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AIMPLB की बैठक से मुख्य पक्षकार इकबाल अंसारी ने किया किनारा - सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड

रविवार हुई मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में बोर्ड के 51 सदस्यों में से लगभग 35-40 लोग शामिल हुए. लेकिन बाबरी मस्जिद मुकदमे के मुख्य पक्षकार हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी ने बैठक से किनारा कर लिया.

इकबाल अंसारी (फाइल फोटो).
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Published : Nov 17, 2019, 7:58 PM IST

लखनऊ: बाबरी मस्जिद मुकदमे के मुख्य पक्षकार हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी समेत कई सदस्यों ने बैठक से किनारा किया.

उन्होंने कहा कि सदियों से चल रहे आ रहे अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो फैसला आया, उसका देश भर के लोगों ने स्वागत किया. मुस्लिम पक्ष भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संतुष्ट है. हालांकि बोर्ड के ज्यादातर सदस्यों ने माना कि पुनर्विचार याचिका दायर की जाए, जिसके बाद बैठक में याचिका दाखिल करने का फैसला लिया गया.

ये भी पढ़ें- http://अयोध्या फैसला : AIMPLB दाखिल करेगा पुनर्विचार याचिका, मस्जिद के लिए दूसरी जगह मंजूर नहीं


बता दें कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की रविवार को लखनऊ में बैठक आयोजित हुई. बैठक की अध्यक्षता बोर्ड के अध्यक्ष हजरत मौलाना सैयद मोहम्मद राबे हसनी नदवी ने की. बैठक के बाद बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के सह संयोजक कासिम रसूल इलियास ने बोर्ड बैठक में सर्वसम्मति से लिए गए फैसले को पढ़कर सुनाया.

लखनऊ: बाबरी मस्जिद मुकदमे के मुख्य पक्षकार हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी समेत कई सदस्यों ने बैठक से किनारा किया.

उन्होंने कहा कि सदियों से चल रहे आ रहे अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो फैसला आया, उसका देश भर के लोगों ने स्वागत किया. मुस्लिम पक्ष भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संतुष्ट है. हालांकि बोर्ड के ज्यादातर सदस्यों ने माना कि पुनर्विचार याचिका दायर की जाए, जिसके बाद बैठक में याचिका दाखिल करने का फैसला लिया गया.

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बता दें कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की रविवार को लखनऊ में बैठक आयोजित हुई. बैठक की अध्यक्षता बोर्ड के अध्यक्ष हजरत मौलाना सैयद मोहम्मद राबे हसनी नदवी ने की. बैठक के बाद बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के सह संयोजक कासिम रसूल इलियास ने बोर्ड बैठक में सर्वसम्मति से लिए गए फैसले को पढ़कर सुनाया.

Intro:लखनऊ . अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को इंसाफ से परे करार देते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ऐलान किया है की बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी की कानूनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में बोर्ड की ओर से लड़ी जाएगी. मुस्लिम पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ने वाले तीन पक्षकार फिलहाल कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर करने के लिए तैयार हैं.


Body:मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की हंगामेदार बैठक रविवार को लखनऊ के मुमताज पीजी कॉलेज में आयोजित की गई बैठक में पर्सनल ला बोर्ड के 51 सदस्यों में से लगभग तीन दर्जन ही शामिल हुए बाबरी मस्जिद मुकदमे के मुख्य पक्षकार हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जुफ़र फारूकी समेत कई सदस्यों ने बैठक से किनारा किया। बैठक की अध्यक्षता बोर्ड के अध्यक्ष हजरत मौलाना सैयद मोहम्मद राबे हसनी नदवी ने की। बैठक के बाद बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के सह संयोजक कासिम रसूल इलियास ने बोर्ड बैठक में सर्वसम्मति से लिए गए फैसले को पढ़कर सुनाया उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले मैचों की विरोधाभासी तथ्यों का उल्लेख किया गया है और निर्णय करते समय मुस्लिम पक्ष के कई तथ्यों की अनदेखी की गई है इसलिए मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड यह मानता है कि सुप्रीम कोर्ट ने इंसाफ करने के बजाए अयोध्या मामले में फैसला सुनाया है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से पुनरीक्षण याचिका दाखिल की जाएगी। पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने मीडिया के सवाल पूछने पर कहा कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ने अखबारों में बयान जारी किया है जिसमें पर्सनल ला बोर्ड के फैसले का सम्मान करने की बात कही है यह अलग बात है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध न करने का ऐलान किया है लेकिन हमें उम्मीद है कि जब बोर्ड ने फैसला कर लिया है तो वह भी हम लोगों के साथ होंगे। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए लगभग एक दर्जन मुस्लिम पक्षकार कोर्ट पहुंचे थे उसमें से तीन पक्षकार मौलाना महफूज उर रहमान मोहम्मद उमर और मिसबाहुद्दीन सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए तैयार हो गए हैं पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का मकसद सुप्रीम कोर्ट के फैसले की उन कमियों को दुरुस्त कर आना है जिनकी वजह से मुसलमानों के साथ इंसाफ नहीं हो सका है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध बिंदु

मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अनुसार 1949 में जब अवैध तरीके से विवादित स्थल पर मूर्ति रखने का माना गया है तो उसे देवता कैसे मान लिया गया।

बाबरी मस्जिद में 1857 से 1949 तक मुसलमानों का कब्जा और नमाज पढ़ा जाना साबित है तो मस्जिद की जमीन किसी दूसरे को कैसे दी जा सकती हैं।

संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत जब मस्जिद की जमीन का बदला या परिवर्तन नहीं हो सकता तो सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद की जमीन के बदले दूसरी जमीन देने का फैसला कैसे किया।

बाइट कासिम रसूल इलियास सदस्य एआईएमपीएलबी

बाइट जफरयाब जिलानी, सदस्य एआईएमपीएलबी


पीटीसी अखिलेश तिवारी


Conclusion:
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