लखनऊ : जहां एक ओर लोगों ने आधुनिकता का जामा पहन रखा है. तीज-त्योहारों पर अपनी परिपाटी को छोड़कर नये दौर के सांचे में ढल गये हैं. वहीं कुछ लोग अपनी परंपरा की थाती को समेटे हुए हैं. ईटीवी भारत ने कुछ महिलाओं से बात की, जिन्होनें अपनी परम्पराओं से परिचित कराया.
हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवाचौथ का व्रत किया जाता है. इस दिन शादीशुदा महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं. ये सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ के लिए ये व्रत रखती हैं. दिन भर वो पूरी श्रद्धा से अपने पति की लंबी उम्र और जीवन में तरक्की के लिए प्रार्थना करती हैं. इस आधुनिक युग में अपनी परंपराओं को बचाये रखने में महिलाओं ने क्या कहा, देखिये ये रिपोर्ट...
निर्जला व्रत रखती हैं महिलाएं
साहित्यकार और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की सम्पादक अमिता दुबे कहती हैं कि भारतीय संस्कृति और परम्परा में पति-पत्नी का संबंध जन्म जन्मांतर का माना जाता है. एक स्त्री की कामना होती है कि उसे पति का अकूत प्रेम मिले. पति के प्रेम में वशीभूत होकर भारतीय स्त्री अपना सर्वस्व दांव पर लगाने को सहर्ष तत्पर रहती है. उन्होंने कहा कि पति की दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत होता है. महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं.
सुहागिन महिलाओं को इस व्रत की काफी प्रतीक्षा रहती है. विवाह के साथ प्रारम्भ होने वाला यह व्रत ससुराली संबंधों को और अधिक मनमोहक बनाता है. इस दिन सास अपनी नई-नवेली बहु को आशीर्वाद के रूप में सरगी देती हैं. इसमें श्रृंगार के सामान जैसे चूड़ी, बिंदी, आलता, मेंहदी आदि के साथ मिष्ठान होता है.
भारतीय त्योहारों का गहरा संबंध खान-पान से होता है, रसोईं से होता है. निर्जला व्रत रखने के बाद भी सुहागिन स्त्री करवा चौथ की पूजा के लिए पकवान बनाती है, जिसमें उन्हें अपार की अनुभूति होती है. इसमें उनके व्रत का अधिकांश समय व्यतीत हो जाता है. हिंदू धर्म में व्रत और उपवास से जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित हैं. करवा चौथ में भी चार कथाएं कहने की परंपरा है, जिनके माध्यम से व्रत के महत्त्व को रेखांकित किया जाता है.
आधुनिक हिसाब से भी होता है करवा चौथ
अमिता दुबे कहती हैं कि आधुनिक संदर्भों में करवा चौथ के मनाने के ढंग में भी परिवर्तन आया है. फिल्म, टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों में दिखाई जाने वाली पूजा आदि का प्रभाव भी देखा जाने लगा है. शहरी क्षेत्रों में करवा चौथ पार्टी आदि भी दी जाती है. चौथ का चांद सीधे देखना शुभ नहीं होता, इसलिए सम्भवतया छलनी से चांद देखने की परंपरा है. उनका मानना है कि चांद को बच्चों का मामा कहा जाता है, इस नाते रिश्ते में चांद को हर स्त्री के भाई का दर्जा दिया जाता है. करवा चौथ एक पारंपरिक त्योहार है, फिर चाहे कोई भी महिला कितनी भी आधुनिक क्यों न हो, परंपराओं से जुड़कर उसे भी अच्छा लगता है.
लोकगायिका कुसुम वर्मा कहती हैं कि शादी के बाद वह पहली बार पति के संग मध्य प्रदेश सतना आईं. करवा चौथ के दिन सुबह से ही कॉलोनी की नव विवाहिताओं ने उन्हें भी करवा चौथ का व्रत रखने के लिए प्रेरित किया. इसके बाद से ही उन्होंने करवा चौथ का व्रत रखना शुरू कर दिया. उन्होंने बताया कि करवा चौथ बहुत ही विशिष्ट त्योहार है.
आधुनिकता के इस दौर में बहुत सारे कार्यक्रम होते हैं. महिलायें तरह-तरह के करवा चौथ से संदर्भित फैशन शो, फैन्सी ड्रेस जैसी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती हैं. करवा चौथ की विशेष थीम पार्टियां भी होती हैं, जिसमें सोलह श्रृंगार करके महिलाएं जाती हैं. इसके लिये 2 दिन पहले से ही ब्यूटी पार्लर बुक हो जाते हैं. मेंहदी लगाने वालों की बाढ़ जैसी आ जाती है.
परंपराओं से लेकर के आधुनिकता से जुड़ा करवा चौथ का व्रत अपने आप में बेमिसाल है. जहां ससुराल या मायके की परंपरा के अनुसार व्रत किया जाता है. व्रत में चावल के आटे का फरा, कढ़ी जैसे व्यंजन बनाए जाते हैं और उन्हें चढ़ाया जाता है. इस दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है. चांद को अर्घ्य देकर व्रत पूरा होता है. रात में चांद का इंतजार होता है.
कथा सुनने की परंपरा बेहद महत्वपूर्ण
करवा चौथ में व्रत कथा सुनना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दौरान एक चौकी पर जल से भरा लोटा, करवे में गेहूं और उसके ढक्कन में चीनी और रुपये आदि रख जाते हैं. कहते हैं कि इस दिन का चांद भी बहुत आकर्षक होता है. चावल के आटे से चांद, सूरज, पेड़ आदि बनाया जाता है. इस व्रत से लोककला भी जुड़ी हुई हैं. कथा, लोक चित्र और लोक गायन तीनों परंपराएं एक दूसरे से जुड़े हैं, जो करवा चौथ में निभाये जाते हैं.
शास्त्रीय गायिका पूनम श्रीवास्तव बताती हैं कि आज की आधुनिकता के बीच बहुत से परिवारों में अपनी परम्पराएं जीवित हैं. बहुत से घरों में महिलाएं विवाह के समय की साड़ी या लहंगा पहन कर पूजा करती हैं. नये चावल की खीर बनती हैं, उसमें गुड़ डाला जाता है. जिसे बखीर बोला जाता है. पहले दीवार पर गोबर या पिसे चावल से अल्पना बनाई जाती थी. आधुनिकता में अगर परंपरा जीवित रहे तो यह अच्छी बात है.