लखनऊ: अजीत सिंह हत्याकांड में वांटेड पूर्वांचल का बाहुबली धनजय सिंह कागजों में भगोड़ा घोषित है लेकिन असल में खुलेआम मौज की जिंदगी जी रहा है. यूपी में टॉप 25 माफियायों में से एक पूर्व सांसद व विधायक जौनपुर में खुलेआम लाव-लश्कर के साथ रहा है. धनंजय सिंह का क्रिकेट खेलते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. अब जब इस मोस्ट वांटेड अपराधी का क्रिकेट खेलते वीडियो वायरल हो रहा है तो डीजीपी मुकुल गोयल जांच कार्रवाई की बात कर रहे हैं. आइए जानते हैं आखिर कौन है धनजंय सिंह, जो यूपी पुलिस को चुनौती दे रहा है.
अजीत सिंह हत्याकांड में मोस्ट वांटेड है धनंजय सिंह
दरअसल, जौनपुर का बाहुबली नेता और पूर्व सांसद धनंजय सिंह 6 जनवरी 2021 की शाम राजधानी लखनऊ के विभूति खंड में कठौता चौराहे पर आजमगढ़ के पूर्व ब्लाक प्रमुख अजीत सिंह की गोलियों से भूनकर हत्या के मामले में वांटेड है. इस हत्याकांड ने पूरे सूबे की कानून-व्यवस्था पर भी सवाल खड़े कर दिए थे. यही नहीं 8 आईपीएस अधिकारियों से लैस लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए थे. हालांकि पुलिस ने इस घटना के एक साजिशकर्ता गिरधारी उर्फ डॉक्टर को ढेर कर दिया था लेकिन विवेचना में सामने आये धनजंय सिंह के नाम पर सिर्फ कागजी कार्रवाई में ही पुलिस की चुस्ती दिखी. धनंजय की दबिश के लिए लखनऊ पुलिस एक बार उसके घर गयी भी लेकिन बाहर से ही उसकी पत्नी को अपना संदेश देकर बैरंग वापस आ गयी. लखनऊ पुलिस ने अजीत सिंह हत्याकांड में धनंजय सिंह पर 25 हजार का इनाम घोषित किया है और सरेंडर करने के लिए घर पर नोटिस भी चस्पा भी की है.
2002 से शुरू की राजनीतिक पारी
पूर्वी उत्तर प्रदेश की मिट्टी ने देश को कई बड़े नेता, साहित्यकार और कलाकार दिए है. तो सबसे बड़े माफ़ियायों की फौज भी इसी पूर्वांचल की देन है. मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, ब्रजेश सिंह, विजय मिश्रा ऐसे एक दर्जन नाम हैं, जिन्होंने जरायम की दुनिया में अपना दबदबा कायम किया. इन्ही में धनंजय सिंह भी है, जिसने 2002 से राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की और आज तक जारी है. धनंजय सिंह ने राजनीतिक पारी को शुरू करने से पहले एक ऐसी पारी खेलनी शुरू की थी, जिसने उसे माफ़ियायों की लिस्ट में सबसे ऊपर बैठा दिया. धनंजय सिंह के ऊपर साल 1998 तक ही 12 मुकदमें दर्ज हो चुके थे. यही नही अजीत सिंह हत्याकांड से पहले धनंजय सिंह पर 26 अपराधिक मुकदमें दर्ज थे. मई 2018 धनंजय सिंह को मिली वाई श्रेणी की सुरक्षा पर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार भी लगाई थी. इसके बाद सरकार ने सफाई दी कि धनजंय की सुरक्षा वापस ले ली गयी है.
1998 में धनंजय सिंह को भदोही पुलिस ने मृत घोषित कर दिया था
23 साल पहले 17 अक्टूबर 1998 को कल्याण सिंह की सरकार में पुलिस के पास मुखबिर की एक सूचना आई कि उस वक़्त का 50 हजार इनामी बदमाश धनजंय सिंह अपने 3 साथियों के साथ भदोही मिर्जापुर रोड पर बने एक पेट्रोल पंप पर डकैती डालने वाले हैं. स्थानीय पुलिस ने दोपहर 11.30 बजे पेट्रोल पंप पर छापा मारा और मुठभेड़ में मारे गए 4 लोगों में एक को धनंजय सिंह बताया. इसके बाद 4 महीने तक धनजंय छुपता रहा और अचानक फरवरी 1999 में जब वो पुलिस के सामने पेश हुआ तब भदोही पुलिस के फेक एनकाउंटर का राज खुला. धनंजय के जिंदा सामने आने के तुरंत बाद मानवाधिकार आयोग की जांच बैठी और बाद में फेक एनकाउंटर में शामिल 34 पुलिसकर्मियों पर मुकदमे दर्ज हुए. जिसकी जांच आज भी चल रही है.
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पुलिस क्यों अनदेखा कर रही है?
पूर्व डीजीपी यशपाल सिंह हैरानी जाहिर करते हुए कहते हैं कि जब धनंजय सिंह को कोर्ट से जमानत मिली थी, तब ही लखनऊ पुलिस को उसे गिरफ्तार कर लेना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि लखनऊ पुलिस के पास पर्याप्त सबूत होंगे तब ही धनंजय सिंह के खिलाफ इनाम घोषित किया है. अब पुलिस क्यों अनदेखा कर रही है, ये तो मौजूदा पुलिस अधिकारियों को बताना चाहिए. वहीं, पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश राय ने कहा कि पुलिस को इस मामले में बिल्कुल अनदेखा नहीं करना चाहिए. लेकिन कई बार होता है कि जब पुलिस की टीम दबिश देने जाती है और अपराधी नहीं मिलता है तो वो चली आती है. बाद में वो अपराधी फिर खुलेआम घूमते हुए क्रिकेट खेलते है या लोगों से मिलता है. पुलिस उसके लिए 24 घंटे तो धनंजय सिंह के घर के बाहर बैठ नहीं सकती.
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