विकास प्राधिकरण संपत्तियों की जियो टैगिंग कराने का आदेश पिछले साल दिया गया था. शासन के प्रमुख सचिव आमोद कुमार ने भवनों, भूखंडों, फ्लैटों तथा प्राधिकरण की अन्य संपत्तियों की जियो टैगिंग कराने के लिए 27 जुलाई को कमिश्नर व एलडीए उपाध्यक्ष को पत्र लिखा था. जियो टैगिंग रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर तथा सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग की मदद से होनी है.

सामने आ जाएगा फर्जीवाड़ा

जियो टैगिंग से एलडीए के एक-एक प्लॉट, मकान तथा फ्लैट का पूरा ब्यौरा सामने आ जाएगा. इससे यह भी पता चलेगा कि कौन सा प्लॉट बिका है और कौन सा नहीं. किस भूखंड पर निर्माण हुआ है और किस पर नहीं. बाबू व अधिकारियों ने प्रॉपर्टी डीलरों के साथ मिलकर जिन संपत्तियों को दबा रखा है वह भी बाहर आ जाएंगी.

आसान नहीं ब्यौरा जुटाना

जानकारी के मुताबिक, एलडीए में प्लॉट आवंटन और व्यवसायिक संपत्तियों से जुड़े सैकड़ों मामले काफी संदिग्ध हैं. कई की तो फाइलें गायब हो चुकी हैं. ऐसे में इन्हें सुधारकर डेटा तैयार करना किसी चुनौती से कम नहीं है.

यह होगा फायदा

  • एलडीए की कॉलोनियों में खाली प्लॉटों की स्थिति पता चलेगी.
  • अवैध निर्माणों के बारे में भी जानकारी मिलेगी.
  • शहर के किस हिस्से में कौन सी सुविधाऐं है और किस चीज की जरूरत है.
  • जमीन के हर खसरे का भूमि उपयोग मालूम होगा.
  • भविष्य में नई योजनाओं के निर्माण व विकास में भी काफी मदद मिलेगी.
  • संपत्तियों के आवंटन की स्थिति भी जान सकेंगे.
  • अवैध गतिविधियों पर नजर रख सकेंगे

जियो टैगिंग के लिए प्राधिकरण के खसरा मानचित्र का जियो रिफरेंस कर मोजैक तैयार किया जाएगा. इसके बाद मास्टर प्लान के साथ इसे सुपरइंपोज करते हुए जियो स्पेशल डाटा बेस तैयार होगा. इसके बाद प्राधिकरण की सीमा की सभी जमीनों का भू उपयोग एक क्लिक में पता किया जा सकेगा. बताया गया कि प्राधिकरण शहर की सभी आवासीय, गैर आवासीय क्षेत्रों को गूगल अर्थ के साथ करके जियो टैंग किया जाना है. इस प्रक्रिया के पूर्ण होने के बाद कार्यालय में बैठकर अधिकारी संबंधित क्षेत्र में हो रही अवैध गतिविधियों पर नजर रख सकेंगे. गूगल अर्थ के साथ कनेक्ट होने के कारण गूगल मैप से 5 गुना तक क्लियर पिक्चर कंप्यूटर पर देखी जा सकती है. क्षेत्र को जियो टैगिंग से कनेक्ट करने के बाद अवैध निर्माणों पर अंकुश लगेगा.

लखनऊ: एलडीए की संपत्तियों की जियो टैगिंग होती तो संपत्तियों की बिक्री में होने वाला फर्जीवाड़ा नहीं होता. प्राधिकरण के बाबुओं और अधिकारियों ने जिन भवनों और भूखंडों की फाइलें दबा रखी हैं, वह भी सामने आ जातीं. लेकिन शासन के निर्देश के बाद भी प्राधिकरण ने अपनी संपत्तियों की जियो टैगिंग नहीं कराई है. इस आदेश के एक साल बाद भी व्यवस्था न लागू होने पर आवास विभाग ने नाराजगी व्यक्त की है. एलडीए के अपर सचिव अनिल भटनागर को फटकार लगाई है. अब सचिव पवन गंगवार ने एक बार फिर काम शुरू कराने को कहा है.

प्रदेश के विकास प्राधिकरण संपत्तियों की जियो टैगिंग कराने का आदेश पिछले साल दिया गया था. शासन के प्रमुख सचिव आमोद कुमार ने भवनों, भूखंडों, फ्लैटों तथा प्राधिकरण की अन्य संपत्तियों की जियो टैगिंग कराने के लिए 27 जुलाई को कमिश्नर व एलडीए उपाध्यक्ष को पत्र लिखा था. जियो टैगिंग रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर तथा सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग की मदद से होनी है.

सामने आ जाएगा फर्जीवाड़ा

जियो टैगिंग से एलडीए के एक-एक प्लॉट, मकान तथा फ्लैट का पूरा ब्यौरा सामने आ जाएगा. इससे यह भी पता चलेगा कि कौन सा प्लॉट बिका है और कौन सा नहीं. किस भूखंड पर निर्माण हुआ है और किस पर नहीं. बाबू व अधिकारियों ने प्रॉपर्टी डीलरों के साथ मिलकर जिन संपत्तियों को दबा रखा है वह भी बाहर आ जाएंगी.

आसान नहीं ब्यौरा जुटाना

जानकारी के मुताबिक, एलडीए में प्लॉट आवंटन और व्यवसायिक संपत्तियों से जुड़े सैकड़ों मामले काफी संदिग्ध हैं. कई की तो फाइलें गायब हो चुकी हैं. ऐसे में इन्हें सुधारकर डेटा तैयार करना किसी चुनौती से कम नहीं है.

यह होगा फायदा

  • एलडीए की कॉलोनियों में खाली प्लॉटों की स्थिति पता चलेगी.
  • अवैध निर्माणों के बारे में भी जानकारी मिलेगी.
  • शहर के किस हिस्से में कौन सी सुविधाऐं है और किस चीज की जरूरत है.
  • जमीन के हर खसरे का भूमि उपयोग मालूम होगा.
  • भविष्य में नई योजनाओं के निर्माण व विकास में भी काफी मदद मिलेगी.
  • संपत्तियों के आवंटन की स्थिति भी जान सकेंगे.
  • अवैध गतिविधियों पर नजर रख सकेंगे

जियो टैगिंग के लिए प्राधिकरण के खसरा मानचित्र का जियो रिफरेंस कर मोजैक तैयार किया जाएगा. इसके बाद मास्टर प्लान के साथ इसे सुपरइंपोज करते हुए जियो स्पेशल डाटा बेस तैयार होगा. इसके बाद प्राधिकरण की सीमा की सभी जमीनों का भू उपयोग एक क्लिक में पता किया जा सकेगा. बताया गया कि प्राधिकरण शहर की सभी आवासीय, गैर आवासीय क्षेत्रों को गूगल अर्थ के साथ करके जियो टैंग किया जाना है. इस प्रक्रिया के पूर्ण होने के बाद कार्यालय में बैठकर अधिकारी संबंधित क्षेत्र में हो रही अवैध गतिविधियों पर नजर रख सकेंगे. गूगल अर्थ के साथ कनेक्ट होने के कारण गूगल मैप से 5 गुना तक क्लियर पिक्चर कंप्यूटर पर देखी जा सकती है. क्षेत्र को जियो टैगिंग से कनेक्ट करने के बाद अवैध निर्माणों पर अंकुश लगेगा.

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