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कारगिल विजय दिवस: कैप्टन मनोज पांडेय के अदम्य साहस को सलाम, सिर पर गोली खाकर फहरायी थी विजय पताका

कारगिल युद्ध (KARGIL WAR 1999) में देश के लिए अपनी सांसों को कुर्बान करने वाले कैप्टन मनोज पांडेय को मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया. आज कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) पर उनके सौर व पराक्रम की गाथा हम सभी को गर्व की अनुभूत कराती है. कैप्टन मनोज पांडेय का व्यक्तित्व, उनके सपने और कैसा था कारगिल का उनका संघर्ष. आइये जानते हैं उनके पिता गोपीचंद पांडेय की जुबानी.

कारगिल विजय दिवस विशेष
कारगिल विजय दिवस विशेष
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Published : Jul 26, 2021, 5:06 AM IST

लखनऊ: 22 साल पहले 26 जुलाई 1999 की वह तारीख जो हमारे देशवासियों को अपनी बहादुर सेना पर गर्व कराती है. इसी दिन हमारे देश के रणबांकुरों ने दुश्मन सेना को धूल चटाते हुए कारगिल में भारत का झंडा बुलंद कर दिया था. इस लड़ाई की शुरुआत तब हुई थी, जब पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर घुसपैठ करके अपने ठिकाने बना लिए थे. करगिल युद्ध के दौरान कई भारतीय जांबाजों ने अपनी कुर्बानी दी, जिसकी वजह से भारत दोबारा अपने उस हिस्से पर नियंत्रण कर पाया, जहां पाकिस्तानी घुसपैठियों ने चुपके से कब्जा कर लिया था. इन्हीं में से एक नाम था कैप्टन मनोज पांडेय का. वह कारगिल वॉर (KARGIL WAR 1999) के ऐसे हीरो थे, जिनके बलिदान से इस युद्ध की इबारत लिखी गई थी.

लखनऊ के अमर शहीद कैप्टन मनोज पांडेय की अलग ही कहानी है. अपनी वीरता से उन्होंने दुश्मन सेना के छक्के छुड़ा दिए. दुश्मन देश भी परमवीर चक्र विजेता (मरणोपरांत) मनोज पांडेय की वीरता के आगे नतमस्तक हो गया. कैप्टन मनोज पांडेय ने देश की रक्षा में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. 26 जुलाई को देश कारगिल विजय के उपलक्ष में कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) मनाता है. देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडेय के पिता गोपीचंद पांडेय ने 'ईटीवी भारत' से एक्सक्लूसिव बातचीत की. उन्होंने कैप्टन मनोज के बारे में अपनी यादें साझा कीं.

संवाददाता की बातचीत.

सैनिक स्कूल से सेना में जाने का जागा जज्बा

परमवीर चक्र विजेता शहीद मनोज कुमार पांडेय के पिता गोपीचन्द्र पांडेय बताते हैं कि मनोज की पूरी पढ़ाई लिखाई राजधानी लखनऊ में हुई थी. बचपन से ही मनोज का खास व्यक्तित्व था. उनका सेना में जाने का मन उस वक्त बना जब उनका तत्कालीन यूपी सैनिक स्कूल में दाखिला हुआ. अब ये सैनिक स्कूल कैप्टन मनोज पांडेय सैनिक स्कूल के नाम से जाना जाता है. वहां, पर उन्होंने अपना शिक्षण कार्य शुरू किया तो मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्हें प्रेरणा मिली. फिर, उन्होंने सेना में जाने का अपना पूरा मन बनाया. उस समय बनारस में 67 बच्चों का इंटरव्यू हुआ था. यह विधि का विधान है कि मनोज अकेले उन 67 बच्चों में पास हुए. उसी समय सेना के अधिकारियों ने उनसे पूछा कि सेना में क्यों भर्ती होना चाह रहे हो ? मनोज ने अधिकारियों को सेना में जाने का उद्देश्य बताया था. कहा- उनका उद्देश्य परमवीर चक्र पाना है. इसीलिए भर्ती होने के लिए आया हूं.

इसे भी पढ़ें-लखनऊ: कारगिल विजय में क्या थी आर्टिलरी की भूमिका, जानिए मेजर आशीष चतुर्वेदी से

चारो बंकर अपने दम पर मनोज ने कर दिए थे तबाह

हां, यह सत्य है. 5 मई 1999 से कारगिल युद्ध में मनोज शामिल हुए. दो माह बराबर लड़ाई करने के बाद एक हफ्ते पहले उनको टारगेट दिया गया था कि खालूबार चोटी जो 7 किलोमीटर लंबी है उस पर 47 पाकिस्तानी कब्जा जमाए बैठे हुए हैं, जिनसे हमारी सेना को बहुत नुकसान पहुंचा है. जो भी सैनिक दिन में निकलता था उसको वह मार गिराते थे. यह सेना के सामने बड़ा अहम सवाल था. ऊपर जाकर 18000 फुट की ऊंचाई पर उन पाकिस्तानियों से टक्कर लेना आसान नहीं था. उस मुश्किल कार्य को मनोज ने करने का बीड़ा उठाया.

उस समय मनोज पांडेय से अधिकारियों ने कहा कि मनोज तुम दो महीने से लगातार लड़ रहे हो. कुछ वक्त के लिए तुम आराम कर लो. ये बात सुनकर मनोज अपने अधिकारी से भिड़ गए. उन्होंने कहा कि मुझमें क्या कमी है ? मैं ही इस मुहिम को फतह करूंगा. उन्होंने अपने पूरे साहस का परिचय दिया. दो जुलाई की रात भर उन्होंने चढ़ाई की और सुबह पहला बंकर नष्ट किया. दूसरा बंकर सुबह 9 बजे नष्ट किया. तीसरा बंकर 11 बजे नष्ट कर दिया. तीसरे बंकर को नष्ट करते समय ही ऊपर चौथे बंकर से उन पर गोली चलाई गई, जो सीधे उनके सिर में लगी. जान की परवाह न करते हुए मनोज ने जवानों को ललकारते हुए चौथे बंकर पर खून से लथपथ होते हुए भी कब्जा कर नष्ट कर दिया.

इसे भी पढ़ें-कारगिल विजय दिवस : शहीद की वीरांगना को सलाम, बेटे को भी फौज में भेजा

पिता गोपीचन्द्र पांडेय बताते हैं कि मनोज के पास कारतूस नहीं बचे थे, एक ग्रेनाइड बचा था. उसको चौथे बंकर में दाग दिया. उनके पास एक खुखरी थी. खुखरी से पाकिस्तानियों का गला काट कर फिर चौथे बंकर से बाहर आए और कारगिल पर जीत दर्ज की. गोली लगने से घायल होने के चलते खून ज्यादा निकल गया था. कारगिल फतह कर वो फिर उठ नहीं पाए और वीरगति को प्राप्त हुए.

वीरगति को प्राप्त होने से पहले मां से लिया था आशीर्वाद

पिता गोपीचन्द्र पांडेय बताते हैं कि 25 जून को मनोज का एक फोन आया था उस समय वो कारगिल ऑपरेशन में ही थे. उन्होंने अपनी मां से आखिरी बार बात की थी. कहा था कि मां आप टीवी पर देख रही होंगी. यहां के हालात बिल्कुल ठीक नहीं हैं, लेकिन मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने मकसद में कामयाब हो जाऊं और फोन काट दिया. पिता गोपाचंद को शहीद बेटे कैप्टन मनोज पांडेय पर गर्व है. हालांकि, उनके न रहने से पिता को अपार कष्ट है. उनका कहना है कि वह पूरे देश के बेटे थे, पूरे समाज के बेटे थे. उन्होंने मेरे पुत्र होने का और पूरे देश के पुत्र होने का फर्ज निभाया और अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया.

इसे भी पढ़ें-विजय दिवस : सेना ने कारगिल तक 400 किलोमीटर की बाइक रैली निकाली

पिता कहते हैं कि मुझे इस बात की खुशी है कि मनोज जिस उद्देश्य के लिए सेना में गए थे, वह मकसद उनका पूरा हुआ. दुख इस बात का है कि, वह अगर जीवित होते तो कुछ और बात होती. आज वह हमारे बीच में नहीं हैं, इसलिए उनकी इस बहादुरी पर मुझे भी गर्व है और पूरे भारतवर्ष को गर्व है, लेकिन उनके न होने पर मुझे अत्यंत कष्ट भी है, क्योंकि हमारा परिवार उनकी वजह से बिखर गया. हालांकि शहीद कैप्टन के परिवार को सरकार से कोई शिकायत नहीं है.

लखनऊ: 22 साल पहले 26 जुलाई 1999 की वह तारीख जो हमारे देशवासियों को अपनी बहादुर सेना पर गर्व कराती है. इसी दिन हमारे देश के रणबांकुरों ने दुश्मन सेना को धूल चटाते हुए कारगिल में भारत का झंडा बुलंद कर दिया था. इस लड़ाई की शुरुआत तब हुई थी, जब पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर घुसपैठ करके अपने ठिकाने बना लिए थे. करगिल युद्ध के दौरान कई भारतीय जांबाजों ने अपनी कुर्बानी दी, जिसकी वजह से भारत दोबारा अपने उस हिस्से पर नियंत्रण कर पाया, जहां पाकिस्तानी घुसपैठियों ने चुपके से कब्जा कर लिया था. इन्हीं में से एक नाम था कैप्टन मनोज पांडेय का. वह कारगिल वॉर (KARGIL WAR 1999) के ऐसे हीरो थे, जिनके बलिदान से इस युद्ध की इबारत लिखी गई थी.

लखनऊ के अमर शहीद कैप्टन मनोज पांडेय की अलग ही कहानी है. अपनी वीरता से उन्होंने दुश्मन सेना के छक्के छुड़ा दिए. दुश्मन देश भी परमवीर चक्र विजेता (मरणोपरांत) मनोज पांडेय की वीरता के आगे नतमस्तक हो गया. कैप्टन मनोज पांडेय ने देश की रक्षा में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. 26 जुलाई को देश कारगिल विजय के उपलक्ष में कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) मनाता है. देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडेय के पिता गोपीचंद पांडेय ने 'ईटीवी भारत' से एक्सक्लूसिव बातचीत की. उन्होंने कैप्टन मनोज के बारे में अपनी यादें साझा कीं.

संवाददाता की बातचीत.

सैनिक स्कूल से सेना में जाने का जागा जज्बा

परमवीर चक्र विजेता शहीद मनोज कुमार पांडेय के पिता गोपीचन्द्र पांडेय बताते हैं कि मनोज की पूरी पढ़ाई लिखाई राजधानी लखनऊ में हुई थी. बचपन से ही मनोज का खास व्यक्तित्व था. उनका सेना में जाने का मन उस वक्त बना जब उनका तत्कालीन यूपी सैनिक स्कूल में दाखिला हुआ. अब ये सैनिक स्कूल कैप्टन मनोज पांडेय सैनिक स्कूल के नाम से जाना जाता है. वहां, पर उन्होंने अपना शिक्षण कार्य शुरू किया तो मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्हें प्रेरणा मिली. फिर, उन्होंने सेना में जाने का अपना पूरा मन बनाया. उस समय बनारस में 67 बच्चों का इंटरव्यू हुआ था. यह विधि का विधान है कि मनोज अकेले उन 67 बच्चों में पास हुए. उसी समय सेना के अधिकारियों ने उनसे पूछा कि सेना में क्यों भर्ती होना चाह रहे हो ? मनोज ने अधिकारियों को सेना में जाने का उद्देश्य बताया था. कहा- उनका उद्देश्य परमवीर चक्र पाना है. इसीलिए भर्ती होने के लिए आया हूं.

इसे भी पढ़ें-लखनऊ: कारगिल विजय में क्या थी आर्टिलरी की भूमिका, जानिए मेजर आशीष चतुर्वेदी से

चारो बंकर अपने दम पर मनोज ने कर दिए थे तबाह

हां, यह सत्य है. 5 मई 1999 से कारगिल युद्ध में मनोज शामिल हुए. दो माह बराबर लड़ाई करने के बाद एक हफ्ते पहले उनको टारगेट दिया गया था कि खालूबार चोटी जो 7 किलोमीटर लंबी है उस पर 47 पाकिस्तानी कब्जा जमाए बैठे हुए हैं, जिनसे हमारी सेना को बहुत नुकसान पहुंचा है. जो भी सैनिक दिन में निकलता था उसको वह मार गिराते थे. यह सेना के सामने बड़ा अहम सवाल था. ऊपर जाकर 18000 फुट की ऊंचाई पर उन पाकिस्तानियों से टक्कर लेना आसान नहीं था. उस मुश्किल कार्य को मनोज ने करने का बीड़ा उठाया.

उस समय मनोज पांडेय से अधिकारियों ने कहा कि मनोज तुम दो महीने से लगातार लड़ रहे हो. कुछ वक्त के लिए तुम आराम कर लो. ये बात सुनकर मनोज अपने अधिकारी से भिड़ गए. उन्होंने कहा कि मुझमें क्या कमी है ? मैं ही इस मुहिम को फतह करूंगा. उन्होंने अपने पूरे साहस का परिचय दिया. दो जुलाई की रात भर उन्होंने चढ़ाई की और सुबह पहला बंकर नष्ट किया. दूसरा बंकर सुबह 9 बजे नष्ट किया. तीसरा बंकर 11 बजे नष्ट कर दिया. तीसरे बंकर को नष्ट करते समय ही ऊपर चौथे बंकर से उन पर गोली चलाई गई, जो सीधे उनके सिर में लगी. जान की परवाह न करते हुए मनोज ने जवानों को ललकारते हुए चौथे बंकर पर खून से लथपथ होते हुए भी कब्जा कर नष्ट कर दिया.

इसे भी पढ़ें-कारगिल विजय दिवस : शहीद की वीरांगना को सलाम, बेटे को भी फौज में भेजा

पिता गोपीचन्द्र पांडेय बताते हैं कि मनोज के पास कारतूस नहीं बचे थे, एक ग्रेनाइड बचा था. उसको चौथे बंकर में दाग दिया. उनके पास एक खुखरी थी. खुखरी से पाकिस्तानियों का गला काट कर फिर चौथे बंकर से बाहर आए और कारगिल पर जीत दर्ज की. गोली लगने से घायल होने के चलते खून ज्यादा निकल गया था. कारगिल फतह कर वो फिर उठ नहीं पाए और वीरगति को प्राप्त हुए.

वीरगति को प्राप्त होने से पहले मां से लिया था आशीर्वाद

पिता गोपीचन्द्र पांडेय बताते हैं कि 25 जून को मनोज का एक फोन आया था उस समय वो कारगिल ऑपरेशन में ही थे. उन्होंने अपनी मां से आखिरी बार बात की थी. कहा था कि मां आप टीवी पर देख रही होंगी. यहां के हालात बिल्कुल ठीक नहीं हैं, लेकिन मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने मकसद में कामयाब हो जाऊं और फोन काट दिया. पिता गोपाचंद को शहीद बेटे कैप्टन मनोज पांडेय पर गर्व है. हालांकि, उनके न रहने से पिता को अपार कष्ट है. उनका कहना है कि वह पूरे देश के बेटे थे, पूरे समाज के बेटे थे. उन्होंने मेरे पुत्र होने का और पूरे देश के पुत्र होने का फर्ज निभाया और अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया.

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पिता कहते हैं कि मुझे इस बात की खुशी है कि मनोज जिस उद्देश्य के लिए सेना में गए थे, वह मकसद उनका पूरा हुआ. दुख इस बात का है कि, वह अगर जीवित होते तो कुछ और बात होती. आज वह हमारे बीच में नहीं हैं, इसलिए उनकी इस बहादुरी पर मुझे भी गर्व है और पूरे भारतवर्ष को गर्व है, लेकिन उनके न होने पर मुझे अत्यंत कष्ट भी है, क्योंकि हमारा परिवार उनकी वजह से बिखर गया. हालांकि शहीद कैप्टन के परिवार को सरकार से कोई शिकायत नहीं है.

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