वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में बुधवार को एकादशी का पर्व बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया. आज के दिन को देवोत्थानी एकादशी भी कहते हैं, क्योंकि श्रीहरि आज ही के दिन अपनी निद्रा से जागते हैं. बनारस के सभी घाटों पर व्रती महिलाओं ने मां गंगा में स्नान करने के बाद पूरे विधि विधान से तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया.
यह है मान्यता
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह किया जाता है. इसे देवोत्थानी एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन माता तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ किया जाता है. माना जाता है कि जो भी व्यक्ति तुलसी का विवाह शालिग्राम से करता है. उसे उतना ही पुन्य प्राप्त होता है. जितना कन्यादान से मिलता है. शालिग्राम विष्णु जी के अवतार हैं.
देवोत्थानी एकादशी पर बांटे तुलसी के पौधे
वाराणसी में नमामि गंगे सदस्यों ने देवोत्थानी एकादशी पर भगवती तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह व आरती कर कोरोना से मुक्ति की कामना की. पंचगंगा घाट पर बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं ने तुलसी के पौधे लेकर पुण्यलाभ लिया. पर्यावरण संरक्षण एवं गंगा स्वच्छता हेतु सभी संकल्पित हुए. सदस्यों ने गंगा तट पर श्रद्धालुओं द्वारा की गई गंदगी को एकत्र कर स्वच्छता हेतु जागरूक किया तथा लोगों को गंदगी न करने के लिए प्रेरित किया.
कोरोना मुक्ति की कामना से की गई शालिग्राम और तुलसी जी की आरती
इस दौरान श्री हरि भगवान विष्णु का तुलसी से विवाह संपन्न कराकर आरती की गई. नमामि गंगे के संयोजक राजेश शुक्ला ने कहा कि देवोत्थानी एकादशी का पर्व हमें धर्म के साथ कर्म का अवसर प्रदान करता है. भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागने का यह पर्व एक प्रकार से अपने कर्तव्यों व दायित्वों के प्रति जागने और जगाने का पर्व है.
प्रयागराज में शालिग्राम और तुलसी विवाह हुआ संपन्न
प्रयागराज के बलुवा घाट में देवोत्थानी एकादशी का आयोजन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं ने पहले तो आस्था की डुबकी लगाई. उसके बाद शालिग्राम और तुलसी विवाह को संपन्न कराया. इस दौरान महिलाओं ने जिस तरह एक परिवार बेटी का विवाह करता है उसी सारी परंपराओं को इस विवाह में शामिल करते हुए विवाह को संपन्न कराया. ऐसी मान्यता है कि इस दिन 4 महीने बाद भगवान विष्णु शयन कक्ष से बाहर आते हैं. तब कार्यों का शुभ मुहूर्त भी शुरू हो जाता है.
प्रयागराज के बलुवा घाट में सुबह से ही लोगों ने आस्था की डुबकी के साथ तुलसी विवाह किया. इस दिन सायं काल में देव दीपावली का भी आयोजन किया जाता है. जिसमें लाखों दिए घाटों पर जलाए जाते हैं. जिससे लगता है कि आकाश धरती पर उतर आया हो.