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जानें उग्र प्रदर्शन रोकने के लिए कौन सी चीज़ें हैं बेहद ज़रूरी और क्यों इंतज़ाम हो जाते हैं फेल

ईटीवी भारत आपको बताने जा रहा है कि कैसे इंटेलिजेंस इनपुट मिलने के बाद हिंसा न हो, इसके लिए पुलिस क्या कदम उठाती है. सारी योजनाएं क्यों फेल हो जाती हैं.

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Published : Jun 16, 2022, 7:10 AM IST

Updated : Jun 16, 2022, 8:18 AM IST

लखनऊ: बीते दिनों 3 और 10 जून को जुमे की नमाज के बाद उपद्रवियों ने योजनाबद्ध तरीके से पत्थरबाजी कर हिंसा फैलाई. सामने आया कि इंटेलिजेंस इनपुट होने के बाद भी पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया लिहाजा साजिशकर्ता हिंसा करने में कामयाब रहे. अब एक बार फिर 17 जून को कुछ मौलानाओं ने भीड़ को बुलाया है. लेकिन इस बार पुलिस सतर्क है. आइए हम जानते है कि कैसे पुलिस इंटेलिजेंस इनपुट मिलने के बाद हिंसा न हो इसके लिए कदम उठाती है.


धर्मगुरुओं से बातचीत: उत्तर प्रदेश में ज्यादातर हिंसा धर्म को लेकर ही होती है. ऐसे में इसमें धर्मगुरुओं की भूमिका बढ़ जाती है. इसे लेकर पुलिस को जब यह इनपुट मिलता है कि हिंसा हो सकती है, तो थाना स्तर पर धर्मगुरुओं से पुलिस बातचीत करती है. यही नहीं शहर के बढ़े धर्मगुरुओं से खुद जिले के पुलिस कप्तान मिलकर उनसे यह अपील करते है कि वो अपने धर्म के लोगों को शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए समझाए ताकि किसी भी प्रकार की हिंसा हो.


इंटेलिजेंस सूचना: पुराने लखनऊ में तैनात पुलिस अधिकारी बताते है कि किसी भी हिंसा को रोकने या फिर कहे हिंसा होने ही न देने के पीछे इंटेलिजेंस यूनिट की अहम भूमिका होती है. फिर चाहे स्पेशल इंटेलिजेंस हो या फिर लोकल इंटेलिजेंस यूनिट. ये यूनिट अपने संसाधनों से इनपुट लेकर स्थानीय पुलिस स्टेशन या फिर पुलिस के उच्च अधिकारियों को देते है. इसके बाद पुलिस इंटेलिजेंस रिपोर्ट के अनुसार अपनी प्लानिंग का किर्यानवन करती है. यह रिपोर्ट समाजिक संगठनों, पत्रकारों, धरना स्थलों पर मौजूद रहने वाले प्रदर्शनकारियों से जानकारी लेकर इकट्ठा की जाती है.

किसी भी शहर में कोई उग्र प्रदर्शन या फिर हिंसा न हो इसके लिए महत्वपूर्ण है कि उन संधिदगों या पूर्व में किसी भी उग्र प्रदर्शन में शामिल होने वाले एक्टविस्ट पर नजर रखना, जो भीड़ को भड़का कर उनका फायदा उठा सकते हो. स्थानीय पुलिस प्रदर्शन की तारीख से एक दिन पहले ऐसे लोगों पर नजर रखती है व जरूरत पड़ने पर उन्हें हाउस अरेस्ट भी कर लेती है. जिससे वो किसी भी होने वाले हिंसक प्रदर्शन में शामिल न हो सकें.


संवेदनशील इलाकों में फ्लैग मार्च: पुलिस अधिकारी के मुताबिक, किसी निश्चित तारीख पर होने वाले ऐसे प्रदर्शन, जिसमें हिंसा हो सकती है उसे ध्यान में रखते हुए स्थानीय पुलिस संवेदनशील इलाकों में फ्लैग मार्च करती है. इसका मकसद आम लोगों में भय को दूर करने के साथ उपद्रवियों को संदेश देना होता है कि यदि उपद्रव करने की मंशा भी रखें हों, तो उसे जहन से निकाल दें, क्योंकि पुलिस मैदान में है और कानून व्यवस्था को किसी भी हाल में बिगड़ने नहीं देना है.


पीस कमेटी की बैठक: पुलिस मुख्यालय समय-समय पर सभी जिलों की पुलिस को निर्देश देता है कि थाना स्तर पर पीस कमेटी की बैठक की जाए. यही नहीं जब भी प्रदर्शन होने की सूचना मिलती है, तो पुलिस व जिला प्रशासन के अधिकाफी शांतिप्रिय लोगों के साथ बैठक करते है. इनमें धार्मिक गुरु, विभिन्न संगठन के लोग व ऐसे व्यक्ति शामिल होते है, जिनका समाज के बीच महत्व होता है.


क्यों फेल होती है सभी योजनाएं: ऐसा नहीं है कि ये सभी प्रक्रियाओं को बीते दिनों यूपी के उन जिलों में नहीं अपनाई गई थी. उसके बावजूद कांलूर, प्रयागराज, सहारनपुर समेत कई शहरों में हिंसा भड़क गई थी. पुलिस ने इंटेलिजेंस की रिपोर्ट मिलने पर धर्म गुरुओं से बातचीत की थी, पीस कमेटी की बैठक की व पर्याप्त मात्रा में केन्द्रीय व राज्य की फोर्स तैनात की गई थी. इसके पीछे का कारण बताते हुए रिटायर्ड डिप्टी एसपी श्याम शुक्ला बताते है कि मौजूदा समय तैनात अधिकतर थाना प्रभारी अपने क्षेत्र में भ्रमणशील नहीं रहते हैं. इससे उनके क्षेत्र में क्या हलचल चल रही है, इसकी जानकारी उन्हें समय पर नहीं मिल पाती है. वो कहते है कि साल भर थाना प्रभारी अपने ऐसी कमरों से बैठ कर थाना चलाते है और इंटेलिजेंस की रिपोर्ट आने पर एकदम से सक्रीय होते हैं, तो कैसे ऐसी घटनाएं रुकेंगी.
ये भी पढ़ें- भाजपा नेता अपर्णा यादव को मिली जान से मारने की धमकी, इस नंबर से आई थी कॉल


वर्तमान में पुलिस मुख्यालय में तैनात अधिकारी बताते है कि बीते दिनों उग्र प्रदर्शन होने की जानकारी समय पर मिली. फील्ड में तैनात पुलिस अधिकारियों ने धर्मगुरुओं से कई दौर की चर्चा भी की थी, लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने धोखा दिया और हिंसा हो गयी. वो कहते है कि कानपुर व प्रयागराज में उपद्रव हुआ. संगठनों व धर्म गुरुओं के धोखे की वजह से लेकिन उसे बड़ी हिंसा न होने देना यह पहले से की गई तैयारियों का परिणाम है.

ये उपाय हैं ज़रूरी: पुलिस मुख्यालय तैनात पुलिस अधिकारी कहते है कि यदि ऐसी घटनाएं रोकनी है, तो इन तैयारीयों के साथ-साथ कुछ अन्य उपाय भी करने होंगे. पीस कमेटी और धर्म गुरुओं से बातचीत करने के साथ ही उनसे शपथ पत्र व बांड लिखवाना पड़ेगा. ताकि उनके उनके इलाकों में हिंसा होने की स्थिति में उनसे जुर्माना वसूला जा सके. यही नहीं जो संगठन खास तौर पर ऐसे उग्र प्रदर्शनों में सक्रिय भूमिका निभाते आ रहा हो हिंसा या उग्र प्रदर्शन होने पर उन्हें तत्काल गिरफ्तार किया जाए. इससे कहीं हद तक कानून का डर बना रहेगा.

लखनऊ: बीते दिनों 3 और 10 जून को जुमे की नमाज के बाद उपद्रवियों ने योजनाबद्ध तरीके से पत्थरबाजी कर हिंसा फैलाई. सामने आया कि इंटेलिजेंस इनपुट होने के बाद भी पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया लिहाजा साजिशकर्ता हिंसा करने में कामयाब रहे. अब एक बार फिर 17 जून को कुछ मौलानाओं ने भीड़ को बुलाया है. लेकिन इस बार पुलिस सतर्क है. आइए हम जानते है कि कैसे पुलिस इंटेलिजेंस इनपुट मिलने के बाद हिंसा न हो इसके लिए कदम उठाती है.


धर्मगुरुओं से बातचीत: उत्तर प्रदेश में ज्यादातर हिंसा धर्म को लेकर ही होती है. ऐसे में इसमें धर्मगुरुओं की भूमिका बढ़ जाती है. इसे लेकर पुलिस को जब यह इनपुट मिलता है कि हिंसा हो सकती है, तो थाना स्तर पर धर्मगुरुओं से पुलिस बातचीत करती है. यही नहीं शहर के बढ़े धर्मगुरुओं से खुद जिले के पुलिस कप्तान मिलकर उनसे यह अपील करते है कि वो अपने धर्म के लोगों को शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए समझाए ताकि किसी भी प्रकार की हिंसा हो.


इंटेलिजेंस सूचना: पुराने लखनऊ में तैनात पुलिस अधिकारी बताते है कि किसी भी हिंसा को रोकने या फिर कहे हिंसा होने ही न देने के पीछे इंटेलिजेंस यूनिट की अहम भूमिका होती है. फिर चाहे स्पेशल इंटेलिजेंस हो या फिर लोकल इंटेलिजेंस यूनिट. ये यूनिट अपने संसाधनों से इनपुट लेकर स्थानीय पुलिस स्टेशन या फिर पुलिस के उच्च अधिकारियों को देते है. इसके बाद पुलिस इंटेलिजेंस रिपोर्ट के अनुसार अपनी प्लानिंग का किर्यानवन करती है. यह रिपोर्ट समाजिक संगठनों, पत्रकारों, धरना स्थलों पर मौजूद रहने वाले प्रदर्शनकारियों से जानकारी लेकर इकट्ठा की जाती है.

किसी भी शहर में कोई उग्र प्रदर्शन या फिर हिंसा न हो इसके लिए महत्वपूर्ण है कि उन संधिदगों या पूर्व में किसी भी उग्र प्रदर्शन में शामिल होने वाले एक्टविस्ट पर नजर रखना, जो भीड़ को भड़का कर उनका फायदा उठा सकते हो. स्थानीय पुलिस प्रदर्शन की तारीख से एक दिन पहले ऐसे लोगों पर नजर रखती है व जरूरत पड़ने पर उन्हें हाउस अरेस्ट भी कर लेती है. जिससे वो किसी भी होने वाले हिंसक प्रदर्शन में शामिल न हो सकें.


संवेदनशील इलाकों में फ्लैग मार्च: पुलिस अधिकारी के मुताबिक, किसी निश्चित तारीख पर होने वाले ऐसे प्रदर्शन, जिसमें हिंसा हो सकती है उसे ध्यान में रखते हुए स्थानीय पुलिस संवेदनशील इलाकों में फ्लैग मार्च करती है. इसका मकसद आम लोगों में भय को दूर करने के साथ उपद्रवियों को संदेश देना होता है कि यदि उपद्रव करने की मंशा भी रखें हों, तो उसे जहन से निकाल दें, क्योंकि पुलिस मैदान में है और कानून व्यवस्था को किसी भी हाल में बिगड़ने नहीं देना है.


पीस कमेटी की बैठक: पुलिस मुख्यालय समय-समय पर सभी जिलों की पुलिस को निर्देश देता है कि थाना स्तर पर पीस कमेटी की बैठक की जाए. यही नहीं जब भी प्रदर्शन होने की सूचना मिलती है, तो पुलिस व जिला प्रशासन के अधिकाफी शांतिप्रिय लोगों के साथ बैठक करते है. इनमें धार्मिक गुरु, विभिन्न संगठन के लोग व ऐसे व्यक्ति शामिल होते है, जिनका समाज के बीच महत्व होता है.


क्यों फेल होती है सभी योजनाएं: ऐसा नहीं है कि ये सभी प्रक्रियाओं को बीते दिनों यूपी के उन जिलों में नहीं अपनाई गई थी. उसके बावजूद कांलूर, प्रयागराज, सहारनपुर समेत कई शहरों में हिंसा भड़क गई थी. पुलिस ने इंटेलिजेंस की रिपोर्ट मिलने पर धर्म गुरुओं से बातचीत की थी, पीस कमेटी की बैठक की व पर्याप्त मात्रा में केन्द्रीय व राज्य की फोर्स तैनात की गई थी. इसके पीछे का कारण बताते हुए रिटायर्ड डिप्टी एसपी श्याम शुक्ला बताते है कि मौजूदा समय तैनात अधिकतर थाना प्रभारी अपने क्षेत्र में भ्रमणशील नहीं रहते हैं. इससे उनके क्षेत्र में क्या हलचल चल रही है, इसकी जानकारी उन्हें समय पर नहीं मिल पाती है. वो कहते है कि साल भर थाना प्रभारी अपने ऐसी कमरों से बैठ कर थाना चलाते है और इंटेलिजेंस की रिपोर्ट आने पर एकदम से सक्रीय होते हैं, तो कैसे ऐसी घटनाएं रुकेंगी.
ये भी पढ़ें- भाजपा नेता अपर्णा यादव को मिली जान से मारने की धमकी, इस नंबर से आई थी कॉल


वर्तमान में पुलिस मुख्यालय में तैनात अधिकारी बताते है कि बीते दिनों उग्र प्रदर्शन होने की जानकारी समय पर मिली. फील्ड में तैनात पुलिस अधिकारियों ने धर्मगुरुओं से कई दौर की चर्चा भी की थी, लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने धोखा दिया और हिंसा हो गयी. वो कहते है कि कानपुर व प्रयागराज में उपद्रव हुआ. संगठनों व धर्म गुरुओं के धोखे की वजह से लेकिन उसे बड़ी हिंसा न होने देना यह पहले से की गई तैयारियों का परिणाम है.

ये उपाय हैं ज़रूरी: पुलिस मुख्यालय तैनात पुलिस अधिकारी कहते है कि यदि ऐसी घटनाएं रोकनी है, तो इन तैयारीयों के साथ-साथ कुछ अन्य उपाय भी करने होंगे. पीस कमेटी और धर्म गुरुओं से बातचीत करने के साथ ही उनसे शपथ पत्र व बांड लिखवाना पड़ेगा. ताकि उनके उनके इलाकों में हिंसा होने की स्थिति में उनसे जुर्माना वसूला जा सके. यही नहीं जो संगठन खास तौर पर ऐसे उग्र प्रदर्शनों में सक्रिय भूमिका निभाते आ रहा हो हिंसा या उग्र प्रदर्शन होने पर उन्हें तत्काल गिरफ्तार किया जाए. इससे कहीं हद तक कानून का डर बना रहेगा.

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Last Updated : Jun 16, 2022, 8:18 AM IST
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