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गुरु अर्जुन देव के शहीदी दिवस पर कीर्तन, कोरोना से मुक्ति की भी प्रार्थना - गुरु अर्जुन देव महाराज का 415वां शहीदी दिवस

गुरु अर्जुन देव महाराज (guru arjun dev) का 415वां शहीदी दिवस पूरी श्रद्धा के साथ मनाया गया. इस अवसर पर राजधानी लखनऊ (lucknow) के गुरुद्वारा नाका हिन्डोला में विशेष आयोजन किया गया.

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Published : Jun 15, 2021, 7:55 AM IST

लखनऊ: श्री गुरुग्रन्थ साहिब जी के संस्थापक एवं सिखों के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव (guru arjun dev) महाराज का 415वां शहीदी दिवस सोमवार को श्रद्धा एवं सत्कार के साथ मनाया गया. इस अवसर पर लखनऊ (lucknow) में स्थित श्री गुरु सिंह सभा, ऐतिहासिक गुरुद्वारा, नाका हिन्डोला में विशेष आयोजन हुआ. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के चरणों में प्रार्थना हुई एवं कोरोना बीमारी से छुटकारे के लिए गुरु महाराज के चरणों में अरदास की गई. साथ ही शबद- कीर्तन हुआ और गुरुजी के पावन जीवन के बारे में भी बताया गया.

श्री सुखमनी साहिब जी के पाठ से दीवान आरंभ हुआ. इसके बाद भाई राजिन्दर सिंह ने शबद कीर्तन गायन किया. कथा व्याख्यान ज्ञानी सुखदेव सिंह जी ने किया. उन्होंने बताया कि गुरुजी का जन्म आज ही के दिन गोइंदवाल साहिब अमृतसर में हुआ था. पिता का नाम श्री गुरु रामदास जी और माता जी का नाम बीबी भानी जी था. गुरु जी का ज्यादातर बचपन गोइंदवाल साहिब में बीता. बचपन से ही आपने गुरु मर्यादा सीखी.

प्रभु सिमरन और माता पिता की सेवा को देखकर पिता जी ने आप में सभी गुण देखकर आपको गुरु गद्दी सौंप दी. गुरुजी ने सेवा आरम्भ कर एक सरोवर बनवाया जिसका नाम अमृतसर रखा. सरोवर के बीचोबीच में श्री हरिमंदिर साहिब की स्थापना की, जिसकी नींव अपने प्यारे सिख मियां मीर से रखवाई. यह शहर श्री अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

श्री हरिमंदिर साहिब के निर्माण के बाद आपने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के संपादन का काम आरम्भ कर दिया. सभी गुरुओं और भक्तों की वाणी आपके पास थी. अपने इस कार्य की सेवा आपने भाई गुरुदास जी को सौंपी. सरोवर के किनारे बैठकर भाई गुरुदास जी ने यह सेवा निभाई और श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की स्थापना श्री हरिमंदिर साहिब में कर दी. बाबा बुड्ढा जी को मुख्य ग्रन्थी बनाया. श्री गुरू अरजन देव जी ने 30 रागों में 2312 शबद लिखे, जिसमें श्री सुखमनी साहिब प्रमुख हैं.

अकबर की मौत के जहांगीर मुगल साम्राज्य का शासक बना. उसी दौरान जहांगीर के बेटे खुसरो ने बगावत कर दी थी, जिसके बाद उसके पिता ने उसे गिरफ्तार करने के आदेश दिए, गिरफ्तारी के डर से खुसरो पंजाब की ओर भागा और तरनतारन में गुरु अर्जुन देव जी के पास पहुंचा शरण ली और विश्राम किया. यह बात जहांगीर को चुभ गई, इसके साथ ही जहांगीर अर्जन देव की प्रसिद्धि को भी पसंद नहीं करता था. वहीं, इस मौके को कुछ अन्य विरोधियों ने भुनाते हुए, जहांगीर की आग में घी डालने का काम किया, जिसके बाद जहांगीर ने मौका देख गुरु अर्जुन देव पर उल्टे-सीधे आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया और जबरन धर्म परिवर्तन करने के लिए दबाव डाला .

गुरू जी ने झूठ और अन्याय का साथ देने से इनकार कर दिया और शहादत को चुना. इसके बाद जहांगीर ने उन्हें शहीद करने का हुकम दिया और लाहौर में कई गंभीर यातनाएं दीं. उन्हें गर्म तवे पर बैठाया गया और उनके ऊपर गर्म रेत डाली गई. इसके अलावा उन्हें और भी कई तरह के कष्ट दिए गए, अर्जन देव जी शहीद हो गए. इसके बाद उनकी याद में रावी नदी के किनारे पर ही गुरुद्वारा डेरा साहिब बनवाया गया था, जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है. सिख परंपरा के मुताबिक, गुरु अर्जुन देव को शहीदों का सरताज कहा जाता है. वह सिख धर्म के पहले शहीद हुए.

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साधना परिवार के बच्चों ने भी इस समागम में शबद कीर्तन गायन किया. कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया. लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष सरदार राजेन्द्र सिंह बग्गा ने अपील करते हुए कहा कि सभी घरों में रह कर श्री गुरु अर्जुन देव जी द्वारा रचित पाठ श्री सुखमनी साहिब का पाठ कर पावन शहीदी दिवस को मनाएं. 4 मई से 14 जून तक श्री गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस को समर्पित लगातार 40 दिनों तक गरीबों एवं जरुरतमन्दों के लिए गुरु के लंगर की सेवा निरन्तर की जा रही है.

हरमिन्दर सिंह टीटू, सतपाल सिंह मीत, हरविन्दरपाल सिंह नीटा ने लंगर ग्रहण करने वालों को गुरुद्वारा भवन के बाहर दो-दो गज की दूरी पर पंक्ति में बिठवाकर लंगर वितरित करवाया.

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लखनऊ: श्री गुरुग्रन्थ साहिब जी के संस्थापक एवं सिखों के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव (guru arjun dev) महाराज का 415वां शहीदी दिवस सोमवार को श्रद्धा एवं सत्कार के साथ मनाया गया. इस अवसर पर लखनऊ (lucknow) में स्थित श्री गुरु सिंह सभा, ऐतिहासिक गुरुद्वारा, नाका हिन्डोला में विशेष आयोजन हुआ. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के चरणों में प्रार्थना हुई एवं कोरोना बीमारी से छुटकारे के लिए गुरु महाराज के चरणों में अरदास की गई. साथ ही शबद- कीर्तन हुआ और गुरुजी के पावन जीवन के बारे में भी बताया गया.

श्री सुखमनी साहिब जी के पाठ से दीवान आरंभ हुआ. इसके बाद भाई राजिन्दर सिंह ने शबद कीर्तन गायन किया. कथा व्याख्यान ज्ञानी सुखदेव सिंह जी ने किया. उन्होंने बताया कि गुरुजी का जन्म आज ही के दिन गोइंदवाल साहिब अमृतसर में हुआ था. पिता का नाम श्री गुरु रामदास जी और माता जी का नाम बीबी भानी जी था. गुरु जी का ज्यादातर बचपन गोइंदवाल साहिब में बीता. बचपन से ही आपने गुरु मर्यादा सीखी.

प्रभु सिमरन और माता पिता की सेवा को देखकर पिता जी ने आप में सभी गुण देखकर आपको गुरु गद्दी सौंप दी. गुरुजी ने सेवा आरम्भ कर एक सरोवर बनवाया जिसका नाम अमृतसर रखा. सरोवर के बीचोबीच में श्री हरिमंदिर साहिब की स्थापना की, जिसकी नींव अपने प्यारे सिख मियां मीर से रखवाई. यह शहर श्री अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

श्री हरिमंदिर साहिब के निर्माण के बाद आपने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के संपादन का काम आरम्भ कर दिया. सभी गुरुओं और भक्तों की वाणी आपके पास थी. अपने इस कार्य की सेवा आपने भाई गुरुदास जी को सौंपी. सरोवर के किनारे बैठकर भाई गुरुदास जी ने यह सेवा निभाई और श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की स्थापना श्री हरिमंदिर साहिब में कर दी. बाबा बुड्ढा जी को मुख्य ग्रन्थी बनाया. श्री गुरू अरजन देव जी ने 30 रागों में 2312 शबद लिखे, जिसमें श्री सुखमनी साहिब प्रमुख हैं.

अकबर की मौत के जहांगीर मुगल साम्राज्य का शासक बना. उसी दौरान जहांगीर के बेटे खुसरो ने बगावत कर दी थी, जिसके बाद उसके पिता ने उसे गिरफ्तार करने के आदेश दिए, गिरफ्तारी के डर से खुसरो पंजाब की ओर भागा और तरनतारन में गुरु अर्जुन देव जी के पास पहुंचा शरण ली और विश्राम किया. यह बात जहांगीर को चुभ गई, इसके साथ ही जहांगीर अर्जन देव की प्रसिद्धि को भी पसंद नहीं करता था. वहीं, इस मौके को कुछ अन्य विरोधियों ने भुनाते हुए, जहांगीर की आग में घी डालने का काम किया, जिसके बाद जहांगीर ने मौका देख गुरु अर्जुन देव पर उल्टे-सीधे आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया और जबरन धर्म परिवर्तन करने के लिए दबाव डाला .

गुरू जी ने झूठ और अन्याय का साथ देने से इनकार कर दिया और शहादत को चुना. इसके बाद जहांगीर ने उन्हें शहीद करने का हुकम दिया और लाहौर में कई गंभीर यातनाएं दीं. उन्हें गर्म तवे पर बैठाया गया और उनके ऊपर गर्म रेत डाली गई. इसके अलावा उन्हें और भी कई तरह के कष्ट दिए गए, अर्जन देव जी शहीद हो गए. इसके बाद उनकी याद में रावी नदी के किनारे पर ही गुरुद्वारा डेरा साहिब बनवाया गया था, जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है. सिख परंपरा के मुताबिक, गुरु अर्जुन देव को शहीदों का सरताज कहा जाता है. वह सिख धर्म के पहले शहीद हुए.

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साधना परिवार के बच्चों ने भी इस समागम में शबद कीर्तन गायन किया. कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया. लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष सरदार राजेन्द्र सिंह बग्गा ने अपील करते हुए कहा कि सभी घरों में रह कर श्री गुरु अर्जुन देव जी द्वारा रचित पाठ श्री सुखमनी साहिब का पाठ कर पावन शहीदी दिवस को मनाएं. 4 मई से 14 जून तक श्री गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस को समर्पित लगातार 40 दिनों तक गरीबों एवं जरुरतमन्दों के लिए गुरु के लंगर की सेवा निरन्तर की जा रही है.

हरमिन्दर सिंह टीटू, सतपाल सिंह मीत, हरविन्दरपाल सिंह नीटा ने लंगर ग्रहण करने वालों को गुरुद्वारा भवन के बाहर दो-दो गज की दूरी पर पंक्ति में बिठवाकर लंगर वितरित करवाया.

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