लखनऊ: प्रदेश में बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से संचालित प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों की पड़ताल के लिए ईटीवी भारत ने विशेष अभियान शुरू किया. इस पड़ताल में सरकारी दावों और जमीनी हकीकत में काफी अंतर देखने को मिला. इस अभियान की अंतिम कड़ी में ईटीवी भारत ने बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी से खास बातचीत की.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी ने बताया कि नए सत्र से प्राइमरी स्कूलों में बड़े बदलाव किए जा रहे हैं. सभी शहरी और ग्रामीण इलाकों में चल रहे आंगनबाड़ी केंद्रों को प्राइमरी स्कूलों से जोड़कर प्री-एजुकेशन की शुरुआत हो रही है. स्थानीय इतिहास, स्थानीय संस्कृति और स्थानीय विशेषताओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा. बुनियादी शिक्षा मातृभाषा में दिए जाने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती भी अब स्थानीय आधार पर करने पर मंथन कर रही है. इसमें उसी जनपद, उसी मंडल के आसपास के शिक्षकों को नियुक्त किया जाएगा.
प्रश्न- 1- सरकारी स्कूलों के कायाकल्प को लेकर काफी दावे किए जा रहे हैं? किस तरह की स्थिति आने वाले समय में इन स्कूलों की देखने को मिलेगी?
उत्तर- यूपी में प्राइमरी स्कूलों की तस्वीर बदल गई है. डेढ़ लाख से अधिक विद्यालयों में से लगभग 60 हजार विद्यालयों के भवन की स्थिति 'कायाकल्प योजना' से पूरी तरह से बदल दी गई है. जहां जरूरत है, वहां नए भवन बनाए जा रहे हैं. जहां मरम्मत संभव है, वहां मरम्मत कार्य कराया जा रहा है. विद्यालयों में अच्छी चित्रकारी हो रही है, बाउंड्री बन रही है और विद्युतीकरण की व्यवस्था हो रही है. लगभग 60 हजार विद्यालयों में काम हो चुका है और 20 से 30 हजार विद्यालयों में इस समय तेजी से काम चल रहा है. 80 हजार से ज्यादा विद्यालय को 'कायाकल्प योजना' के अंतर्गत ठीक कराया जा रहा है.
प्रश्न- 2- राजधानी में बेसिक शिक्षा मंत्री के कार्यालय से दो किलोमीटर की दूरी पर प्राथमिक विद्यालय छितवापुर है. यह स्कूल जर्जर घोषित है तब भी यहां बच्चे पढ़ रहे हैं. प्राइमरी स्कूल बरौलिया-2 एक कमरे में चल रहा है. क्या इनके लिए कुछ किया जाएगा?
उत्तर- नगर क्षेत्र में कुछ अलग समस्याएं रही हैं. कई जगहों पर जमीन नहीं है. किराए के भवनों में स्कूल चल रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्र में पंचायत राज विभाग से पैसा मिल गया था तो वहां काम शुरू हो गया. अब नगर विकास विभाग से भी मदद मिल गई है. ऐसे सभी जर्जर स्कूलों की रिपोर्ट बना ली गई है. बजट मिलते ही इनको ध्वस्त कर नए भवनों का निर्माण किया जाएगा.
प्रश्न- 3- शिक्षामित्रों को लेकर विपक्ष सरकार को बार-बार घेरने की कोशिश कर रहा है. शिक्षामित्रों के मुद्दे पर सरकार का क्या रुख है?
उत्तर- यह मुद्दा सिर्फ सपा सरकार की लापरवाही का मुद्दा है. उन्होंने वोट बैंक की राजनीति के लिए शिक्षामित्रों का विनियमितीकरण कर दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, जहां योगी सरकार के फैसलों को सही पाया गया. कोर्ट के आदेश पर अगर इन शिक्षामित्रों को उनके मूल पद पर भेजा जाता तो सिर्फ 3500 रुपये मानदेय मिलता, लेकिन योगी सरकार ने सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाते हुए 10 हजार रुपये मानदेय कर दिया. सरकार शिक्षामित्रों के साथ है. इन्हें मौके भी जिए जा रहे हैं. सीएल, मैटरनिटी लीव जैसी सुविधाएं भी योगी सरकार ने ही उपलब्ध कराई हैं. आगे होने वाली भर्ती प्रक्रिया में इन्हें भरांक की सुविधा दी जा रही है.
प्रश्न- 4- सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की कई समस्याएं हैं. उनका कहना है कि उन्हें गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाता है, इससे पढ़ाई प्रभावित होती है.
उत्तर- यह गलत है. शिक्षकों को किसी भी गैर शैक्षणिक कार्य में नहीं लगाया जाता. चुनाव में चपरासी से लेकर डीएम तक ड्यूटी करते हैं. ऐसे में शिक्षक कहे की वह नहीं करेंगे तो यह गलत होगा. इसी तरह, जनगणना जैसे काम 10 साल में एक बार होते हैं. शिक्षक उसी गांव में पढ़ाते हैं. उनसे अच्छा उस जगह को कोई और नहीं समझ सकता. कोरोना काल जैसी आपदा की स्थिति में अगर स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी अतिरिक्त सेवाएं देने से इनकार करें तो कहां तक सही होगा. हां उनकी एक समस्या थी कि ग्राम पंचायत सचिव, लेखपाल जैसे उनसे निचले पद के लोग स्कूलों का निरीक्षण करते थे. अब इस पर रोक लगा दी गई है. अब मजिस्ट्रेट लेवल का अधिकारी, विभाग के उच्च अधिकारी या जनप्रतिनिधि स्कूलों का निरीक्षण कर सकें.