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स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: 102 साल के ये हैं जंग-ए-आजादी के गवाह, संभाली थी सत्याग्रह की कमान - यूपी न्यूज

देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाने वाले 102 वर्ष के शिव नारायण ने ईटीवी भारत से साझा की उस दौर की कुछ यादें.

शिव नारायण ने सुनाई आजादी की कहानी.
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Published : Aug 14, 2019, 11:43 PM IST

लखनऊ: देश को आजाद कराने में न जाने कितने देशप्रेमी शहीद हो गए और न जाने कितने सलाखों में कैद कर दिए गए. इन सब के बावजूद इनका स्वराज्य का जज्बा कम नहीं हुआ. जंग ए आजादी की यादों को समेटे 102 साल के शिवनारायण लाल गुप्ता आजादी की चर्चा होते ही भावुक हो जाते हैं. उम्र अधिक हो जाने से अब भले ही शरीर ने साथ छोड़ दिया हो, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब ये शेर दहाड़ा तो अंग्रेजों का पूरा सम्राज्य हिल गया.

शिव नारायण ने साझा की उस दौर की यादें-
मूल रूप से बहराइच के रहने वाले 102 साल के शिव नारायण लाल गुप्ता इस समय लखनऊ के रिवर बैंक कॉलोनी स्थित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सदन में रहते हैं. उम्र के इस पड़ाव में वो आज भी देश की आजादी की चर्चा होते ही भावुक हो जाते हैं.

शिव नारायण ने सुनाई आजादी की कहानी.

शिव नारायण पुराने दिनों को याद कर कहते हैं कि जब जेल की सलाखों में वह बंद रहते थे और उनके माता पिता कों से मिलने आते थे तो सिर्फ रोने के सिवा कुछ नहीं समझ में आता था. आजादी की लड़ाई में वो इस कदर वह खो गए कि फिर उन्होंने विवाह करना भी ठीक नहीं समझा और देश की आजादी में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी.

खूब खाईं अंग्रेजों की लाठियां-
1917 में जन्में शिव नारायण लाल गुप्ता कम उम्र में ही आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए. देश भक्ति से ओत-प्रोत रहने के कारण उन्होंने अंग्रेजों की खूब लाठियां भी खाईं और कई बार जेल भी गए. उन पर देशभक्ति रंग ऐसा चढ़ा कि उन्होंने विवाह भी नहीं किया.

महात्मा गांधी की गिरफ्तारी से आहत हुए थे शिव नारायण-
1930 में जब वो 14 वर्ष के थे और उसी साल देश की आजादी को लेकर महात्मा गांधी की गिरफ्तारी हुई तो शिव नारायण लाल गुप्ता भी इस आंदोलन में शामिल हो गए. बहराइच में हो रहे इस आंदोलन और सत्याग्रह का जिम्मा उन्होंने ही संभाला और आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने का काम किया.

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई बार गए जेल-
उन्होंने हड़ताल की और इससे बौखला कर अंग्रेजों ने न सिर्फ उन पर बर्बरता पूर्वक लाठीचार्ज किया बल्कि जेल में भी डाल दिया. उन्होंने अविवाहित रहकर ही देश की सेवा करने की परंपरा बना ली थी. 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने हुजूरपुर में अंग्रेज अधिकारियों का खूब विरोध भी किया. जिससे गुस्साए अफसरों ने उन्हें फिर जेल में डाल दिया था.

उम्र के इस पड़ाव में शरीर ने छोड़ा साथ-
102 साल के हो चुके शिव नारायण लाल गुप्ता इस समय बीमार है और उन्हें बहुत कुछ याद नहीं रहता याददाश्त कमजोर होने की वजह से वह पुरानी स्मृतियों को बता नहीं पाते और अब उन्हें सुनाई भी काफी कम देता है. फिर भी स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है तो वो भावुक हो जाते हैं.

शिव नारायण लाल गुप्ता के सहायक के रूप में उनकी सेवा कर रहे राजकिशोर कहते हैं कि नाना बहुत कम खाते पीते हैं. वो सब्जी, तेल-मसाला तो बिल्कुल भी नहीं खाते, सिर्फ दूध और रोटी व फल का सेवन कर रहे हैं और उन्हें अब कुछ सुनाई भी तेजी से पड़ता है. उम्र के साथ-साथ याददाश्त भी काफी कमजोर हो गई है.

लखनऊ: देश को आजाद कराने में न जाने कितने देशप्रेमी शहीद हो गए और न जाने कितने सलाखों में कैद कर दिए गए. इन सब के बावजूद इनका स्वराज्य का जज्बा कम नहीं हुआ. जंग ए आजादी की यादों को समेटे 102 साल के शिवनारायण लाल गुप्ता आजादी की चर्चा होते ही भावुक हो जाते हैं. उम्र अधिक हो जाने से अब भले ही शरीर ने साथ छोड़ दिया हो, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब ये शेर दहाड़ा तो अंग्रेजों का पूरा सम्राज्य हिल गया.

शिव नारायण ने साझा की उस दौर की यादें-
मूल रूप से बहराइच के रहने वाले 102 साल के शिव नारायण लाल गुप्ता इस समय लखनऊ के रिवर बैंक कॉलोनी स्थित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सदन में रहते हैं. उम्र के इस पड़ाव में वो आज भी देश की आजादी की चर्चा होते ही भावुक हो जाते हैं.

शिव नारायण ने सुनाई आजादी की कहानी.

शिव नारायण पुराने दिनों को याद कर कहते हैं कि जब जेल की सलाखों में वह बंद रहते थे और उनके माता पिता कों से मिलने आते थे तो सिर्फ रोने के सिवा कुछ नहीं समझ में आता था. आजादी की लड़ाई में वो इस कदर वह खो गए कि फिर उन्होंने विवाह करना भी ठीक नहीं समझा और देश की आजादी में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी.

खूब खाईं अंग्रेजों की लाठियां-
1917 में जन्में शिव नारायण लाल गुप्ता कम उम्र में ही आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए. देश भक्ति से ओत-प्रोत रहने के कारण उन्होंने अंग्रेजों की खूब लाठियां भी खाईं और कई बार जेल भी गए. उन पर देशभक्ति रंग ऐसा चढ़ा कि उन्होंने विवाह भी नहीं किया.

महात्मा गांधी की गिरफ्तारी से आहत हुए थे शिव नारायण-
1930 में जब वो 14 वर्ष के थे और उसी साल देश की आजादी को लेकर महात्मा गांधी की गिरफ्तारी हुई तो शिव नारायण लाल गुप्ता भी इस आंदोलन में शामिल हो गए. बहराइच में हो रहे इस आंदोलन और सत्याग्रह का जिम्मा उन्होंने ही संभाला और आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने का काम किया.

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई बार गए जेल-
उन्होंने हड़ताल की और इससे बौखला कर अंग्रेजों ने न सिर्फ उन पर बर्बरता पूर्वक लाठीचार्ज किया बल्कि जेल में भी डाल दिया. उन्होंने अविवाहित रहकर ही देश की सेवा करने की परंपरा बना ली थी. 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने हुजूरपुर में अंग्रेज अधिकारियों का खूब विरोध भी किया. जिससे गुस्साए अफसरों ने उन्हें फिर जेल में डाल दिया था.

उम्र के इस पड़ाव में शरीर ने छोड़ा साथ-
102 साल के हो चुके शिव नारायण लाल गुप्ता इस समय बीमार है और उन्हें बहुत कुछ याद नहीं रहता याददाश्त कमजोर होने की वजह से वह पुरानी स्मृतियों को बता नहीं पाते और अब उन्हें सुनाई भी काफी कम देता है. फिर भी स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है तो वो भावुक हो जाते हैं.

शिव नारायण लाल गुप्ता के सहायक के रूप में उनकी सेवा कर रहे राजकिशोर कहते हैं कि नाना बहुत कम खाते पीते हैं. वो सब्जी, तेल-मसाला तो बिल्कुल भी नहीं खाते, सिर्फ दूध और रोटी व फल का सेवन कर रहे हैं और उन्हें अब कुछ सुनाई भी तेजी से पड़ता है. उम्र के साथ-साथ याददाश्त भी काफी कमजोर हो गई है.

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लखनऊ। देश को आजाद कराने में काफी संख्या में लोगों ने अपना बलिदान दिया तो काफी संख्या में लोग जेलों की सलाखों में बंद कर दिए गए थे अंग्रेजों की यात्राएं सही और सलाखों में रहने के बावजूद देशभक्ति का जज्बा कम नहीं हुआ जंग ए आजादी की यादों को समेटे 102 साल के शिवनारायण लाल गुप्ता आजादी की चर्चा होते ही भावुक हो जाते हैं उम्र अधिक हो जाने के कारण याददाश्त भी कमजोर हो गई है और सुनने में भी काफी समस्या होती है तेज स्वर में ही वह कुछ सुनते हैं लेकिन याददाश्त कमजोर होने की वजह से वह बहुत कुछ आजादी की कहानी के बारे में बता नहीं पाते।



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मूल रूप से बहराइच के रहने वाले 102 साल के शिव नारायण लाल गुप्ता इस समय लखनऊ के रिवर बैंक कॉलोनी स्थित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सदन में रह रहे हैं वह इस समय बीमार भी है लेकिन जब भी देश की आजादी की चर्चा होती है वह भावुक हो जाते हैं और पुराने दिनों को याद करते हैं कहते हैं कि जब जेल की सलाखों में वह बंद रहते थे और उनके माता पिता कों से मिलने आते थे तो सिर्फ रोने के सिवा कुछ नहीं समझ में आता था आजादी की लड़ाई में इस कदर वह खो गए कि फिर उन्होंने विवाह करना भी ठीक नहीं समझा और सिर्फ और सिर्फ देश की आजादी में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी।



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राजकिशोर, सहायक
शिव नारायण लाल गुप्ता के सहायक के रूप में उनकी सेवा कर रहे राजकिशोर कहते हैं कि ना ना बहुत कम खाते पीते हैं और सब्जी तेल मसाला तो बिल्कुल भी नहीं खाते सिर्फ दूध और रोटी व फल का सेवन कर रहे हैं और उन्हें अब कुछ सुनाई भी तेजी से पड़ता है याददाश्त भी काफी कमजोर हो गई है।




Conclusion:1917 में पैदा हुए शिव नारायण लाल गुप्ता जब महज 14 साल के थे तो आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए देश भक्ति से ओतप्रोत रहने के कारण वह अंग्रेज हो की खूब लाठियां भी खाई और जेल की सलाखों में भी रहने का उन्हें खूब मौका मिला जेल में काफी समय व्यतीत करने की वजह से उन्होंने विवाह भी नहीं किया उनके परिजन बताते हैं कि 1930 में जब हुआ 14 वर्ष के थे और उसी साल देश की आजादी को लेकर जब महात्मा गांधी की गिरफ्तारी हुई तो पूरे देश में क्रांतिकारियों का संघर्ष देखने को मिला और उसी समय शिव नारायण लाल गुप्ता भी इस आंदोलन में शामिल हो गए बहराइच में हो रहे इस आंदोलन और सत्याग्रह का जिम्मा उन्होंने ही संभाला और आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने का काम किया उन्होंने हड़ताल की और इससे बौखला कर अंग्रेजों ने न सिर्फ उन पर बर्बाद बर्बरता पूर्वक लाठीचार्ज किया बल्कि जेल में भी डाल दिया उन्होंने अविवाहित रहकर ही देश की सेवा करने और संघर्ष करने की परंपरा बना ली 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने हुजूरपुर में अंग्रेज अधिकारियों का खूब विरोध भी किया जिससे गुस्साए अफसरों ने उन्हें फिर जेल में डाल दिया था।
102 साल के हो चुके शिव नारायण लाल गुप्ता इस समय बीमार है और उन्हें बहुत कुछ याद नहीं रहता याददाश्त कमजोर होने की वजह से वह पुरानी स्मृतियों को बता नहीं पाते और अब उन्हें सुनाई भी काफी कम देता है कमर में हड्डी की वजह से उन्हें काफी दिक्कत होती है फिर भी वह जब भी देश के बारे में आजादी के बारे में चर्चा होती है तो खो जाते हैं और कहते हैं कि वह दिन ही कुछ और थे उस समय जो पीड़ा हुई उसके सामने यह पीड़ा कुछ भी नहीं है।
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शिवनारायण लाल गुप्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
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