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जानिए भाजपा क्यों नहीं दे पा रही प्रदेश संगठन को नया अध्यक्ष?

उत्तर प्रदेश सरकार के गठन को ढाई माह से ज्यादा का समय बीत चुका है. इसके बावजूद अभी तक भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा हो पाई है. इस स्पेशल रिपोर्ट में जानिए भाजपा क्यों नहीं दे पा रही प्रदेश संगठन को नया अध्यक्ष?

भाजपा.
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Published : Jun 16, 2022, 10:46 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार के गठन को ढाई माह से ज्यादा का समय बीत चुका है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह अब सरकार में कैबिनेट मंत्री है. 'एक व्यक्ति एक पद' के सिद्धांत के तहत स्वतंत्रदेव सिंह को अब पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ देना चाहिए. वैसे भी वह अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. काफी दिनों से चल रहे मंथन के बावजूद पार्टी अब तक नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन नहीं कर सकी है. इसके पीछे का प्रमुख कारण है कि नया अध्यक्ष किस दल का हो, इस बात को लेकर दुविधा. जो भी नया अध्यक्ष चुना जाएगा 2024 के लोकसभा चुनाव उसी के नेतृत्व में होंगे. यही कारण है कि शीर्ष नेतृत्व को निर्णय लेने में देर लग रही है.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री.
प्रदेश में दोबारा बहुमत की सरकार बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की नजर लोकसभा चुनावों पर है. आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर भाजपा और संघ कोई भी कसर छोड़ना नहीं चाहते. नेतृत्व चाहता है कि उत्तर प्रदेश आगामी लोकसभा चुनावों में भी इतनी सीटें दे दे कि अन्य राज्यों पर निर्भरता थोड़ी कम हो सके. प्रदेश में लोक सभा की कुल 80 सीटें हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहा था. तब भाजपा को 62 और सहयोगी दल जनता दल (एस) को 2 सीटें मिली थीं.
वहीं, सपा, बसपा और रालोद गठबंधन को सिर्फ पंद्रह सीटों पर संतोष करना पड़ा था. इस चुनाव में सबसे बुरी स्थिति कांग्रेस की हुई थी. कांग्रेस पार्टी सिर्फ सोनिया गांधी की रायबरेली सीट जीत पाई थी. कांग्रेस की परंपरागत सीट अमेठी भी भाजपा की ही झोली में आई थी. यहां से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को पराजित किया था. भारतीय जनता पार्टी आगामी चुनावों में इससे भी बड़ी जीत चाहती है. पार्टी के कई बड़े नेता इस बार सत्तर प्लस का नारा दे रहे हैं. स्वाभाविक है कि जब लक्ष्य बड़ा होता है, तो उसके लिए प्रयास भी बड़े करने होते हैं. इसलिए भाजपा अपनी तैयारी में कोई कमी करना नहीं चाहती.
प्रदेश सरकार में मंत्रिपरिषद में चेहरों के चयन से लेकर राज्यसभा की 11 सीटों और विधान परिषद की 13 सीटों तक सभी में जातीय समीकरणों का विशेष ध्यान रखा गया है. इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को दलित समाज से भरपूर वोट मिला है और पहली बार बसपा का मत प्रतिशत खिसक कर नीचे आया है. भाजपा इसी वोट बैंक को ध्यान में रखकर कोई निर्णय करना चाहती है, लेकिन कोई मत अभी तक बना नहीं सकी है. दूसरी ओर पार्टी के कुछ बड़े नेता किसी ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की सलाह दे रहे हैं. हालांकि किसी दलित चेहरे को अध्यक्ष बनाने का पक्ष ज्यादा मजबूत है. प्रदेश में अब तक कोई भी दलित चेहरा भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नहीं रहा है. इसलिए भी कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी दलित चेहरे को ही तरजीह देगी. इसी ऊहापोह में निर्णय नहीं हो पा रहा है कि अध्यक्ष कौन हो.

इसे भी पढ़ें-यूपी प्रदेश अध्यक्ष के लिए दलित चेहरे पर दांव लगा सकती है भाजपा, रेस में ये नाम



राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि 'इस काम में निश्चित ही विलंब हो रहा है. सौ दिन की जो अवधि बीत रही है, उसमें सरकार ने तो अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया, लेकिन संगठन के स्तर पर जिस तरह का स्थायित्व होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. वर्तमान अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह जी को तो मंत्रालय मिला है, वह बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसे में वह संगठन को पर्याप्त समय नहीं दे सकेंगे. भावी लोक सभा चुनावों के लिए संगठन और सरकार के स्तर पर एक अच्छे सामंजस्य के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है. इसलिए यह निर्णय पहले हो जाना चाहिए था.'

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार के गठन को ढाई माह से ज्यादा का समय बीत चुका है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह अब सरकार में कैबिनेट मंत्री है. 'एक व्यक्ति एक पद' के सिद्धांत के तहत स्वतंत्रदेव सिंह को अब पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ देना चाहिए. वैसे भी वह अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. काफी दिनों से चल रहे मंथन के बावजूद पार्टी अब तक नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन नहीं कर सकी है. इसके पीछे का प्रमुख कारण है कि नया अध्यक्ष किस दल का हो, इस बात को लेकर दुविधा. जो भी नया अध्यक्ष चुना जाएगा 2024 के लोकसभा चुनाव उसी के नेतृत्व में होंगे. यही कारण है कि शीर्ष नेतृत्व को निर्णय लेने में देर लग रही है.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री.
प्रदेश में दोबारा बहुमत की सरकार बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की नजर लोकसभा चुनावों पर है. आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर भाजपा और संघ कोई भी कसर छोड़ना नहीं चाहते. नेतृत्व चाहता है कि उत्तर प्रदेश आगामी लोकसभा चुनावों में भी इतनी सीटें दे दे कि अन्य राज्यों पर निर्भरता थोड़ी कम हो सके. प्रदेश में लोक सभा की कुल 80 सीटें हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहा था. तब भाजपा को 62 और सहयोगी दल जनता दल (एस) को 2 सीटें मिली थीं.
वहीं, सपा, बसपा और रालोद गठबंधन को सिर्फ पंद्रह सीटों पर संतोष करना पड़ा था. इस चुनाव में सबसे बुरी स्थिति कांग्रेस की हुई थी. कांग्रेस पार्टी सिर्फ सोनिया गांधी की रायबरेली सीट जीत पाई थी. कांग्रेस की परंपरागत सीट अमेठी भी भाजपा की ही झोली में आई थी. यहां से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को पराजित किया था. भारतीय जनता पार्टी आगामी चुनावों में इससे भी बड़ी जीत चाहती है. पार्टी के कई बड़े नेता इस बार सत्तर प्लस का नारा दे रहे हैं. स्वाभाविक है कि जब लक्ष्य बड़ा होता है, तो उसके लिए प्रयास भी बड़े करने होते हैं. इसलिए भाजपा अपनी तैयारी में कोई कमी करना नहीं चाहती.
प्रदेश सरकार में मंत्रिपरिषद में चेहरों के चयन से लेकर राज्यसभा की 11 सीटों और विधान परिषद की 13 सीटों तक सभी में जातीय समीकरणों का विशेष ध्यान रखा गया है. इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को दलित समाज से भरपूर वोट मिला है और पहली बार बसपा का मत प्रतिशत खिसक कर नीचे आया है. भाजपा इसी वोट बैंक को ध्यान में रखकर कोई निर्णय करना चाहती है, लेकिन कोई मत अभी तक बना नहीं सकी है. दूसरी ओर पार्टी के कुछ बड़े नेता किसी ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की सलाह दे रहे हैं. हालांकि किसी दलित चेहरे को अध्यक्ष बनाने का पक्ष ज्यादा मजबूत है. प्रदेश में अब तक कोई भी दलित चेहरा भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नहीं रहा है. इसलिए भी कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी दलित चेहरे को ही तरजीह देगी. इसी ऊहापोह में निर्णय नहीं हो पा रहा है कि अध्यक्ष कौन हो.

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राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि 'इस काम में निश्चित ही विलंब हो रहा है. सौ दिन की जो अवधि बीत रही है, उसमें सरकार ने तो अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया, लेकिन संगठन के स्तर पर जिस तरह का स्थायित्व होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. वर्तमान अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह जी को तो मंत्रालय मिला है, वह बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसे में वह संगठन को पर्याप्त समय नहीं दे सकेंगे. भावी लोक सभा चुनावों के लिए संगठन और सरकार के स्तर पर एक अच्छे सामंजस्य के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है. इसलिए यह निर्णय पहले हो जाना चाहिए था.'

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