लखनऊ: चारबाग रेलवे स्टेशन स्थित पटरियों के बीच में एक ऐसी दरगाह है, जिस पर गुरुवार को बड़ा मेला लगता है. इस दरगाह की अपनी मान्यता है. उत्तर प्रदेश समेत देश भर से बड़ी संख्या में जायरीन यहां पर अपनी ख्वाहिश लेकर आते हैं और खम्मन पीर बाबा उनकी मन्नतें पूरी करते हैं. दरगाह की खास बात यह है कि यह रेलवे की पटरियों के बीच में स्थित है. दोनों तरफ से ट्रेनें गुजरती हैं. इस दरगाह के लिए रेलवे ने पटरियों को ही मोड़ दिया. इन्हीं पटरियों से गुजरते हुए लोग बड़ी संख्या में दरगाह पर मन्नत मांगने पहुंचते हैं.
लोग बताते हैं कि जिस स्थान पर ये दरगाह है. सदियों पहले भदेवा नाम का जंगल हुआ करता था. इसी स्थान पर जंग हुई थी और पीर बाबा यहां शहीद हो गए थे. जिसके बाद उनकी कब्र यहीं पर बना दी गई थी. तबसे यह दरगाह आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. पटरियों के बीच स्थित इस दरगाह को लेकर 'ईटीवी भारत' ने तमाम जायरीनों से बात की. आइये जानते हैं उनका क्या कहना है.
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खम्मन पीर के खतीब-ओ-इमाम अरशद रजा का कहना है कि वो पांच वक्त की नमाज पढ़ाते हैं. जुमे की नमाज भी पढ़ाते हैं. वो यहां के इमाम हैं. उन्होंने बताया कि उस वक्त यहां भदेवां नाम का जंगल हुआ करता था. उसके बाद यहां पर अल्लाह के वली जो खम्मन पीर बाबा के नाम से मशहूर थे, उनकी यहां पर कब्र थी. यह जगह उनकी आरामगाह थी, जो अंग्रेजों को मालूम नहीं था. अंग्रेजों ने यहां पर स्टेशन बनवाया. स्टेशन बनकर तैयार हो गया तो ट्रेन चलने के लिए ट्रैक बिछाने का काम शुरू हुआ. उन्होंने समझा कि बराबर जमीन है तो समतल ट्रैक बिछा दिया जाए.
अंग्रेज दिन में ट्रैक बिछाते और रात में ट्रैक अपने आप उखड़कर इधर-उधर बिखर जाता. यह सिलसिला लगातार चलता रहा. जब अंग्रेज थक हार गए तो अंग्रेज इंजीनियर के ख्वाब में बाबा में आए और उसे बताया कि यह मेरी आरामगाह है. जब उस अंग्रेज को लगा कि यहां पर कोई शक्ति है, उसने इतनी जगह बाबा के नाम से छोड़ दी. जिसके बाद रेलवे प्रशासन की तरफ से भी दरगाह को शिफ्ट करने का प्रयास नहीं किया गया. उनकी तरफ से हमेशा मदद मिलती है.
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