लखनऊ: गोमती नगर स्थित जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय केंद्र के संचालन में जांच का अड़ंगा लगा हुआ है. अफसरों की लापरवाही की वजह से शासन द्वारा बिना डीपीआर फाइनल किए 100 करोड़ रुपये खर्च करने के मामले में जांच लंबित है. ऐसी स्थिति में इस अंतरराष्ट्रीय केंद्र का संचालन शुरू करने का फैसला नहीं हो पा रहा है.
अखिलेश यादव सरकार में शुरू हुआ था काम
अखिलेश यादव सरकार में करीब 800 करोड़ रुपये की लागत से इसे बनवाने का काम शुरू हुआ था, लेकिन इसके काम में अफसरों ने हीलाहवाली की और समय से काम पूरा नहीं हो सका. प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तो इसकी जांच कराई गई और जांच में प्रथम दृष्टया यह सामने आया था कि सरकार बदलने के बाद भी अधिकारियों ने करीब 100 करोड़ से अधिक का खर्च इस प्रोजेक्ट पर बिना डीपीआर के करा दिया.
अफसरों ने जेपी सेंटर बेचने का फैसला किया तो सरकार ने लगाई रोक
यही नहीं अधिकारियों ने इसे बेचने का भी प्रस्ताव बना दिया, जिसे शासन स्तर पर बाद में रोक दिया गया था. अधिकारियों का कहना है कि जांच पूरी होने के बाद ही इसके संचालन को लेकर फैसला किया जाएगा. हालांकि इसके शुरू करने में भी अभी करीब सवा सौ करोड़ रुपये की जरूरत है. यही नहीं अब राज्य सरकार ने इसके लिए बजट भी नहीं दिया. ऐसी स्थिति में इसका संचालन अधर में लटका हुआ है. शासन स्तर पर पिछले दिनों हुई बैठक में इसको लेकर चर्चा हुई तो यह सहमति बनी कि यह अंतरराष्ट्रीय केंद्र में शुरू कराया जाए.
सीएम स्तर पर होगा फैसला
यह बात भी सामने आई कि यह जैसा भी है उसी हालत में किसी संस्थान को देकर इसे शुरू कराया जाए. हालांकि अभी इस पर कोई फैसला नहीं हो सका है. बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्तर पर इसके संचालन या फिर इसे शुरू करने में होने वाले कुछ काम के लिए बजट आदि जारी करने के बारे में फैसला शासन स्तर पर होगा.
शासन की मंजूरी के बिना काम करने पर कार्रवाई ठंडे बस्ते में
इसके अलावा इसके संचालन का फैसला न होने की वजह से यह अभी फिलहाल 800 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद शोपीस बनकर खड़ा हुआ है. अफसरों की लापरवाही पर भी शासन स्तर पर जांच कराई गई, लेकिन कार्यवाही ठंडे बस्ते में है. एलडीए उपाध्यक्ष अभिषेक प्रकाश ने मुख्य अभियंता को इसके कुछ मरम्मत के काम भी शुरू कराने की बात कही है. वहीं शासन की संस्तुति के बिना शुरू कराए गए 100 करोड़ रुपये के काम कराने के मामले में भी जांच के बाद कार्रवाई की बात अधिकारी कर रहे हैं. देखने वाली बात यह होगी कि योगी सरकार अखिलेश यादव सरकार के इस महत्वपूर्ण कामकाज को लेकर आगे किस प्रकार से अपना रुख स्पष्ट करती है.