लखनऊः प्रदेश सरकार को गन्ना किसानों के चीनी मिलों पर बकाया लगभग 14 हज़ार करोड़ रुपये का भुगतान तत्काल करना चाहिए. प्रदेश सरकार मौजूदा पेराई सत्र में गन्ना किसानों को 450 रुपये प्रति क्विंंटल की दर से भुगतान करने की भी व्यवस्था करे. प्रदेश की योगी सरकार से उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने यह मांग की है. उन्होंने योगी सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप भी लगाया. पार्टी मुख्यालय से अजय कुमार लल्लू का ने बयान जारी कर यह मांग की है.
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साढ़े तीन साल में भी वादे नहीं हुए पूरे
लल्लू ने योगी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार बनने से पहले भाजपा ने गन्ना किसानों से वादा किया था कि सरकार में आने पर गन्ना किसानों का भुगतान 14 दिनों के अंदर कर देंगे. ऐसा न होने पर गन्ना किसानों को ब्याज सहित उनकी बकाया रकम देने का भी वादा किया था. आज साढ़े तीन साल बीत जाने के बाद भी यह वादा पूरा नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि राज्य की भाजपा सरकार गन्ना किसानों की अनदेखी कर रही है. इससे उनकी आर्थिक स्थित अत्यंत खराब होती जा रही है.
सरकार की नीतियां किसान विरोधी
चीनी मिल मालिकों ने पिछले पेराई सत्र में किसानों की तौल पर्चियों में वजन अंकित नही किया और न ही समय पर भुगतान किया. इससे किसान चालू पेराई सत्र में चिंतित है. पहले के 14 हजार करोड़ रुपये का भुगतान न होने से वे ठगा महसूस कर रहे है. राज्य सरकार जिस तरह से गन्ना किसानों के साथ व्यवहार कर रही है, उससे स्प्ष्ट है कि भाजपा की नीतियां गन्ना किसान विरोधी हैं. वर्तमान पेराई सत्र में गन्ना किसानों को 450 प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए. कांग्रेस गन्ना किसानों को 450 प्रति क्विंटल न्यनतम समर्थन मूल्य देने और बकाया लगभग 14 हजार करोड़ रुपये के तत्काल भुगतान की मांग करती है.
साहूकारों के जाल में फंस रहा गन्ना किसान
प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि कोरोना काल की आर्थिक मुश्किलें और खराब मौसम, ओलावृष्टि के चलते पहले से ही गन्ना किसानों की कमर टूट चुकी है. ऐसे में भुगतान न होने से गन्ना किसान लगभग भुखमरी की कगार पर पहुंच चुका है. वह बच्चों की पढ़ाई के खर्च, बहन-बेटियों के हाथ पीले करने और रोजमर्रा के घरेलू खर्च के लिए साहूकारों के कर्ज के जाल में फंसता जा रहा है.
गन्ने से बन रहे बहुत से उत्पाद
प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू का कहना है कि गन्ने से उत्पन्न शीरा से सरकार एथनॉल बना रहा है. इसका वाणिज्यिक इस्तेमाल होता है. इसी एथनॉल से आजकल सेनेटाइजर भी बनाया जा रहा है, जो बड़ी कीमत पर बाजार में बिक रहा है. ऐसे में गन्ना किसानों को भी गन्ने के बाईप्रोडक्ट्स से होने वाले लाभ के अनुपात में ही उसकी फसल का मूल्य मिलना चाहिए.