लखनऊ: राजधानी का कैंसर संस्थान मरीजों की अपेक्षाओं पर खरा साबित नहीं हो पा रहा है. पांच साल बाद भी यहां डॉक्टर-स्टाफ का संकट है. साथ ही संसाधनों का भी अभाव है. ऐसे में 500 बेड के अस्पतालों में सिर्फ 40 बेड पर ही इलाज की सुविधा है.
कैंसर संस्थान की क्षमता 1250 बेड की है. वहीं पहले चरण में 500 बेड शुरू करने का एलान किया गया. वर्ष 2016 से लेकर अब तक दो बार ओपीडी का उद्घाटन हो चुका है. पहले चरण में 500 बेड का हॉस्पिटल ब्लॉक शुरू करने का दावा किया गया. मगर अभी तक दावे हवा साबित हो रहे हैं. स्थिति यह है कि संस्थान में सिर्फ 200 बेड ही जुटाए जा सके हैं. इसमें भी सिर्फ 40 बेड पर मरीजों के भर्ती की व्यवस्था है.
संस्थान में भवन निर्माण के लिए सरकार ने 834 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया था. राजकीय निर्माण निगम को भवन बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई. हॉस्पिटल ब्लॉक का काम पूरा हो चुका है. इसमें 200 बेड पर ऑक्सीजन पाइपलाइन बिछाने का काम पूरा हो चुका है. यानी कि इन बेडों पर गंभीर मरीजों का इलाज भी मुमकिन है. मगर करोड़ों के बेड डंप हैं. ऐसे ही उपकरणों की खरीद के लिए 200 करोड़ रुपये से ज्यादा का बजट जारी किया. अभी तक संस्थान में दो लीनैक, एक सीटी स्कैन, चार एक्सरे मशीनें करीब 40 वेंटिलेटर समेत अन्य उपकरणों की खरीद-फरोख्त की जा चुकी है. मगर, मरीज भटकने को मजबूर हैं.
संस्थान के संचालन में डॉक्टर-कर्मचारियों की कमी सबसे बड़ी समस्या है. यहां 56 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं. इसमें 25 डॉक्टर ही तैनात हैं. वहीं सीनियर रेजिडेंट के 69 पद हैं. इसमें सिर्फ 20 डॉक्टर ही भर्ती हैं. यही हाल जूनियर रेजिडेंट का है. 63 में सिर्फ 11 जूनियर रेजिडेंट के भरोसे संस्थान चल रहा है. 217 कर्मचारियों के पद स्वीकृत हैं. इसमें भी 50 फीसद पद खाली हैं.
शासन ने निदेशक डॉ. शालीन कुमार को हटा दिया है. उन पर खरीद-फरोख्त में भ्रष्टाचार के आरोप हैं. ऐसे में पीजीआई के निदेशक डॉक्टर आरके धीमान को चार्ज सौंपा गया है. डॉ. धीमान के मुताबिक अभी जल्द में कार्यभार संभाला है. संस्थान में मरीजों के इलाज की जल्दी व्यवस्था दुरुस्त की जाएगी.
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