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शरद पूर्णिमा की रात अमृत बरसने की है मान्यता, जानिए इस दिन खीर बनाने का महत्व

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Published : Oct 31, 2020, 4:32 AM IST

मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान श्री कृष्ण ने कदंब के वृक्ष के नीचे यमुना तीरे गोपियों संग महारास रचाया था. यह भी माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की चांदनी से अमृत छिटकता है.

शरद पूर्णिमा 2020 की मान्यता.
शरद पूर्णिमा 2020 की मान्यता.

लखनऊ: शरद पूर्णिमा का त्यौहार शुक्रवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. यह त्यौहार अशिवन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस तिथि में चन्द्रमा अपनी पूर्णकालाओं के साथ आलोकित होता है. इस तिथि में पूरा आकाश और धरती चंद्रमा के प्रकाश से प्रकाशित हो जाता है. चंद्रमा की बिखरती चांदनी में वातावरण मनोरम लगने लगता है, मन खुश हो उठता है.

शरद पूर्णिमा पर क्यों बनाते हैं खीर
मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान श्री कृष्ण ने कदंब के वृक्ष के नीचे यमुना तीरे गोपियों संग महारास रचाया था. यह भी माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की चांदनी से अमृत छिटकता है. इस दिन सुबह अपने आराध्य को सुंदर आभूषणों से सजाकर षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए. लोग इस अवसर पर गाय के दूध और चावल की खीर बनाकर रात को चांदनी में रखते हैं और दूसरे दिन गृहण करते है. मान्यता है कि इस खीर को गृहण करने से आरोग्यता आती है.

मां लक्ष्मी की करते हैं पूजा
इस दिन रात को सुई में धागा डालने की भी परंपरा है. वृंदावन और गोकुल में इसको बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस उत्सव को कौमुदी महोत्सव भी कहा जाता है. बंगाली परिवारों में इस दिन कोजागर पूजा होती है. इस पूजा में वे लोग माता लक्ष्मी की पूजा करते है. मान्यता है कि इस तिथि को माता यह देखने के लिए रात्रि में घूमती है कि कौन जागरण कर रहा है, जो जाग रहा होता है उसे धन देती हैं. माता के को जागर्ति कहने के कारण ही इस पूजन का नाम कोजागर पड़ा.

लखनऊ: शरद पूर्णिमा का त्यौहार शुक्रवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. यह त्यौहार अशिवन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस तिथि में चन्द्रमा अपनी पूर्णकालाओं के साथ आलोकित होता है. इस तिथि में पूरा आकाश और धरती चंद्रमा के प्रकाश से प्रकाशित हो जाता है. चंद्रमा की बिखरती चांदनी में वातावरण मनोरम लगने लगता है, मन खुश हो उठता है.

शरद पूर्णिमा पर क्यों बनाते हैं खीर
मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान श्री कृष्ण ने कदंब के वृक्ष के नीचे यमुना तीरे गोपियों संग महारास रचाया था. यह भी माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की चांदनी से अमृत छिटकता है. इस दिन सुबह अपने आराध्य को सुंदर आभूषणों से सजाकर षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए. लोग इस अवसर पर गाय के दूध और चावल की खीर बनाकर रात को चांदनी में रखते हैं और दूसरे दिन गृहण करते है. मान्यता है कि इस खीर को गृहण करने से आरोग्यता आती है.

मां लक्ष्मी की करते हैं पूजा
इस दिन रात को सुई में धागा डालने की भी परंपरा है. वृंदावन और गोकुल में इसको बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस उत्सव को कौमुदी महोत्सव भी कहा जाता है. बंगाली परिवारों में इस दिन कोजागर पूजा होती है. इस पूजा में वे लोग माता लक्ष्मी की पूजा करते है. मान्यता है कि इस तिथि को माता यह देखने के लिए रात्रि में घूमती है कि कौन जागरण कर रहा है, जो जाग रहा होता है उसे धन देती हैं. माता के को जागर्ति कहने के कारण ही इस पूजन का नाम कोजागर पड़ा.

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