लखनऊ: दिवाली के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को चित्रगुप्त पूजा की जाती है. पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार चित्रगुप्त यमराज के लेखपाल माने गए हैं. जो मनुष्य के जीवन का लेखा-जोखा रखते हैं. कायस्थ समाज में यह पूजा बड़े श्रद्धा भाव से मनाई जाती है. व्यापारियों में भी इस पूजा की विशेष महत्ता है.
कलम-दवात की होती है पूजा
कायस्थ समाज में कलम-दवात की पूजा का विशेष महत्व है. ज्योतिषी साधना लमगोरा बताती हैं कि दिवाली के दिन कलम पूजा में रख दी जाती है और चित्रगुप्त पूजा के दिन उसकी पूजा कर फिर से लिखने का काम शुरू किया जाता है. सबसे एक सफेद कागज पर श्री गणेशाय: नम: या राम-राम या अपने ईष्ट को प्रणाम करते हुए लिखते है. यह प्रार्थना भी करते हैं कि उनके काम में कोई त्रुटि न हो. पूजा के बाद ही कलम से फिर कुछ और लिखा जाता है. उन्होंने बताया कि व्यापारी इसी दिन से नए खाते की शुरूआत करते हैं.
कायस्थ समाज ही क्यों करता है चित्रगुप्त की पूजा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के रचानाकार ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त जी को उत्पन्न किया था. उनकी काया से उत्पन्न होने के कारण चित्रगुप्त जी कायस्थ भी कहे जाते हैं. उनका विवाह यमी से हुआ. इस वजह से वे यम के बहनोई भी कहे जाते हैं. पुराणों में उल्लेख है कि यम और यमी सूर्य देव की जुड़वा संतान हैं. साथ ही यह भी कहा जाता है कि यमी ही बाद में यमुना के स्वरुप में पृथ्वी पर आ गईं.