लखनऊ: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) के मौके पर आज हम राजधानी की उन महिलाओं से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिन्होंने सामाजिक स्तर पर एक नाम कमाया हैं. इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का थीम (International Women's Day 2022 theme) 'जेंडर इक्वलिटी फॉर ए सस्टेनेबल टुमारो' (Gender Equality for a Sustainable Tomorrow) यानी एक स्थाई कल के लिए आज लैंगिक समानता.
महिला दिवस मनाने की पीछे का उद्देश्य है कि महिलाओं को हर वह अधिकार प्रदान किए जाएं, जो सामान्य नागरिक को दिए जाते हैं. इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का रंग पर्पल ग्रीन और सफेद है. पर्पल न्याय और गरिमा का प्रतीक हैं, वहीं, हरा रंग उम्मीद और सफेद रंग शुद्धता व शांति का प्रतीक है.
आयशा पेशे से एक वीडियोग्राफर है. बीते सात सात-आठ साल से वे इसी प्रोफेशन में कार्य कर रही हैं. वे मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि उस समय बहुत ज्यादा कठिन हो जाता है, जब मां-बाप अपने बच्ची को आगे बढ़ाना तो चाहते हैं, लेकिन उनके पास संसाधन नहीं है. साथ ही वे आर्थिक संपन्न भी नहीं है. जिसके चलते कई बार हम महिलाओं को त्याग करना पड़ता है. मेरे साथ भी कुछ ऐसे ही हुआ. आज से 7 साल पहले वीडियोग्राफर के तौर पर कोई महिला लखनऊ में नहीं थी. बहुत ज्यादा सोशल मीडिया का भी चलन नहीं था और मैं मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखती हूं, इसके बावजूद मैंने ऐसी फील्ड चुना. कई बार जब कैमरा लेकर बाहर निकलते थे, तो उस समय लोग घूरते थे. आज के जमाने में ये बात साधारण हो गई है, लेकिन उस दौर में ये बात बहुत बड़ी होती थी. समाज के चिंता न करते हुए मैंने अपने काम पर फोकस किया. आज खुद का प्रोडक्शन चलाती हूं. सामाजिक संस्थाओं के लिए काम करती हूं.
यह भी पढ़ें: Women’s Day Special : महिला दिवस पर ईटीवी भारत की मुहिम...आइए, आधी आबादी को दिलाएं पूरा हक़
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हम आपको एक और ऐसी महिला से रूबरू कराएंगे, जो 35 साल से समाज की सेवा कर रही हैं. इनका नाम माधवी कुकरेजा है. माधवी ने ईटीवी भारत को बताया कि किस तरह से उन्होंने आज से 35 साल पहले चित्रकूट से अपने काम की शुरूआत की. एक महिला होने के नाते उन्हें भी तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा. घर परिवार की जिम्मेदारी होती है, जिसकी वजह से महिलाओं के पैर में बेड़ियां पड़ने लगती है. कई बार तो उन्हें काम भी छोड़ना पड़ा था. लेकिन, कभी अपने काम को पूरी तरह से नहीं छोड़ पाई. हमेशा सामाजिक स्तर पर काम करती रही. आज सनतकदा संस्था चलाती है. जिसमें वह तमाम महिलाओं को रोजगार देती है. उनका मानना है कि मेरे अंतर्गत कोई भी महिला कार्य नहीं कर रही, बल्कि वे मेरे साथ काम कर रही हैं. हम साथ हैं, तभी हम एक अच्छा काम कर रहे हैं.
इनके अलावा ईटीवी भारत ने मोसिना मिर्जा से भी बात की. मोसिना को लखनऊ की फर्स्ट ड्रोन गर्ल के नाम से भी जाना जाता है. आज से 10 साल पहले जब ड्रोन के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं थी, तब उन्होंने पहला ड्रोन बनाकर उड़ाया था. उन्होंने बताया कि आज के समय में ड्रोन पर काम करना बड़ी बात नहीं है. आज से 10 साल पहले जब मैंने पहली बार ड्रोन बनाया, उस वक्त लखनऊ की मैं एक अकेली ऐसी लड़की थी, जिसने खुले आसमान में ड्रोन बनाकर उड़ा था. तब से मुझे फर्स्ट ड्रोन गर्ल के नाम से पहचान मिली. आज मैं साइंस के दुनिया में कार्य करती हूं. हमेशा अपने स्टूडेंट्स को साइंस के बारे में समझाते हुए टेक्नोलॉजी के बारे में बताती हूं, क्योंकि मेरा मानना है कि महिलाएं टेक्नोलॉजी की दुनिया में आगे बढ़ सकती हैं.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप