लखनऊः जिले का कोटवा मॉडल गांव गोभी की खेती करने के लिए जाना जाता है. सर्दियों में गोभी की खेती करने से किसानों का अधिक फायदा होता है. मटर के बाद यह एक प्रमुख नकदी फसल है. कम समय में यह तैयार हो जाती है. खरीफ में उगाई गई सब्जियां 15 अक्टूबर तक समाप्त होने लगती हैं और 15 अक्टूबर के बाद अगेती गोभी की फसल तैयार होने लगती है. जिससे किसानों को अधिक मुनाफा होता है.
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कोटवा गांव में रहने वाले किसान रामकिशोर मौर्य ने बताया कि कोटवा गांव में ज्यादातर किसान गोभी की खेती करते हैं. फूलगोभी की खेती पूरे वर्ष में की जाती है. उन्होंने बताया कि 1 एकड़ में लगभग 30,000 रुपये का पूरा खर्च आता है. 1 एकड़ में 40,000 के आसपास पौधे की रोपाई हो जाती है. भाव अगर ठीक-ठाक मिल जाता है तो खर्च निकाल कर एक लाख से 1,20,000 की आमदनी हो जाती है. इस तरह से गांव के लगभग 90% किसान गोभी की खेती कर रहे हैं. हालांकि गोभी की खेती में कीटों के लगने की समस्या बहुत अधिक है. जिसके चलते कहीं न कहीं किसान काफी परेशान हैं.
कीट पहचान एवं प्रबंधन
कीट विज्ञान विभाग एवं कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि मौसम के बदलाव एवं तापक्रम के उतार-चढ़ाव से गोभी की फसल पर सफेद तितली अधिक नुकसान पहुंचाती है. मादा तितली का रंग सफेद होता है तथा पंखों के किनारे काले रंग होते हैं. इसका लारवा पीले, हरे रंग का होता है. लारवा के शरीर के ऊपर गहरे हरे रंग के बैंड बने होते हैं. लारवा पत्तियों को 15 से 20 दिन तक चाव से खाते हैं. इनका अधिक प्रकोप होने से पूरी फसल चौपट हो जाती है. उन्होंने यह लारवा अक्टूबर से नवंबर तक अधिक नुकसान करते हैं. इनके प्यूपा जमीन में बनते हैं. वयस्क कोई नुकसान नहीं करते हैं. तितली अपना पूरा जीवन चक्र 35 दिन में पूरा कर लेती है. किसान भाई इनको आसानी से पहचान सकते हैं.
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डॉक्टर सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि किसान भाई गोभी की फसल को इस कीट से बचाने के लिए खेत के चारों तरफ 3 फीट की चौड़ाई में धनिया की बुवाई करनी चाहिए. जिन पत्तियों पर मादा कीट द्वारा अंडे दिए गए हैं, उनको सावधानी से काट कर नष्ट कर देना चाहिए. गोभी के साथ गाजर की फसल की बुवाई करनी चाहिए. कीट के प्रबंधन के लिए नीम के तेल का छिड़काव बहुत लाभकारी होता है. 2ml नीम तेल को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से इस कीट से बचा जा सकता है.
कीट प्रबंधन गोभी फसल के लिए अधिक लाभकारी
बाजार में कई प्रकार के जैविक कीटनाशक उपलब्ध हैं. उनका प्रयोग करके भी इस फसल पर लगने वाले कीट से बचाव किया जा सकता है. इसके लिए लुफेनुरन 5.4 इसी की 1ml को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर शाम के समय छिड़काव करने से यह कीट अच्छी तरह से प्रबंधित हो जाता है. इस कीट के प्रबंधन हेतु आईपीएम मॉडल बनाकर प्रबंधित करने से किसानों को अधिक लाभ होता है. इसके लिए फेनबेलरेट 20 ईसी की 1.5 एमएल मात्रा तथा 2ml नीम का तेल एवं उसमें 250 एलएल गाय का मूत्र मिला लें और इन तीनों को अच्छी प्रकार से मिश्रित करके 1 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर शाम के समय छिड़काव करने से इस कीट का प्रबंधन हो जाता है. अधिक धूप हो रही है तो गोभी की फसल में कभी भी सिंचाई न करें. यह ध्यान रहे कि गोभी वर्गीय फसलों में कभी भी अधिक जहरीले कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए. अधिक जहरीले कीट नाशक स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं.
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कीट विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि कोटवा की जमीन में मित्र कीट केंचुआ बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है. जिससे जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन बहुत हैं. बहुत ही उपजाऊ भूमि सदैव बनी रहती है. इसलिए वर्ष भर किसान वहां पर गोभी की खेती करता है. वहां के जानकार लोगों ने बताया कि आज के लगभग कई 100 साल पहले यहां पर नवाब लोग रहते थे. इसलिए यहां की मिट्टी में ईट और पत्थर के टुकड़े बहुत हैं, जिस कारण बहुत मेहनत से खेती करनी होती है. यहां पर गोभी की खेती चमत्कार रूप में होती है. यहां पर हर वर्ष 100 बीघे से अधिक खेती किसान करते हैं. एक फसल खत्म हो जाने के बाद दूसरी गोभी की फसल की तैयारी शुरू हो जाती है.