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ट्रेन की पटरियों के बीच स्थित इस दरगाह में मन्नत मांगने पहुंचते हैं जायरीन

लखनऊ में एक ऐसी दरगाह है, जो ट्रेन की पटरियों के बीच स्थित है. यहां अपनी मन्नतें लेकर देशभर से जायरीनों का हुजूम आता है. माना जाता है कि बाबा के दर पर आने वाले लोगों की हर मन्नत पूरी होती है. आइये खबर में इस दरगाह के बारे में पूरी जानकारी हासिल करते हैं.

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खम्मन पीर बाबा की दरगाह
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Published : Jul 14, 2022, 9:09 PM IST

लखनऊ: चारबाग रेलवे स्टेशन स्थित पटरियों के बीच में एक ऐसी दरगाह है, जिस पर गुरुवार को बड़ा मेला लगता है. इस दरगाह की अपनी मान्यता है. उत्तर प्रदेश समेत देश भर से बड़ी संख्या में जायरीन यहां पर अपनी ख्वाहिश लेकर आते हैं और खम्मन पीर बाबा उनकी मन्नतें पूरी करते हैं. दरगाह की खास बात यह है कि यह रेलवे की पटरियों के बीच में स्थित है. दोनों तरफ से ट्रेनें गुजरती हैं. इस दरगाह के लिए रेलवे ने पटरियों को ही मोड़ दिया. इन्हीं पटरियों से गुजरते हुए लोग बड़ी संख्या में दरगाह पर मन्नत मांगने पहुंचते हैं.

लोग बताते हैं कि जिस स्थान पर ये दरगाह है. सदियों पहले भदेवा नाम का जंगल हुआ करता था. इसी स्थान पर जंग हुई थी और पीर बाबा यहां शहीद हो गए थे. जिसके बाद उनकी कब्र यहीं पर बना दी गई थी. तबसे यह दरगाह आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. पटरियों के बीच स्थित इस दरगाह को लेकर 'ईटीवी भारत' ने तमाम जायरीनों से बात की. आइये जानते हैं उनका क्या कहना है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट
सालों से हुसैनाबाद से हाजिरी लगाने दरगाह पर आने वाली जेबा फातिमा का कहना है कि लगभग 20 साल से यहां आ रही हैं. उनकी खाला ऐशबाग में 300 सौ रुपये की नौकरी करती थीं और सिधौली में रहती थीं. वो सिधौली से रोज दरगाह पर आती थीं. उन्होंने दुआ की थी कि वह परमानेंट हो जाएंगी तो यहां बराबर आती रहेंगी. उसके बाद उन्होंने बहुत तरक्की पाई. सिधौली में अपना घर बनवाया, बच्चों को पढ़ाया लिखाया. फिर उसके बाद उन्होंने लखनऊ में भी मकान बनवा लिया. उनका बेटा एमबीए करने लगा. यहां पर दुआ करने वाले लोगों का खम्मन पीर बाबा हमेशा भला करते हैं. राजाजीपुरम से खम्मन पीर दरगाह पर मन्नत लेकर आईं गीता बताती हैं कि यहां की मान्यता है कि आपकी जो भी मन्नत है वह जरूर पूरी होती है. भले थोड़ा समय लग जाए लेकिन कभी भी मन्नत खाली नहीं जाती. यहां पर आने में बहुत खुशी मिलती है. कई घंटे तक यहां समय गुजारते हैं. पहले हम गुरु नानक गर्ल्स कॉलेज में रहते थे. वहीं से पढ़ाई लिखाई हुई थी. हम यहां हमेशा आते हैं और अपने बच्चों को भी साथ लाते हैं. वहीं महफूज अली का कहना है कि पिछले 12 साल से वो लगातार यहां आ रहे हैं. उनके घर से पहले कोई नहीं आता था. लेकिन केकेसी में पढ़ाई के दौरान उन्होंने वहां आना शुरू किया. तब से वो लगातार यहां आते हैं. मन्नत मांगने पर उनकी बहुत सी मन्नतें पूरी हुई हैं. हरदोई के रहने वाले आरके सिंह का कहना है कि पिछले 20-25 साल से वो यहां आ रहे है. 1993 में वो लखनऊ में नौकरी करते थे और तब से वो यहां आने लगे. बाबा की कृपा है. मेडिकल लाइन में उन्हें काफी तरक्की मिली है.

यह भी पढ़ें- काशी में गुरु पूर्णिमा पर दिखा अद्भुत नजारा, मुस्लिम महिलाओं ने गुरु की आरती उतारकर लिया आशीर्वाद

खम्मन पीर के खतीब-ओ-इमाम अरशद रजा का कहना है कि वो पांच वक्त की नमाज पढ़ाते हैं. जुमे की नमाज भी पढ़ाते हैं. वो यहां के इमाम हैं. उन्होंने बताया कि उस वक्त यहां भदेवां नाम का जंगल हुआ करता था. उसके बाद यहां पर अल्लाह के वली जो खम्मन पीर बाबा के नाम से मशहूर थे, उनकी यहां पर कब्र थी. यह जगह उनकी आरामगाह थी, जो अंग्रेजों को मालूम नहीं था. अंग्रेजों ने यहां पर स्टेशन बनवाया. स्टेशन बनकर तैयार हो गया तो ट्रेन चलने के लिए ट्रैक बिछाने का काम शुरू हुआ. उन्होंने समझा कि बराबर जमीन है तो समतल ट्रैक बिछा दिया जाए.

अंग्रेज दिन में ट्रैक बिछाते और रात में ट्रैक अपने आप उखड़कर इधर-उधर बिखर जाता. यह सिलसिला लगातार चलता रहा. जब अंग्रेज थक हार गए तो अंग्रेज इंजीनियर के ख्वाब में बाबा में आए और उसे बताया कि यह मेरी आरामगाह है. जब उस अंग्रेज को लगा कि यहां पर कोई शक्ति है, उसने इतनी जगह बाबा के नाम से छोड़ दी. जिसके बाद रेलवे प्रशासन की तरफ से भी दरगाह को शिफ्ट करने का प्रयास नहीं किया गया. उनकी तरफ से हमेशा मदद मिलती है.

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लखनऊ: चारबाग रेलवे स्टेशन स्थित पटरियों के बीच में एक ऐसी दरगाह है, जिस पर गुरुवार को बड़ा मेला लगता है. इस दरगाह की अपनी मान्यता है. उत्तर प्रदेश समेत देश भर से बड़ी संख्या में जायरीन यहां पर अपनी ख्वाहिश लेकर आते हैं और खम्मन पीर बाबा उनकी मन्नतें पूरी करते हैं. दरगाह की खास बात यह है कि यह रेलवे की पटरियों के बीच में स्थित है. दोनों तरफ से ट्रेनें गुजरती हैं. इस दरगाह के लिए रेलवे ने पटरियों को ही मोड़ दिया. इन्हीं पटरियों से गुजरते हुए लोग बड़ी संख्या में दरगाह पर मन्नत मांगने पहुंचते हैं.

लोग बताते हैं कि जिस स्थान पर ये दरगाह है. सदियों पहले भदेवा नाम का जंगल हुआ करता था. इसी स्थान पर जंग हुई थी और पीर बाबा यहां शहीद हो गए थे. जिसके बाद उनकी कब्र यहीं पर बना दी गई थी. तबसे यह दरगाह आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. पटरियों के बीच स्थित इस दरगाह को लेकर 'ईटीवी भारत' ने तमाम जायरीनों से बात की. आइये जानते हैं उनका क्या कहना है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट
सालों से हुसैनाबाद से हाजिरी लगाने दरगाह पर आने वाली जेबा फातिमा का कहना है कि लगभग 20 साल से यहां आ रही हैं. उनकी खाला ऐशबाग में 300 सौ रुपये की नौकरी करती थीं और सिधौली में रहती थीं. वो सिधौली से रोज दरगाह पर आती थीं. उन्होंने दुआ की थी कि वह परमानेंट हो जाएंगी तो यहां बराबर आती रहेंगी. उसके बाद उन्होंने बहुत तरक्की पाई. सिधौली में अपना घर बनवाया, बच्चों को पढ़ाया लिखाया. फिर उसके बाद उन्होंने लखनऊ में भी मकान बनवा लिया. उनका बेटा एमबीए करने लगा. यहां पर दुआ करने वाले लोगों का खम्मन पीर बाबा हमेशा भला करते हैं. राजाजीपुरम से खम्मन पीर दरगाह पर मन्नत लेकर आईं गीता बताती हैं कि यहां की मान्यता है कि आपकी जो भी मन्नत है वह जरूर पूरी होती है. भले थोड़ा समय लग जाए लेकिन कभी भी मन्नत खाली नहीं जाती. यहां पर आने में बहुत खुशी मिलती है. कई घंटे तक यहां समय गुजारते हैं. पहले हम गुरु नानक गर्ल्स कॉलेज में रहते थे. वहीं से पढ़ाई लिखाई हुई थी. हम यहां हमेशा आते हैं और अपने बच्चों को भी साथ लाते हैं. वहीं महफूज अली का कहना है कि पिछले 12 साल से वो लगातार यहां आ रहे हैं. उनके घर से पहले कोई नहीं आता था. लेकिन केकेसी में पढ़ाई के दौरान उन्होंने वहां आना शुरू किया. तब से वो लगातार यहां आते हैं. मन्नत मांगने पर उनकी बहुत सी मन्नतें पूरी हुई हैं. हरदोई के रहने वाले आरके सिंह का कहना है कि पिछले 20-25 साल से वो यहां आ रहे है. 1993 में वो लखनऊ में नौकरी करते थे और तब से वो यहां आने लगे. बाबा की कृपा है. मेडिकल लाइन में उन्हें काफी तरक्की मिली है.

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खम्मन पीर के खतीब-ओ-इमाम अरशद रजा का कहना है कि वो पांच वक्त की नमाज पढ़ाते हैं. जुमे की नमाज भी पढ़ाते हैं. वो यहां के इमाम हैं. उन्होंने बताया कि उस वक्त यहां भदेवां नाम का जंगल हुआ करता था. उसके बाद यहां पर अल्लाह के वली जो खम्मन पीर बाबा के नाम से मशहूर थे, उनकी यहां पर कब्र थी. यह जगह उनकी आरामगाह थी, जो अंग्रेजों को मालूम नहीं था. अंग्रेजों ने यहां पर स्टेशन बनवाया. स्टेशन बनकर तैयार हो गया तो ट्रेन चलने के लिए ट्रैक बिछाने का काम शुरू हुआ. उन्होंने समझा कि बराबर जमीन है तो समतल ट्रैक बिछा दिया जाए.

अंग्रेज दिन में ट्रैक बिछाते और रात में ट्रैक अपने आप उखड़कर इधर-उधर बिखर जाता. यह सिलसिला लगातार चलता रहा. जब अंग्रेज थक हार गए तो अंग्रेज इंजीनियर के ख्वाब में बाबा में आए और उसे बताया कि यह मेरी आरामगाह है. जब उस अंग्रेज को लगा कि यहां पर कोई शक्ति है, उसने इतनी जगह बाबा के नाम से छोड़ दी. जिसके बाद रेलवे प्रशासन की तरफ से भी दरगाह को शिफ्ट करने का प्रयास नहीं किया गया. उनकी तरफ से हमेशा मदद मिलती है.

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