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लखनऊ: कोरोना एयरोसॉल के सत्यापन पर KGMU करने जा रहा शोध

राजधानी लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी का क्रिटिकल केयर विभाग अब कोरोना का एयरोसॉल के रिश्ते पर शोध करने जा रहा है. केजीएमयू के डॉक्टरों के अनुसार इस शोध से हवा में कोरोना की उपस्थिति का सत्यापन किया जा सकता है.

एयरोसॉल पर होने जा रहा शोध.
कोरोना एयरोसॉल पर होने जा रहा शोध.
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Published : Jul 17, 2020, 7:30 AM IST

लखनऊ: दुनिया भर के विज्ञानविद तमाम तरह के शोध से कोरोना वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने में जुटे हैं. इसी कड़ी में अब किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉक्टर्स भी कोरोना वायरस पर चल रहे एक विषय पर शोध करने जा रहे हैं. केजीएमयू के डॉक्टर शोध कर रहे कि कोरोना संक्रमण हवा के जरिए एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है या नहीं.

एयरोसॉल पर होने जा रहा शोध.
कोरोना एयरोसॉल पर होने जा रहा शोध.

संक्रमण पर शोध शुरू
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पलमोनरी और क्रिटिकल केयर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश कोरोना वायरस को लेकर दुनिया भर में चल रहे एयरोसॉल पर खोज करने जा रहे हैं. कुछ डॉक्टरों और वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना वायरस एयरोसॉल यानी हवा में फैल कर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच रहा है. ऐसे में हवा में वायरस की मौजूदगी का पता लगाने के लिए डॉ. वेद रिसर्च करने जा रहे हैं.

इन मरीजों पर होगा परीक्षण
इस रिसर्च में लगभग 400 मरीजों पर शोध किया जाएगा और शोध में 3 तरह के मरीज शामिल होंगे. इनमें कुछ मरीज 'एसिंप्टोमेटिक' होंगे यानी जिनमें कोरोना के कोई भी लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं, लेकिन वे संक्रमित हैं. इसके अलावा कुछ मरीज 'माइल्ड सिम्पटम्स' यानी बहुत कम लक्षणों के साथ कोरोना के चपेट में आए हुए हैं, उन्हें शामिल किया जा रहा है. वहीं कुछ 'मॉडरेट' यानी सामान्य से गंभीर जाने की स्थिति के मरीजों को इस शोध में शामिल किया जाएगा.

गुब्बारे का लिया जाएगा सहारा
डॉ. वेद के अनुसार इस शोध में एक खास तरह के गुब्बारे का इस्तेमाल किया जाएगा, जिसमें मरीजों के मुंह से हवा भराई जाएगी. इसके बाद इस गुब्बारे में मौजूद हवा की जांच की जाएगी. यदि हवा में कोरोना वायरस की उपस्थिति होती है तो पता लग जाएगा. साथ ही कुछ अन्य बातें भी सामने आने की पूरी संभावना हैं. इससे कहीं न कहीं मरीजों के इलाज और संक्रमण के प्रसार और बचाव में भी जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं.

केजीएमयू में होने वाले इस शोध की एक खास बात यह भी है कि इसमें मेरठ मेडिकल कॉलेज के कुछ मरीजों को शामिल किया जाएगा. वहीं किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के कोरोना वॉर्ड में भर्ती कुछ मरीज भी इस शोध का हिस्सा होंगे.

लखनऊ: दुनिया भर के विज्ञानविद तमाम तरह के शोध से कोरोना वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने में जुटे हैं. इसी कड़ी में अब किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉक्टर्स भी कोरोना वायरस पर चल रहे एक विषय पर शोध करने जा रहे हैं. केजीएमयू के डॉक्टर शोध कर रहे कि कोरोना संक्रमण हवा के जरिए एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है या नहीं.

एयरोसॉल पर होने जा रहा शोध.
कोरोना एयरोसॉल पर होने जा रहा शोध.

संक्रमण पर शोध शुरू
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पलमोनरी और क्रिटिकल केयर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश कोरोना वायरस को लेकर दुनिया भर में चल रहे एयरोसॉल पर खोज करने जा रहे हैं. कुछ डॉक्टरों और वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना वायरस एयरोसॉल यानी हवा में फैल कर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच रहा है. ऐसे में हवा में वायरस की मौजूदगी का पता लगाने के लिए डॉ. वेद रिसर्च करने जा रहे हैं.

इन मरीजों पर होगा परीक्षण
इस रिसर्च में लगभग 400 मरीजों पर शोध किया जाएगा और शोध में 3 तरह के मरीज शामिल होंगे. इनमें कुछ मरीज 'एसिंप्टोमेटिक' होंगे यानी जिनमें कोरोना के कोई भी लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं, लेकिन वे संक्रमित हैं. इसके अलावा कुछ मरीज 'माइल्ड सिम्पटम्स' यानी बहुत कम लक्षणों के साथ कोरोना के चपेट में आए हुए हैं, उन्हें शामिल किया जा रहा है. वहीं कुछ 'मॉडरेट' यानी सामान्य से गंभीर जाने की स्थिति के मरीजों को इस शोध में शामिल किया जाएगा.

गुब्बारे का लिया जाएगा सहारा
डॉ. वेद के अनुसार इस शोध में एक खास तरह के गुब्बारे का इस्तेमाल किया जाएगा, जिसमें मरीजों के मुंह से हवा भराई जाएगी. इसके बाद इस गुब्बारे में मौजूद हवा की जांच की जाएगी. यदि हवा में कोरोना वायरस की उपस्थिति होती है तो पता लग जाएगा. साथ ही कुछ अन्य बातें भी सामने आने की पूरी संभावना हैं. इससे कहीं न कहीं मरीजों के इलाज और संक्रमण के प्रसार और बचाव में भी जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं.

केजीएमयू में होने वाले इस शोध की एक खास बात यह भी है कि इसमें मेरठ मेडिकल कॉलेज के कुछ मरीजों को शामिल किया जाएगा. वहीं किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के कोरोना वॉर्ड में भर्ती कुछ मरीज भी इस शोध का हिस्सा होंगे.

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