लखनऊ: लोग देश में आज स्वतंत्रता दिवस की 72वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. देश की आजादी के लिए यूं तो बहुत सी अहम लड़ाइयां लड़ी गई हैं, जिसमें से एक 'काकोरी' कांड भी है. इस कांड के बाद अंग्रेजों को यह एहसास तो हो गया था कि अब उनके शासनकाल का अंत होने वाला है.
- यूं तो भारत देश की आजादी के लिए बहुत से संगठनों द्वारा आंदोलन चलाए जा रहे थे.
- उनमें से एक संगठन था, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की कमर तोड़ दी.
- उस संगठन का नाम 'एच आर ए' यानी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन था.
- भारत के क्रांतिकारियों ने इस संगठन को बनाया था, जिसे चलाने के लिए बहुत से धन की आवश्यकता भी होती थी.
- अंग्रेजी हुकूमत की नजरें गिद्ध की तरह इस संगठन पर बनी हुई थीं.
धन के अभाव की वजह से देश की आजादी के क्रांतिकारी आंदोलन को गति नहीं मिल पा रही थी, जिसे गति प्रदान करने के लिए क्रांतिकारियों ने एक योजना बनाई कि वे अब सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत का खजाना ही लूटेंगे और उसका इस्तेमाल उन्हीं के खिलाफ करेंगे. 8 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की अध्यक्षता में एक मीटिंग के दौरान सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई गई.
चकमा देकर भाग निकले थे चंद्रशेखर आजाद
9 अगस्त 1925 को सहारनपुर से आने वाली सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर को काकोरी रेलवे स्टेशन से महज कुछ दूरी पर चेन खींचकर रोका गया, जिसके बाद क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी खजाने को लूटा. लूट के सामान को लेकर जाते वक्त एक चादर गलती से वहीं पर छूट गया, जिसको अंग्रेज एक साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल कर सभी क्रांतिकारियों तक पहुंचे, लेकिन बहरूपिया कहे जाने वाले चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों को चकमा देने में एक बार फिर से कामयाब हुए.